• छत्तीसगढ़ पीएससी पर कोर्ट के फैसले से गरमाई राजनीति

    रायपुर ! वर्ष 2003 में आयोजित पीएससी परीक्षा में गड़बड़ी उजागर होने एवं कोर्ट के फैसले के बाद प्रदेश में राजनीति गरमा गई है। विपक्षी दलों ने भाजपा सरकार पर संलिप्तता का ओरोप लगाते हुए जवाबदेहियों पर कार्रवाई की मांग की है। ...

    विपक्षी दलों ने साधा भाजपा पर निशाना, मुख्यमंत्री व मंत्रियों के संरक्षण में घोटाला : उपाध्याय

    रायपुर !   वर्ष 2003 में आयोजित पीएससी परीक्षा में गड़बड़ी उजागर होने एवं कोर्ट के फैसले के बाद प्रदेश में राजनीति गरमा गई है। विपक्षी दलों ने भाजपा सरकार पर संलिप्तता का ओरोप लगाते हुए जवाबदेहियों पर कार्रवाई की मांग की है। वहीं हाईकोर्ट के इस फैसले से 2003 में चयनित अफसरों में हडक़ंप मच गया है। नई सूची जारी होने से कई अफसरों की नौकरी जा सकती है। वहीं मेरिट सूची नए सिरे से जारी होने पर कई अफसर पदानवत हो सकते हैं। वहीं इससे प्रभावित अधिकारी प्रारंभिक तैयारी कर सुप्रीम कोर्ट का रास्ता अख्तियार कर सकते हैं। पुनर्मूल्यांकन एवं नई सूची जारी होने से कई अधिकारियों को प्रभाव पड़ेगा। राज्य सरकार फिलहाल इस मामले पर मौन है लेकिन विपक्षी दल तीखे तेवर के साथ सरकार पर निशाना साध रही है। 2003 पीएससी में हुई अनिमियता की शिकायत उस समय विधान सभा में उपनेता रहे भूपेश बघेल ने ईओडब्लु से किए थे।। उस समय मामला न्यायालय में होने के कारण दोषियों की गिरफ्तारी नही हुई थी। अब न्यायालय का निर्णय आने के बाद भी दोषियों को गिरफ्तार नहीं करना पूरे मामले में भाजपा के संलिप्तता को जाहिर करता है। शहर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विकास उपाध्याय ने 2003 पीएससी घोटाले में मुख्यमंत्री एवं उनके मंत्रियों पर संलिप्तता का आरोप लगाया। उन्होने कहा कि 2003 पीएससी विवाद के बाद 2007 तक राज्य में किसी भी प्रकार की परीक्षाएं नहीं हुई। उन 4 सालों में परीक्षा नहीं होने से प्रतियोगी परीक्षा के कई उम्मीदवार उम्र सीमा अधिक होने के कारण परीक्षा वंचित हो गए। पीएससी के अनियमितता को लेकर उस समय एनएसयुआई के प्रदेश अध्यक्ष रहे विकास उपाध्याय ने आंदोलन किया था। उस समय आंदोलनरत कार्यकर्ताओं के ऊपर राज्य की भाजपा सरकार ने लाठीचार्ज कराया था और आपराधिक प्रकरण दर्ज कराए थे। वर्षा डोंगरे ने पीएससी के अनियमितताओं को लेकर राज्यपाल के पास भी शिकायत दर्ज करायी थी। राज्यपाल के द्वारा पीएससी को पत्र लिखा गया था जिस पर पीएससी के द्वारा किसी भी प्रकार का जवाब नहीं दिया गया। उसी प्रकरण में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने पीएससी को निर्देश दिया जिस पर पीएससी के अधिकारियों ने किसी भी प्रकार की अनियमितता नहीं होने की बात की जानकारी मुख्यमंत्री को लिखकर दी। वर्षा डोंगरे ने शिकायतों पर उचित कार्रवाई नहीं होने पर उच्च न्यायालय में याचिका दर्ज की। न्यायालय द्वारा पीएससी के अधिकारियों को तलब किया गया तब न्यायालय के समक्ष पीएससी के अधिकारियों द्वारा वर्षा डोंगरे को योग्य उम्मीदवार बताया गया और शासन को डीएसपी के पद में नियुक्ति हेतु पत्र लिखने की बात स्वीकार की। न्यायालय के निर्णय के बाद पीएससी के भ्रष्टाचार प्रमाणित हो गए। विकास उपाध्याय ने कहा कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनी हुई सरकार के मुखिया डॉ.रमन सिंह का नियंत्रण अधिकारियों पर नहीं रहा। राज्य में प्रशासनिक अराजकता चरम पर है। अधिकारी राज्यपाल के संवैधानिक पदों के निदेर्शो की अवहेलना करने से बाज नहीं आते। पीएससी 2003 में न्यायालय के आदेश आने के बाद दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्यवाही और तत्काल एफआईआर दर्ज कराई जानी थी लेकिन दोषियों पर कार्रवाई नहीं होना पीएससी के घोटालों में सरकार की संलिप्तता को उजागर करता है। मुख्यमंत्री एवं उनके मंत्री व उनके रिश्तेदार की पीएससी घोटालों में भूमिका है। उन्होने दोषियों पर तत्काल एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तार करने की मांग की है।


    पीएससी घोटाला पर सुप्रीम कोर्ट में अपील न करे सरकार :माकपा माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने पीएससी-2003 चयन घोटाले के संबंध में हाईकोर्ट के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा है कि भाजपा सरकार में यदि भ्रष्टाचार ख़त्म करने की सदिच्छा होगी, तो सुप्रीम कोर्ट जाने के बजाये वह हाईकोर्ट के निर्णय को सही अर्थों में लागू करेगी तथा भ्रष्ट तरीके से चयनित लोगों को बर्खास्त करेगी। माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने याचिकाकर्ताओं वर्षा डोंगरे, रविन्द्र सिंह व चमन सिन्हा  को उनके अनथक संघर्ष के लिए बधाई दी है तथा टिप्पणी की है कि मप्र. व्यापमं से लेकर सीजीपीएससी तक समान उद्देश्यों से और समान लक्ष्य प्राप्ति हेतु किये गए कार्यों ने अलग ‘चाल, चेहरा और चरित्र’ रखने का दावा करने वाली पार्टी की समूची नैतिकता को उजागर कर दिया है। इस तथ्य के मद्देनजर कि एंटी-करप्शन ब्यूरो ने 2007 में ही सरकार को इस घोटाले के बारे में बता दिया था और हाईकोर्ट की यह टिप्पणी कि यह घोटाला ‘मानवीय त्रुटि नहीं, बल्कि जान-बूझकर किया गया आपराधिक कृत्य’ है, से स्पष्ट है कि इस घोटाले में भाजपा सरकार भी समान रूप से सहभागी है। माकपा ने मांग की है कि इस घोटाले के लिए जिम्मेदार सभी बोर्ड सदस्यों,राजनेताओं और अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण कायम किया जाए। माकपा नेता ने कहा है कि 2003 के बाद से हर परीक्षा में पीएससी विवादों में रही है और भाजपा सरकार ने इस संस्था में ऐसे लोगों को ही बिठाने में तरजीह दी, जिनका रिकॉर्ड हमेशा संदेहास्पद ही रहा है। लेकिन अब वक्त है कि राज्य के युवाओं के व्यापक हित में और पीएससी की विश्वसनीयता को कायम करने के लिए पीएससी को दागी सदस्यों-अधिकारियों से मुक्त कर परीक्षा-प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए कदम उठाये जाएं।

     

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