सत्ता की राजनीति में राजनैतिक दल अवसरों को भुनाने में कब पीछे रहते हैं। रोजगार की तलाश में असफल रहने से निराश होकर आत्मदाह कर लेने वाले दिव्यांग युवक योगेश साहू की मौत पर ही राजनीति शुरू हो गई हैं। जीवन से निराश एक युवक की मौत का यह मामला बेहद संवेदनशील है और उस पर इसी संवेदनशीलता से विचार करने की जरूरत है। योगेश तो चला गया, लेकिन अपनी मौत के पीछे वह जो सवाल छोड़ गया है, यह समय उसका जवाब ढूंढने का है। हमें किसी और योगेश को इस तरह का आत्मघाती कदम उठाने से बचाना होगा। जीवन संघर्ष से गुजर रहे लोगों की फरियाद सुनने के लिए प्रशासन को जिम्मेदार बनाना होगा। योगेश ने अधिकारियों से फरियाद की थी, लेकिन जैसा की हमारी व्यवस्था में होता रहा है, समाधान की जगह उसे इसका उपाय बताकर चलता कर दिया जाता है। विषम परिस्थितियों से गुजर रहा कोई व्यक्ति किसी अधिकारी के पास तात्कालिक समाधान की उम्मीद लेकर जाता है। यदि अधिकारी उनकी बाते पूरी सहानुभूति के साथ सुनें और मद्द करे तो ऐसे लोगों के जीवन मेंं घर कर रही निराशा को दूर किया जा सकता है। राज्य में रोजगार के अवसर जिस तादाद में बढऩे चाहिए थे उतने बढ़े नहीं। निजी क्षेत्र में कुछ उद्योग भी लगे परन्तु उनमें लोगो को रोजगार बहुत कम मिला। आज का दौर तकनीकी का है। उद्योगों का विकास इस तरह हो रहा है, जिसमें मानव संसाधन की जरु रत कम से कम पड़े। विद्युत परियोजनाओं में ही देखें तो जिस परियोजना में चार-चार, पांच-पांच उत्पादन इकाइयां स्थापित है, वहां महज हजार-डेढ़ हजार लोगों को ही स्थाई रोजगार मिला हुआ है। बिजली उत्पादन के क्षेत्र में रोजगार के काफी कम अवसर सृजित हो रहे हंै। ऐसे उद्योग, जिनमें ज्यादा मानव श्रम की जरूरत होती है उस पर काम करने की जरूरत है। सरकार इस दिशा में आगे बढ़ भी रही है, किन्तु अभी ऐसे उद्योगों की स्थापना में समय लगेगा। सरकार का कौशल विकास प्रशिक्षण का कार्यक्रम काफी अच्छे तरीके से चल रहा है। ऐसे प्रशिक्षित युवाओं के नियोंजन के लिए उचित अवसर उपलब्ध कराने की कोशिशें भी हों तो अच्छा होगा। इस दिशा में आयोजित होने वाले प्लेसमेंंट कैंम्पो के नतीजों को भी देखने की जरूरत है। सिर्फ आंकड़े जुटाकर सरकार अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकती। इन कैम्पों में निजी सुरक्षा गार्ड, बीमा और बैंक की बचत योजनाओं के लिए एजेंट के रूप में काम करने का अवसर उपलब्ध कराकर यदि सोच लिया जाए कि रोजगार का स्थायी प्रबंध कर दिया गया है तो यह धोखे में रखने वाली बात है। सरकार को कौशल विकास प्रशिक्षण और विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षित युवाओं के नियोजन की स्थितियों पर नजर रखनी होगी। सरकारी क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में पद रिक्त पड़े हुए हैं। इन पदों पर भर्तियां शुरू करके बेरोजगारी की समस्या कुछ हद तक दूर की जा सकती है। रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत युवाओं की उनकी योग्यता के अनुसार नियोजन की कैसी योजना बनाई जा सकती है। इस पर गंभीरतापूर्वक सोचा जाना चाहिए। अगर स्वरोजगार की संभावनाएं हैं तो इसे कैसे बढ़ावा मिल सकता है, उसके लिए वातावरण बनाने की कोशिश भी जरूरी है। सरकार का दावा है कि अभी तक सवा लाख युवाओं को कौशल प्रशिक्षण दिया जा चूका है। इन सवा लाख युवाओं में कितने को रोजगार से जोड़ा गया है,यह भी देखा जाना चाहिए। योगेश साहू की मौत पर प्रदर्शन और बंद का आयोजन करने वाले राजनैतिक दल यदि इसका पता लगाने मेंं अपनी उर्जा लगाएं तो यह उसके प्रति सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी।