• ओलंपिक के पहले उठापटक

    ओलंपिक खेलों के लिए भारत में इस बार जैसा माहौल, जैसी तैयारी दिखीं, वैसी पहले कभी नजर नहींआईं। सलमान खान की लोकप्रियता के कारण उन्हें सद्भावना दूत बनाया गया...

    ओलंपिक खेलों के लिए भारत में इस बार जैसा माहौल, जैसी तैयारी दिखीं, वैसी पहले कभी नजर नहींआईं। सलमान खान की लोकप्रियता के कारण उन्हें सद्भावना दूत बनाया गया, रियो जाने वाले ओलंपिक खिलाडिय़ों से प्रधानमंत्री ने मुलाकात की, रियो ओलंपिक के लिए दौड़ आयोजित की जा रही है, उसके लिए बाकायदा टी शर्ट डिजाइन किए गए हैं, टीवी चैनलों पर तीरंदाजी, हाकी, कुश्ती इन सबमें अच्छा प्रदर्शन करने के विज्ञापन आ रहे हैंं, कुल मिलाकर ओलंपिक के पहले देश को ओलंपिकमय बनाने का खेल चल रहा है, जिसे देखकर लग सकता है कि खेलों के प्रति भारत का नजरिया सचमुच बदल गया है। लेकिन यह तस्वीर का एक पहलू है, दूसरा पहलू जमीनी सच्चाई दिखलाता है कि खिलाडिय़ों के साथ राजनीति, षड्यंत्र, जैसे नकारात्मक दांव-पेंच चल ही रहे हैं, जिनके कारण बीते वर्षों में भारत कई बार अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मात खा चुका है। पिछले दिनों जब ओलंपिक में 74 किलोग्राम वर्ग में कुश्ती के लिए पहलवान नरसिंह यादव का चयन विश्व चैंपियनशिप में पदक हासिल करने के कारण हुआ तो दो बार ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार ने उन्हें अदालत में चुनौती दी थी। लेकिन वे नरसिंह यादव से अदालती अखाड़े में मात खा गए। उनकी ओलंपिक में जाने की महत्वाकांक्षा स्वाभाविक थी, लेकिन उनके बड़प्पन का और मान होता अगर वे नरसिंह यादव को खुशी-खुशी समर्थन देते। लेकिन ऐसा नहींहुआ और अब जबकि नरसिंह यादव डोपिंग के दोषी पाए गए हैं और उनका रियो जाना नामुमकिन है, तब सुशील कुमार का ट्वीट आता है कि- सम्मान उनके लिए होता है, जो इसे कमाते हैं, उनके लिए नहींजो इसे मांगते हैं। जय हिन्द। इस ट्वीट का क्या अर्थ निकाला जाए। क्या नरसिंह यादव के सपने के टूटने से वे खुश हैं? क्या नरसिंह यादव ने विश्व चैंपियनशिप में जीत कमाई नहीं थी, मांगी थी? क्या पहलवानों की आपसी प्रतिद्वंद्विता में खेल भावना के हारने का जरा भी मलाल उन्हें नहींहै? ओलंपिक यात्रा शुरु करने के चंद दिनों पहले डोप टेस्ट में दोषी पाया जाना, नरसिंह यादव के खेल करियर के लिए बड़ा झटका है, साथ ही भारत की उम्मीदों को तोडऩे वाला है। नरसिंह यादव कोई न कोई पदक अवश्य लाएंगे, ऐसी आशा सभी को थी। हरियाणा में भारतीय खेल प्राधिकरण के चौधरी देवीलाल रीजनल सेंटर में वे पहलवान सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त की तस्वीरों के सामने दिन-रात ओलंपिक में पदक हासिल करने के लिए मेहनत कर रहे थे। ये दोनों उनके प्रेरणास्रोत रहे हैं। बेहद साधारण पृष्ठभूमि से उठकर ओलंपिक तक जाने की योग्यता हासिल करना उनके लिए काफी चुनौती भरा सफर था, पर पदक के सपने को आंखों में पाले वे आगे बढ़ते रहे। लेकिन राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (नाडा) के डोप टेस्ट में फेल होने के बाद अब यह सफर थमता दिख रहा है। नाडा का फैसला जब नरसिंह यादव के खिलाफ आया तो वे ही नहींउनके साथी, भारतीय कुश्ती संघ और तमाम खेल प्रेमी हैरान रह गए। नरसिंह यादव ने खुलकर कहा है कि उनके खिलाफ साजिश हुई है और भारतीय कुश्ती संघ भी ऐसा कह रहा है। नाडा उन्हें जो भी सजा सुनाए, अगर साजिश की बात उठी है, तो फिर पूरी पड़ताल होनी ही चाहिए। गौरतलब है कि नरसिंह यादव किसी निजी प्रशिक्षण केेंद्र में नहींथे, बल्कि विगत कई महीनों से साई के केेंद्र में अभ्यास कर रहे थे, जहां प्रतिबंधित दवाएं उपलब्ध नहींहो सकती। नरसिंह यादव के शरीर में प्रतिबंधित दवा की अच्छी-खासी मात्रा पाई गई है। इससे यह शक प्रबल होता है कि उनके खाने में ये दवा मिलाई गई है। उनके ट्रेनिंग पार्टनर संदीप यादव को भी डोपिंग का दोषी पाया गया है। नरसिंह यादव कह रहे हैं कि ओलंपिक में जाने के कुछ दिनों पहले मैं ऐसी दवा क्यों लूंगा, जबकि मैं डोपिंग के बारे में अच्छे से जानता हूं। उनके तर्क को यूं खारिज नहींकिया जा सकता। हरियाणा के साई केेंद्र के उनके साथी बता रहे हैं कि डोपिंग का दोषी पाए जाने से वे इतना निराश थे कि आत्महत्या के बारे में सोच रहे थे। ऐसी बातों में कितनी सच्चाई है, यह कहा नहींजा सकता, किंतु नरसिंह यादव की निराशा को समझना कठिन नहींहै। अगर वे किसी साजिश का शिकार हैं तो यह विचारणीय है कि देश में खेल और खिलाडिय़ों के लिए कैसा माहौल तैयार हो रहा है और कैसे हम नौजवान खिलाडिय़ों से उम्मीद करें कि वे सारी बातें भूलकर केवल मछली की आंख पर ध्यान केन्द्रित करें।

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