• आतंक के निशाने पर तुर्की

    तुर्की पिछले कुछ ïवर्षों से निरंतर आतंकवादियों के निशाने पर है। एक ओर कुर्द विद्रोहियों से संघर्ष, दूसरी ओर आईएस का बढ़ता खतरा तुर्की के लिए रोजाना नई परेशानियों का सबब बनता जा रहा है। ...

    तुर्की पिछले कुछ ïवर्षों से निरंतर आतंकवादियों के निशाने पर है। एक ओर कुर्द विद्रोहियों से संघर्ष, दूसरी ओर आईएस का बढ़ता खतरा तुर्की के लिए रोजाना नई परेशानियों का सबब बनता जा रहा है। विगत दो वर्षों में तुर्की पर कई आतंकी हमले हुए, कभी बस को निशाना बनाया गया, कभी भरे बाजार में धमाके हुए, कभी सेना के जवानों पर हमला हुआ, कभी पर्यटक स्थल पर। दिसंबर 15, जनवरी, फरवरी, मार्च 16 और हाल ही में सात जून को एक आतंकी हमला वहां हुआ था और अब जून के बीतते दिनों में तुर्की का प्रमुख शहर इस्तांबुल धमाकों से फिर दहल गया है। इस बार आतंकी हमला किया गया अतातुर्क अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर, जिसे देखकर ब्रसेल्स के हवाई अड्डे पर हुए हमलों के जख्म हरे हो गए। मार्च से लेकर जून-जुलाई तक यूरोप में पर्यटकों का जमावड़ा रहता है और इस्तांबुल से काफी आवाजाही होती है। अतातुर्क हवाई अड्डा दुनिया के चंद व्यस्ततम हवाईअड्डों में गिना जाता है। हमलावरों ने संभवत: इसलिए इस बार यहां हमला किया। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक हमले की जिम्मेदारी किसी संगठन ने नहींली है, लेकिन शक की सुई इस्लामिक स्टेट पर जा रही है। यह विडंबना ही है कि जो संगठन इस्लाम का स्वयंभू रक्षक बन बैठा है, वह अपनी क्रूरता से रमजान के पवित्र माह में भी बाज नहींआ रहा। उसके ऐसे कृत्यों से ही जाहिर हो जाता है कि जिस इस्लामिक स्टेट की बात वह करता है, उसमें धर्म और मानवता के लिए कितनी जगह है। आईएस की नृशंसताएं दिन ब दिन इसलिए बढ़ती जा रही हैं कि क्योंकि आतंकवाद से लडऩे के लिए विश्व के देशों में एकजुटता नहींहै। सभी अपने-अपने स्वार्थों को तौल कर ही आगे बढ़ रहे हैं। वर्ना जो अमरीका बिना कारण इराक, अफगानिस्तान आदि को तबाह कर वहां वर्षों तक अपने सैनिक अड्डे कायम रख सकता है, उसके लिए क्या मुश्किल है कि वह कुछेक शहरों तक सिमटे बैठे आईएस को खत्म न कर पाए। सीरिया और इराक के कुछ हिस्सों में अपना शासन चला रहे आईएस से निपटने की जिम्मेदारी अकेले अमरीका की कतई नहींहै, बाकी देशों की भी है, लेकिन सब अपने-अपने तरीके से लडऩा चाहते हैं। अभी कुछ समय पहले तक रूस ने आईएस के खिलाफ ताबड़तोड़ हवाई हमले किए थे, और उसके अड्डों को नष्ट करने में उसे सफलताएं भी मिल रही थीं, लेकिन अमरीका और उसके सहयोगियों को तब इस बात पर आपत्ति थी कि आईएस से लड़ाई के बहाने रूस सीरिया की असद सरकार को मदद कर रहा है, उसके विरोधियों पर हमला कर रहा है। तुर्की को भी यही शिकायत थी। इसलिए नवंबर 2015 में रूस के एक लड़ाकू विमान को तुर्की ने इसलिए मार गिराया, क्योंकि वह उसकी हवाई सीमा का उल्लंघन कर रहा था। इसमें रूसी पायलट की मौत हो गई थी। बाद में पता चला कि रूसी विमान तुर्की नहींबल्कि सीरिया के क्षेत्र में था। रूस ने इस घटना से नाराज होकर तुर्की के साथ सारे संबंध तोड़ लिए थे, जबकि तुर्की अपने कृत्य को सही ठहरा रहा था। अभी हाल ही में तुर्की के राष्ट्रपति रेजेप तैयप एर्दुवां ने रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन को इस घटना पर अफसोस जताते हुए माफी मांगी है। इसका आशय यह है कि तुर्की ने अपनी भूल स्वीकार की और वह रूस से संबंध बहाली चाहता है। प्रेक्षकों के मुताबिक इस्तांबुल हवाई अड्डे पर हमले के पीछे एक कारण यह हो सकता है कि तुर्की रूस से संबंध सुधारना चाहता है और दूसरा यह कुर्द विद्रोहियों पर मिल रही सफलता से उपजी खीझ है। कारण जो भी हो, जब इंसान का रक्त पानी की तरह बहता है और हंसते-खेलते लोग अचानक चिथड़ों में तब्दील हो जाते हैं, तो ऐसे दृश्य देखकर रूह कांप जाती है। इस्तांबुल हवाई अड्डे का एक दृश्य बार-बार दिखाया जा रहा है, जिसमें एक हमलावर गोली दागते आगे बढ़ रहा है और एक पुलिसकर्मी उस पर गोली चलाता है, आतंकी के हाथ से बंदूक छिटक जाती है और पुलिसकर्मी उसे पकडऩे आगे बढ़ता है, लेकिन तभी वह आतंकी खुद को उड़ाने के लिए बेल्ट पर हाथ रखता है, इसे देखकर पुलिसकर्मी दूर होता है और एक बड़े धमाके के साथ आतंकवादी मर जाता है। यह सब कुछ 15-20 सेंकड में घटित होता है। फिल्मों में ऐसे दृश्य रोमांच उत्पन्न करते हैं, लेकिन वास्तविकता काफी डरावनी होती है। अगर वह पुलिसकर्मी आतंकी को नहींगिराता, तो अंधाधुंध गोलियां चलाते, न जाने वह कितने लोगों की जान ले लेता। इस्तांबुल के इस हमले के बाद विश्व भर में आतंक के खिलाफ लड़ाई की प्रतिबद्धता दोहराई जा रही है। अमरीका चुनाव में चर्चा का एक और मुद्दा जुड़ गया। लेकिन यह समय इस बात पर विचार करने का भी है कि अगर तुर्की ने प्रारंभ से आईएस के खिलाफ कड़ी रणनीति अपनाई होती, अगर सीरिया से जुड़ती सीमाओं के आर-पार आतंकवादियों और हथियारों की आवाजाही पर सख्ती से रोक लगाई होती, अगर एशिया और पश्चिम को जोडऩे में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का जिम्मेदारी से निर्वहन किया होता, तो शायद इस तरह बार-बार आतंकी हमलों का शिकार वह नहींबनता।

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