• छात्र संघ चुनावों की गहमा-गहमी

    छात्र संघ चुनावों की गहमा-गहमी नामांकन दाखिले के साथ शुरू हो गई है। छात्र संगठन अपनी-अपनी जीत सुनिश्चित करने की जुगत में जुट गए हैं।...

    छात्र संघ चुनावों की गहमा-गहमी नामांकन दाखिले  के साथ शुरू हो गई है। छात्र संगठन अपनी-अपनी जीत सुनिश्चित करने की जुगत में जुट गए हैं। चार दिन बाद यानी 26 अगस्त को मतदान होना है और इस बीच जैसी खबरें आ रही हैं वे चुनावों के दौरान शांति व सुरक्षा बनाए रखने की दृष्टि से खबरदार करने वाली हैं। राजनीतिक दलों में जैसी गुटीय राजनीति चलती रही है, कुछ ऐसी ही गुटबाजी छात्र संगठनों में भी शुरू हो गई है और इसे हवा देने का काम राजनेता ही कर रहे हैं।  ये चुनाव छात्र नेताओं के नहीं बल्कि राजनेताओं के अहम का प्रश्र ज्यादा बन गए हैं।  आज नामांकन के दिन कुछ छात्रों को नाम दाखिल करने से रोकने की कोशिश की गई। पुलिस ने हस्तक्षेप किया और कोई अप्रिय घटना नही घटी। ऐसी घटनाओं से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन चुनावों को लेकर छात्रों में कैसा तनाव है। ये चुनाव शांतिपूूर्ण ढंग से संपन्न हों, इसका पुख्ता प्रबंध करने में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। छात्र संघ चुनावों  के नतीजों से राजनीतिक दल अपनी ताकत का अनुमान लगाने लगी हैं जबकि इन चुनावों की कल्पना छात्र हितों की रक्षा के लिए की गई थी। छात्र राजनीति से गुटबाजी की सीख लेकर निकलने वाले छात्रनेता सत्ता की राजनीति में आकर कौन सा आदर्श प्रस्तुत करेंगे? छात्र संघ चुनावों से संस्थाओं में शिक्षा से इतर की राजनीति शुरू हो जाने पर सरकार को इन चुनावों पर रोक लगाने  का निर्णय लेना पड़ा था। इस निर्णय की इस आधार पर आलोचना शुरू हो गई कि इससे नेतृत्व क्षमता का विकास प्रभावित होता है। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा और पूर्व चुनाव आयुक्त जे. एम. लिंगदोह की अघ्यक्षता में एक कमेटी गठित कर उससे छात्र संघ चुनावों  पर राय मांगी गई। कमेटी ने चुनाव कराने की अपनी अनुशंसा के साथ सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपी, जिसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने सरकार को उच्च शिक्षा संस्थाओं में छात्र संघ चुनाव कराने के निर्देश दिए। इन चुनावों से नेतृत्व कौशल निखर कर सामने आए, यह अपेक्षित है। इसके लिए उन प्रयासों पर ध्यान देना जरूरी है, जिनसे अनुशासन बना रहे। अगर राजनेता अपने राजनैतिक उद्देश्यों के लिए छात्रों को अनैतिक गतिविधियों में शामिल करते हैं तो उन पर भी कानून के मुताबिक कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे मामलों में होता यह है  कि पीछे रहकर ऐसी गतिविधियों को अंजाम देने वाले बच निकलते हैंंंं। छात्र संघ चुनावों में जब तक बाहरी हस्तक्षेप को रोका नहीं जाएगा तब तक इन चुनावों का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। यह संतोष की बात है कि राज्य में छात्र संघ चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से होते आए हैं। संवैधानिक संस्थओं की चुनावी गतिविधियां अब पहले से काफी बढ़ गई हैं। इससे हर साल -डेढ़ साल में कोई न कोई चुनाव आ  जाता है। चुनावों के प्रति आकर्षण बढऩे से ऐसा माहौल बन गया है कि दलीय प्रतिबद्धता दिखाने के लिए ऐनकेन प्रकारेण हर चुनाव जीतना ही है।

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