प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गांवों के विकास की नई परिकल्पना करते हुए सांसदों से कहा था कि कुछ गांवों को गोद लेकर उन्हें आदर्श ग्राम के रुप में विकसित करें। उनकी इस सोच ने राज्य सरकारों को भी प्रभावित किया। छत्तीसगढ़ सरकार ने गांवों के विकास की इस परिकल्पना को साकार करने के लिए विधायकों को जिम्मेदारी सौंप दी। आदर्श ग्राम की इस सोच से विकास हुआ हो, लेकिन ग्रामीणों में विकास की ललक जरुर जागी है। एक आदर्श ग्राम के लोग यदि अपने गांवों में बुनियादी सुविधाओं की समस्या से जूझ रहे हैं तो ग्राम विकास की इस नई परिकल्पना के प्रति शासन-प्रशासन के नजरिए का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे ही एक गांव के लोगों ने कलेक्टर के दफ्तर पहुंचकर उन्हें गांव का हाल सुनाया। बिलासपुर जिले के बिल्हा ब्लॉक का विधायक आदर्श ग्राम है धौराभाठा। इस क्षेत्र के विधायक विपक्षी पार्टी (कांग्रेस) से हैं। गांव के लोगों का कहना है कि गांव में लोगों को कीचडय़ुक्त गली से होकर गुजरना पड़ रहा है। पीने के साफ पानी का भी प्रबन्ध नहीं है। बिजली के तार जैसे-तैसे लटके हुए हैं। हल्की हवा चली नहीं कि बिजली गुल हो जाती है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन पाने वाली हितग्राहियों को नियमित भुगतान तक नहीं हो रहा है। रोजगार गारंटी के कार्यों को हुए महीनों हो गए, लेकिन भुगतान नहीं हुआ। यह एक आदर्श ग्राम की व्यथा है। वैसे गांवों में यह समस्या आम है। किसी गांव को आदर्श ग्राम के रुप में विकसित करने का बीड़ा उठाने वाले सांसदों-विधायकों के लिए उस गांव में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिए क्योंकि इसके लिए उन्हें विशेष विकास निधि उपलब्ध कराई जाती है। अब एक विधायक के लिए उस गांव में सीसी रोड बनवाना कैसे संभव नहीं, यह विचारणीय प्रश्न है। विधायक यदि अपने गोद लिए गांव के विकास के लिए अतिरिक्त वित्तीय संसाधन चाहते हों तो सरकार उन्हें मना भी नहीं कर सकती। जब आम नागरिकों की मांग पर इस तरह के कार्यों के लिए मुख्यमंत्री, मंत्री धन मंजूर कर रहे हो तो एक विधायक या सांसद की मांग न मानने का कोई कारण नहीं हो सकता। एक विधायक के लिए यह भी कोई मुश्किल काम नहीं है कि वह एक गांव में पेंशन तथा मजदूरों को उनकी मजदूरी भुगतान में आ रही बाधाओं को दूर न कर सके। अगर उसके गोद लिए गांव में इस तरह की समस्या है तो उस विधायक, सांसद की अकर्मण्यता ही मानी जाएगी। अगर ऐसे गांव के लिए विशेष सरकारी या गैरसरकारी मदद की आवश्यकता हो तो उन्हें यह काम करना चाहिए। सांसद, विधायक पद की गरिमा बनाए रखने के लिए सरकार को भी ऐसे गांवों में विकास कार्यों की मांग को प्राथमिकता से पूरा करने का प्रयास जरुर करना चाहिए। एक आदर्श ग्राम के लोग अपने गांव की पीड़ा बताने के लिए कलेक्टर के दफ्तर पहुंच जाएं तो उस गांव को गोद लेने वाले सांसद, विधायक के लिए यह सम्मान की बात नहीं कही जा सकती। प्रधानमंत्री के गांवों के विकास की इस परिकल्पना में कोई खोट नहीं है, कुछ सांसद, विधायकों की कमजोरी है तो कुछ चीजों को हल्के में लेने की अधिकारियों की प्रवृत्ति इसके लिए दोषी है। इस तरह तो कोई आदर्श ग्राम सिर्फ कागज पर ही आदर्श हो सकता है, धरातल पर उसके आदर्श ग्राम होने में दसियों साल भी शायद कम पड़ जाएं।