• दुर्घटनाओं का खुला द्वार

    सप्ताहांत की छुट्टी के बाद सोमवार को सुबह-सुबह बस्ते और टिफिन-बोतल के साथ स्कूल यूनिफार्म में सजे बच्चों को स्कूल जाने के लिए तैयार देखना बड़ा ही सामान्य दृश्य है, लेकिन फिर भी यह मनोहारी लगता है।...

    सप्ताहांत की छुट्टी के बाद सोमवार को सुबह-सुबह बस्ते और टिफिन-बोतल के साथ स्कूल यूनिफार्म में सजे बच्चों को स्कूल जाने के लिए तैयार देखना बड़ा ही सामान्य दृश्य है, लेकिन फिर भी यह मनोहारी लगता है। उत्तरप्रदेश के भदोही के टेंडरहार्ट स्कूल के बच्चे भी दो दिन की छुट्टी के बाद अपनी स्कूल वैन में सवार स्कूल के लिए सुबह-सुबह निकले थे। शिक्षकों से प्रोत्साहन पाने के लिए उन्होंने अपना गृहकार्य पूरा किया होगा। उनकी माताओं ने बड़े चाव से उन्हें टिफिन तैयार करके दिया होगा। दोस्तो के साथ आज कितनी बातें करनी हैं, कौन सा नया खेल खेलना है, ऐसा ही सब सोचते हुए वे वैन में जा रहे होंगे। लेकिन उन्हें नहींपता था कि आज के बाद वे न पढ़ पाएंगे, न खेल पाएंगे, और न ही जिंदा रह पाएंगे। उनकी वैन भदोही के पास मानवरहित रेलवे क्रासिंग से गुजर रही थी, तभी तेज रफ्तार पैसेंजर ट्रेन ने उसे टक्कर मार दी। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि 8 बच्चों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई, जबकि कई गंभीर रूप से घायल हैं। इस टक्कर में वैन बुरी तरह से कुचल गई है। घटनास्थल पर चारों तरफ बच्चों की किताबें बिखरी पड़ी हैं। घटना के लिए पहली नजर में चालक ही जिम्मेदार नजर आ रहा है। बताया जा रहा है कि क्रासिंग पर कुछ समय पहले संविदा पर एक गार्ड की तैनाती की गई थी। गार्ड ने स्कूल वैन देखते ही उसे रोकने की कोशिश की और लाल झंडी लेकर दौड़ा भी लेकिन चालक ने उसकी नहीं सुनी। गार्ड को देखकर बच्चे भी चिल्लाने लगे लेकिन चालक ने ईयरफोन लगाया हुआ था इसलिए सुन नहीं सका और वैन हादसे का शिकार हो गई। गुस्साए ग्रामीणों ने वैन को आग के हवाले कर दिया और जगह-जगह स्लीपर रखकर ट्रेनों का आवगमन भी ठप कर दिया है। फिलहाल घटना की जांच के लिए पूर्वोत्तर रेलवे ने तीन सदस्यीय समिति बनाई है, जिसकी रिपोर्ट आने पर ही दुर्घटना की जवाबदेही तय की जा सकेगी। गलती चाहे किसी की भी साबित हो, रेलवे अपनी जिम्मेदारी किस पर डालेगा। देश में 9340 मानवरहित रेलवे क्रासिंग हैं, जिसमें सबसे ज्यादा गुजरात में हैं, फिर उत्तरप्रदेश में हैं। वैसे किस प्रदेश में मानवरहित रेलवे क्रासिंग कम हैं या किस में ज्यादा, इससे अधिक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि ऐसी क्रासिंग पर दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कैसी योजनाएं रेलवे के पास हैं। भदोही में जो भयंकर हादसा हुआ, उसके पहले कई अन्य राज्यों में हो चुका है। कुछ साल पहले हैदराबाद में ऐसे ही एक स्कूल बस की दुर्घटना हुई थी। बिहार में बारातियों की गाड़ी ट्रेन से टकरा गई थी। दो साल पहले उत्तरप्रदेश में राज्यमंत्री सतईराम यादव व उनके दो सहायकों की मानवरहित क्रासिंग में मृत्यु हो गई थी। इस तरह के कई मामले होते रहे हैं और हर बार यह चिंता जतलाई जाती है कि कब तक ऐसी दुर्घटनाएं होती रहेंगी। हर रेल बजट में रेलवे क्रासिंग पर सुरक्षा का मुद्दा जरूर उठता है और हर रेल मंत्री दुर्घटनाओं पर रोक लगाने की प्रतिबद्धताएं दर्शाता है। इस सरकार में भी ऐसा ही है, लेकिन तमाम प्रतिबद्धताओं के बावजूद ऐसी एक भी दुर्घटना होती है तो सवाल उठना लाजिमी है। रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में कहा था कि पिछले दो वर्षों में अर्थात 2014 से 2016 तक बिना चौकीदार वाले रेलवे क्रासिंग पर 890 चौकीदार तैनात किए गए हैं। जबकि बीते छह महीनों में ऐसे क्रासिंग पर 91 चौकीदारों की तैनाती हुई है। अब अगले दो सालों में यानी 2017 से 2019 तक ऐसे क्रासिंग पर चौकीदारों की तैनाती धन की उपलब्धता पर निर्भर रहेगी। चौकीदारों की नियुक्ति का होना अच्छी बात है, किंतु अभी इस परीक्षा में रेलवे को तब तक उत्तीर्ण नहींकिया जा सकता, जब तक एक भी रेलवे क्रासिंग बिना फाटक और चौकीदार के रहेगी। यह सही है कि खर्च की अधिकता और संसाधनों की कमी के कारण कई आवश्यकताएं पूरी करने में सरकार असमर्थ है, पर हर रेलवे क्रासिंग पर पूरी सुरक्षा ऐसी आवश्यकता है, जिसका सीधा संबंध हमारी जिंदगी से है। इसे टालेंगे तो नुकसान हमारा ही है।

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