• पर्यावरण हितैषी हों उत्सव

    राष्ट्रीय ग्रीन ट्रेब्यूनल ने पर्यावरण संरक्षण के मामले में विभिन्न स्तरों पर नियम-निर्देशों की होने वाली अनदेखी के लिए समय-समय पर अपने कड़े रुख का परिचय दिया है।...

    राष्ट्रीय ग्रीन ट्रेब्यूनल ने पर्यावरण संरक्षण के मामले में विभिन्न स्तरों पर नियम-निर्देशों की होने वाली अनदेखी के लिए समय-समय पर अपने कड़े रुख का परिचय दिया है। हमारे देश में सांस्कृतिक उत्सव बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। गणेशोत्सव और दुर्गोत्सव की तैयारियों के लिए आयोजन समितियां बनने लगी हैं। ये उत्सव पर्यावरण हितैषी हों, इसके लिए ट्रेब्यूनल ने सरकारों को दिशा-निर्देश दिए हैं। यह कहा गया है कि इन उत्सवों में स्थापित की जाने वाली मूर्तियां मिट्टी की ही हों और उन्हें सजाने-संवारने में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों का इस्तेमाल न किया जाए। इन उत्सवों  में मूर्तियों की मांग इतनी ज्यादा रहती है कि इनका निर्माण एक मूर्तिकार का काम ही नहीं रह गया बल्कि विशुद्ध व्यवसाय बन गया। प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्तियों का निर्माण होने लगा। ऐसी मूर्तियों का निर्माण और उन्हें नदी-तालाबों में विसर्जित करने पर अब रोक लगा दी है, लेकिन फिर भी बाजारों में इस तरह की मूर्तियां बिक रही हैं और लोग उन्हें स्थापित कर रहे हैं। चाहे घरों में या सार्वजनिक स्थलों में इन उत्सवों के दौरान स्थापित की जाने वाली मूर्तियां मिट्टी की ही बनी हों, इस बात का ख्याल सभी को रखना चाहिए। राज्य पर्यावरण संरक्षण मंडल ने इस संबंध में जन जागरुकता फैलाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। हवा और पानी को प्रदूषित होने से बचाने की कोशिश दुनिया भर में हो रही है। इस मामले में हम आज भी काफी पीछे हैं। शहरों और गांवों में उत्सर्जित अपशिष्ट का उचित प्रबंधन न होने से भी पर्यावरण प्रदूषण का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में उत्सवों के दौरान भी पर्यावरण संरक्षण के उपायों का ध्यान नहीं रखा गया तो यह समस्या और बढ़ती जाएगी। उत्सवों को पर्यावरण बचाने के संदेश के रुप में देखने की कोशिश भी की जा सकती है। आयोजन समितियों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। वे ऐसी झांकियां सजाएं जो भव्य और आकर्षक तो लगे ही, साथ ही पर्यावरण हितैषी भी हों। कुछ सामाजिक संगठन झांकियों को उनकी आकर्षक साज-सज्जा के लिए पुरस्कृत करते हैं। ऐसे संगठनों को पुरस्कार इस आधार पर भी देना चाहिए कि उनकी सजावट कितना पर्यावरण हितैषी है। इससे आयोजकों में यह संदेश जाएगा कि वे पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाने वाली झांकियां सजाएं और सांस्कृतिक उत्सवों में आने वाले लोग भी यह संदेश लेकर जाएं। इस दिशा में राज्य पर्यावरण संरक्षण मंडल भी अपनी भूमिका निभा सकता है। उत्सवों में सजाई जाने वाली झांकियों में स्थापित मूर्तियों के विसर्जन के बाद नदी-तालाबों के तट पर जो दृश्य दिखाई देता है, वह मन को आहत करने वाला होता है। मूर्तियां साकार पड़ी रह जाती हैं। मूर्तियां मिट्टी की हों तो वे गल जाएंगी और नदी-तालाबों के तट पर मर्माहत करने वाले दृश्य भी नहीं होंगे और न ही पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचेगा।

अपनी राय दें