• ‘मन की बात’ केवल कार्पोरेट के पक्ष में है, मेधा ने लिखा दवे को पत्र

    भारत शर्मा : नई दिल्ली । नर्मदा के डूब प्रभावित इलाके राजघाट में अनशन कर रहीं मेधा पाटकर ने पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे को एक पत्र लिखकर उनसे सवाल किया है, कि वे खुद नर्मदा के बड़े संरक्षक कहलाते हैं, नर्मदा समग्र नाम से उनका संगठन भी काम करता है, तब क्या वे नर्मदा की इस तरह ही हत्या करने की अनुमति देंगे।...

     भारत शर्मा नई  दिल्ली । नर्मदा के डूब प्रभावित इलाके राजघाट में अनशन कर रहीं मेधा पाटकर ने पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे को एक पत्र लिखकर उनसे सवाल किया है, कि वे खुद नर्मदा के बड़े संरक्षक कहलाते हैं, नर्मदा समग्र नाम से उनका संगठन भी काम करता है, तब क्या वे नर्मदा की इस तरह ही हत्या करने की अनुमति देंगे।

    उन्होंने यह भी कहा है, कि ‘मन की बात’ केवल गुजरात और कुछ बड़े औद्योगिक घरानों के लिए है, मध्य प्रदेश के प्रतिनिधि होने के नाते वे इस दिशा में क्या कदम उठाएंगे। यह पत्र 31 अगस्त को दिल्ली में होने वाली एक बैठक के संदर्भ में लिखा गया है, जिसमें बांध की 139 मीटर ऊंचाई पर गेट लगाने संबंधित चर्चा होने वाली है। उन्होंने लिखा है, कि पर्यावरण मंत्रालय की यह जिम्मेदारी है, कि 1987 में जिन शर्तों के साथ इस योजना को मंजूरी दी गई थी, उनके तहत हो चुके कामों की समीक्षा करना तथा पर्यावरणीय सुरक्षा व होने वाले नुकसान का आंकलन करने के बाद बांध की ऊंचाई बढ़ाने की अनुमति देना। अगर बांध की ऊंचाई पर गेट लगा दिए जाते हैं, तो इससे 244 गांव व एक शहर डूब जाएगा, साथ ही तमाम पेड़, मंदिर, मस्जिद भी डूब जाएंगे। मेधा ने लिखा है, कि बांध की ऊंचाई बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री ने न तो सामाजिक न्याय विभाग से पूछा है, न पर्यावरण मंत्रालय से ना ही उमा भारती के जल संसाधन मंत्रालय से। मेधा ने सवाल किया है, कि क्या वे मप्र की लाखों लोगों का प्रतिनिधित्व करते हुए और नर्मदा को जीवन देने की अपनी प्रतिबद्धताओं को लेकर इस फैसले का विरोध करेंगे। उन्होंने बताया है, कि नर्मदा के साथ की गई छेड़छाड़ का नतीजा है, कि गुजरात के भुज में 30 किलो मीटर अंदर तक समुद्र घुस आया है वहां का पानी खारा हो गया है, जिसके लिए भुज के निवासी और उद्योगपति आंदोलन कर रहे हैं। गेट बंद होने के बाद हालात और बुरे होंगे। 2013 तक की रिपोर्ट बताती है, कि बांध के नीचे के पर्यावरण के लिए ही नहीं, लोगों को दिए जाने वाले पानी के लिए भी अभी तक अध्ययन नहीं किया गया है। उन्होंने लिखा है, कि नर्मदा के क्षेत्र में लाखों पेड़ डुबाकर, उसकी हजारों साल पुरानी परंपरा को नष्ट कर, कुछ किसानों को नारियल के पेड़ लगाने के लिए देकर नर्मदा को बचाने का जो दिखावा किया जा रहा है, उससे ना नर्मदा बचेगी, ना पर्यावरण, ना ही संस्कृति।


    पर्यावरण मंत्रालय की यह जिम्मेदारी है, कि 1987 में जिन शर्तों के साथ इस योजना को मंजूरी दी गई थी, उनके तहत हो चुके कामों की समीक्षा करना तथा पर्यावरणीय सुरक्षा व होने वाले नुकसान का आंकलन करने के बाद बांध की ऊंचाई बढ़ाने की अनुमति दी जाए : मेघा पाटकर

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