• हर अपराध ‘दुर्लभतम’ माना जाए

    वे समाज के लिए खतरा हैं और दोषियों ने जो क्रूरता और बेरहमी दिखाई, उससे यह मामला ‘दुर्लभतम’ बन गया है। इन दोषियों के प्रति नरमी नहीं दिखाई जा सकती, क्योंकि महिलाओं के खिलाफ बढ़ते जघन्य अपराधों पर लगाम लगाने के लिए उचित सजा देना जरूरी है। ...

    वे समाज के लिए खतरा हैं और दोषियों ने जो क्रूरता और बेरहमी दिखाई, उससे यह मामला ‘दुर्लभतम’ बन गया है। इन दोषियों के प्रति नरमी नहीं दिखाई जा सकती, क्योंकि महिलाओं के खिलाफ बढ़ते जघन्य अपराधों पर लगाम लगाने के लिए उचित सजा देना जरूरी है। कुछ इन शब्दों के साथ साल 2009 में हुए जिगिषा घोष हत्याकांड में सोमवार को दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने दोषी रवि कपूर और अमित शुक्ला को मौत की सजा जबकि तीसरे दोषी बलजीत मलिक को जेल में अच्छे बर्ताव के कारण उम्रकैद की सजा सुनाई। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि 28 साल की आईटी पेशेवर की ‘सुनियोजित, अमानवीय और क्रूर तरीके’ से हत्या की गई थी। अदालत ने कहा कि दोषियों ने जो क्रूरता और बेरहमी दिखाई, उससे यह मामला ‘दुर्लभतम’ बन जाता है और इसलिए मौत की सजा सुनाई जाती है। गौरतलब है कि कपूर, शुक्ला और मलिक पर वर्ष 2008 में टीवी पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की हत्या के मामले में भी मुकदमा चल रहा है। उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं से भरी जिगिषा अपने परिवार में एकमात्र कमाने वाली सदस्य थी। वह एक कंपनी में ऑपरेशनल मैनेजर के तौर पर 45,000 रुपए कमा रही थी और अपने माता-पिता का सहारा थीं। अदालत के फैसले से जिगिषा के मां-बाप को संतोष हुआ है, हालांकि बेटी को खो देने का गम कभी नहींभर पाएगा। जिगिषा की मां के इस कथन पर गौर किया जाना चाहिए कि जिगिषा हमेशा मौत की सजा के खिलाफ रही है और आज के फैसले से वह सहमत नहींहोती। लेकिन इन अपराधियों ने पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया। इससे पता चलता है कि जिगिषा कितनी संवेदनशील नागरिक थीं। जिगिषा अपने कार्यालय से लौट रही थीं, जब इन अपराधियों ने उन्हें दबोच लिया और घंटो बंधक बनाए रखा। उन्होंने जान बख्शने की गुहार की, अपना सारा कीमती सामान दे दिया, लेकिन उसके बाद भी क्रूरता से उनका कत्ल किया गया। मामला देश की राजधानी का था और इसकी गूंज सब ओर सुनाई दी। महिला सुरक्षा का विमर्श फिर छिड़ गया। किंतु हालात नहींबदले। जिगिषा के दोषियों को सजा सुनाई गई है, लेकिन ऐसे हजारों दोषी खुलेआम घूम रहे हैं। रोजाना बलात्कार, छेड़छाड़, महिला उत्पीडऩ के प्रकरण सामने आ रहे हैं, अभी छत्तीसगढ़ के बालोद से ऐसी ही एक खबर आई है। कई लड़कियों की कमजोर आर्थिक स्थिति का लाभ उठाकर डीजे एवं आर्केस्ट्रा डांस पार्टी के नाम पर उन्हें मां-बाप से झूठ बोलकर ले जाया गया और एक फार्महाउस में लगभग बंदी बनाकर रखा गया। इन लड़कियों को जबरदस्ती छोटे-छोटे कपड़े पहनाकर, नशीली दवाई खिलाकर जबरन अश्लील डांस करवाया जाता और उनका मानसिक, शारीरिक उत्पीडऩ भी होता। एक लडक़ी के पिता ने जब अपनी बेटी के वापस न आने की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज कराई, तब कहींजाकर मामला उजागर हुआ। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की और बंधक लड़कियों को छुड़वाया गया। इन लड़कियों की हत्या नहींहुई, लेकिन इनकी आत्मा को कुचलने का जघन्य अपराध को हुआ ही है। लड़कियां न अपने घरों में सुरक्षित हैं, न बाहर। न वे परिवार के साथ सुरक्षित हैं, न अकेली। हाल ही में दिल्ली से एक रिपोर्ट आई है कि किस तरह रैनबसेरे में या फुटपाथों पर रात गुजारने को मजबूर बच्चियों, औरतों को शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ता है। ये शिकायत करने से भी डरती हैं कि कहींरात गुजारने का ठिकाना भी न छिन जाए। क्या किसी भी देश के लिए यह शर्मनाक बात नहींहोनी चाहिए? अफसोस इस बात का है कि भारत में अब तक ऐसी शर्मिंदगी का भाव जाग्रत नहींहुआ है। लड़कियों का उत्पीडऩ होता है और उन्हें ही दोषी माना जाता है, उनके लिए ही सारे नियम, बंदिशें, फरमान और फतवे तय होते हैं। अभी मुस्लिम आबादी व हिंदू आबादी के अनुपात पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि कौन सा कानून कहता है कि हिन्दुओं की आबादी नहीं बढऩी चाहिये। जब दूसरों की आबादी बढ़ रही है तो हिन्दुओं को किसने रोका है। क्या श्री भागवत यह नहींजानते कि आबादी बढ़ाने के लिए महिलाओं का ही इस्तेमाल होगा। तो क्या महिलाओं को केवल परिवार बढ़ाने के लिए ही उपयोगी समझा जा रहा है? यह सामंती सोच कब बदलेगी? धर्म की रक्षा के लिए आबादी बढ़ाने की समझ है, लेकिन महिलाओं की रक्षा की कोई समझ विकसित नहींहो रही है, यह दुखद है। जब तक हम महिला उत्पीडऩ को सामान्य घटना मानेंगे, तब तक अनाचार जारी रहेगा। जिस दिन समाज इसे ‘दुर्लभतम’ की श्रेणी में रखकर विश्लेषण करेगा, उस दिन से असली इंसाफ मिलने की पहल होगी।

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