• घर से बेदखल होने का संकट झेल रहे हैं रांची के गैर आदिवासी

    रांची ! अगर जनजातीय भूमि जनजातियों (आदिवासियों) को वापस करने का प्रशासनिक आदेश लागू हो जाता है तो झारखंड के रांची जिले में एक लाख से अधिक गैर जनजातीय लोगों को अपने घर से बेदखल होना पड़ेगा।...

    रांची !   अगर जनजातीय भूमि जनजातियों (आदिवासियों) को वापस करने का प्रशासनिक आदेश लागू हो जाता है तो झारखंड के रांची जिले में एक लाख से अधिक गैर जनजातीय लोगों को अपने घर से बेदखल होना पड़ेगा। जिला प्रशासन ने इस महीने अनुसूचित क्षेत्र विनियमन (एसएआर) अदालत समाधान के जरिए आदिवासी जमीन मालिकों से जमीन खरीदने वालों को यह साबति करने के लिए नोटिस जारी किया है कि उनका सौदा फर्जी या अवैध नहीं है। वैधता साबित करने में विफल रहने पर सभी गैर आदिवासी लोगों को सवाल के घेरे में खड़ी अपनी संपत्ति से बेदखल होना पड़ेगा। इस तरह के नोटिस विद्यानगर, यमुनानगर, गंगानगर, किशोरगंज, कंठाटोली, मौलाना आजाद कॉलोनी, चुटिया और रांची जिले के अन्य स्थानों के निवासियों को भेजे गए हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, रांची के 2.70 लाख घरों में से करीब 1.30 लाख घर आदिवासियों की जमीन पर बने हुए हैं। छोटानागपुर काश्तकारी कानून (सीएनटी), 1908 को लागू करने के हिस्से के रूप में नोटिस जारी किए गए हैं। यह कानून रांची जिले में लागू होता है और गैर आदिवासी लोगों को बिना उपायुक्त की अनुमति के आदिवासी जमीन मालिक से जमीन खरीदने से रोकता है। अगर गैर आदिवासी ने साल 1969 से पहले जनजातीय भूमि पर घर बनाया था और वह तब से वहां रह रहा है तो सीएनटी की धारा 71-ए उसे इस तरह की भूमि पर कब्जे की अनुमति देती है। इस तरह के मामले में भूमि और कब्जे के नियमन के खिलाफ एसएआर अदालत ने एक क्षतिपूर्ति की राशि तय करती है। कई आदिवासी भूमि विक्रेताओं और गैर आदिवासी क्रेताओं ने 1969 से पहले के सौदों के नियमितिकरण के लिए कानून के इस प्रावधान के लाभ उठाया है। इस तरह की जमीन पर 1969 से पहले का कब्जा दिखाने के लिए फर्जी दस्तावेज इस्तेमाल किए गए। कई मामलों में गैर आदिवासी लोगों ने आदिवासियों से अनेक भूखंड खरीदे और उस पर घर बनाए गए और खरीदी गई जमीन के दाखिल खारिज भी करा लिए गए। रघुवर दास के नेतृत्व में वर्तमान भाजपा सरकार ने कानून के इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के लिए एसएआर अदालत को समाप्त करने का फैसला किया था, लेकिन बाद में अपना मत बदल दिया। सरकार ने निर्णय किया कि कानून को सख्ती से लागू करने के साथ एसएआर अदालत कार्य करती रहेगी। कानून को कड़ाई से लागू किए जाने के कारण उन लोगों पर गाज गिरी है जिन्होंने सीएनटी कानून में कमी का लाभ उठाया था। गैर आदिवासी लोगों को जमीन बेचने वाले अनेक आदिवासी अपनी संपत्ति वापस नहीं लेना चाहते हैं। बताया जाता है कि कुछ परिवारों को संपत्ति से पहले ही बेदखल किया जा चुका है। इसलिए बेदखली के संकट से जूझ रहे लोग प्रशासन के इस कदम के विरोध में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि अगर उनका घर और पड़ोस अवैध है तो सरकार ने क्षेत्र में सड़क बनाने की अनुमति क्यों दी थी और बिजली एवं पानी की सुविधएं क्यों उपलब्ध कराई। गंगानगर की निवासी सावित्री देवी ने कहा, "हम लोग अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं जो इस घर में रह रहे हैं। हमने जमीन खरीद कर अपना घर बनाया। हमें क्यों बेदखल होना चाहिए? " विरोध के मद्देनजर जिला प्रशासन ने रविवार को एक विज्ञापन निकाला जिसमें कहा गया, "प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों के अनुरूप पक्षों को उनके दस्तावेज जमा करने और सुनवाई के लिए पर्याप्त समय दिए जाएगा।" रांची भाजपा का गढ़ है और नगर विकास मंत्री सी.पी. सिंह राज्य विधानसभा में रांची का प्रतिनिधित्व करते हैं।


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