• देश जानना चाहता है

    समाचार चैनल टाइम्स नाऊ के एडिटर इन चीफ और अघोषित ब्रांड एम्बेसडर अर्णव गोस्वामी अपनी आग उगलने वाली शैली, तीखे सवाल, चिल्ला कर जवाब मांगना, मुद्दे से भटकने पर फटकार लगा देना, भारत जानना चाहता है के तकियाकलाम के कारण दुनिया भर में भारतीय दर्शकों के बीच मशहूर हैं,...

    समाचार चैनल टाइम्स नाऊ के एडिटर इन चीफ और अघोषित ब्रांड एम्बेसडर अर्णव गोस्वामी अपनी आग उगलने वाली शैली, तीखे सवाल, चिल्ला कर जवाब मांगना, मुद्दे से भटकने पर फटकार लगा देना, भारत जानना चाहता है के तकियाकलाम के कारण दुनिया भर में भारतीय दर्शकों के बीच मशहूर हैं, इतने कि काकरोच भगाने के उत्पाद के विज्ञापन में भी एक किरदार उनके जैसा बना दिया गया है, जो जानना चाहता है कि आखिर काकरोच भागे क्यों नहीं? पत्रकारिता में तीखे स्वाद का तडक़ा लगाने वाले इस मशहूर पत्रकार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में पहला साक्षात्कार दिया। अर्णव गोस्वामी अगर सवाल पूछने के लिए मशहूर हैं, तो मोदीजी का वाकचातुर्य भी जगप्रसिद्ध है। लेकिन वक्तृता में पारंगत ये दो हस्तियां आमने-सामने बैठीं, तो लगा ही नहींकि ये अपने स्वाभाविक रूप में बात कर रही हैं, ऐसा लगा मानो पूरी पटकथा पहले से तैयार थी, जिसमें संशोधन की गुंजाइश भी नहींरखी गई। अर्णव गोस्वामी एक के बाद एक तय सवाल पूछते रहे, मोदीजी अविलंब उनके जवाब देते रहे। अर्णव गोस्वामी ने बिना किसी चीख-चिल्लाहट के, बीच में टोके बगैर सवाल पूछे यह तो एकदम ठीक है, लेकिन उनके जैसे मंजे हुए पत्रकार ने जवाबों से निकलते सवालों को अनदेखा किया और बिना उठाए छोड़ दिया, यह काफी आश्चर्यजनक लगा। इस साक्षात्कार का विज्ञापन तो किसी भारी बड़ी खबर की तरह प्रसारित किया जाता रहा, लेकिन देखने पर यह मन की बात के विस्तार से अधिक नहींलगा। याद पड़ता है कि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से भी जब श्री गोस्वामी ने साक्षात्कार किया था, तो काफी शांत तरीके से प्रश्न पूछे थे, लेकिन प्रश्नों का तीखापन बरकरार था। जबकि मोदीजी के साथ साक्षात्कार में यह बात प्रारंभ से नदारद थी। उत्तरप्रदेश और पंजाब विधानसभा चुनाव की भाजपा की तैयारियों में इस साक्षात्कार से मदद मिलेगी, ऐसा आभास हो रहा था। पिछले दो वर्षों में देश में काफी कुछ बदला, बहुत सी ऐसी घटनाएं घटीं, जिन पर देश के प्रधानमंत्री के विचार जनता सचमुच जानना चाहती थी। लेकिन वे मौन रहे और कुछेक मुद्दों पर तभी अपना मुंह खोला, जब उनका असर व्याप्त हो चुका था। दुनिया के कई देशों की यात्राएं नरेन्द्र मोदी ने की, उनके प्रचारकों ने उन्हें विश्वनेता बना दिया, लेकिन हकीकत में विश्व मानचित्र में भारत किस मजबूती से खड़ा है, इसका सही जवाब शायद ही प्रधानमंत्री दें। अर्णव गोस्वामी से उम्मीद थी कि वे अब तक अनुत्तरित या लंबित पड़े प्रश्न प्रधानमंत्री के सामने उठाएंगे, लेकिन ऐसा नहींहुआ। प्रधानमंत्री कह गए कि अमरीकी कांग्रेस में खूब वाहवाही मिली, जिससे परेशान कुछ दलों ने एनएसजी विफलता को इतना बड़ा मुद्दा बना दिया। इस पर गोस्वामी नहींपूछ सके कि अगर एनएसजी में प्रवेश बड़ा मुद्दा नहींथा, तो फिर उस पर इतनी हाय तौबा, इतनी जल्दबाजी क्यों मचाई गई? जीएसटी को प्रधानमंत्री ने उत्तरप्रदेश और बिहार के गरीबों से जोड़ दिया। अर्णव गोस्वामी ने उत्तरप्रदेश का जिक्र आने पर भी कैराना पर खुलकर बात नहींकी। अर्णव गोस्वामी के आधे से अधिक प्रश्न अमरीका, पाकिस्तान, चीन और विदेश नीति के इर्द-गिर्द घूमते रहे, यह उनकी टीआरपी के लिहाज से सही होगा, लेकिन देश के प्रधानमंत्री से बहुत से प्रश्नों के जवाब अपेक्षित थे मसलन, नेपाल के साथ बीते दिनों संबंधों में जिस तरह खटास आई, उन पर उनका क्या सोचना है? रघुुराम राजन की देशभक्ति पर प्रधानमंत्री ने पूर्ण विश्वास जतलाया, उनके कार्य पर संतोष जतलाया, लेकिन अर्णव ने यह नहींपूछा कि आपने उन्हें दूसरे कार्यकाल के लिए क्यों नहींकहा या जब सुब्रमण्यम स्वामी उन पर एक के बाद एक आरोप लगा रहे थे, तभी उन्हें क्यों नहींरोका गया? सांप्रदायिक बयानबाजी पर नरेन्द्र मोदी का कहना था कि उस पर ध्यान नहींदेना चाहिए, लेकिन उनके ही मंत्रिमंडल और पार्टी के लोग ध्रुवीकरण की राजनीति को बढ़ावा क्यों दे रहे हैं, लव जिहाद का मुद्दा खड़ा करना कितना उचित है, ऐसा कोई सवाल प्रधानमंत्री के सामने नहींरखा गया। चुनावों पर मोदीजी से सवाल पूछे गए, इस तारतम्य में पूछा जा सकता था कि अरुणाचल प्रदेश या उत्तराखंड में राजनैतिक अस्थिरता उत्पन्न कर लाभ लेने का जो आरोप भाजपा है,उस पर उनका क्या कहना है? एफटीटीआई, निफ्ट में क्रमश: गजेंद्र चौहान व चेतन चौहान की नियुक्ति या पहलाज निहलानी द्वारा खुद को खुल कर प्रधानमंत्री का चमचा कहना, इस पर भी सवाल पूछे जा सकते थे। हो सकता है सार्वजनिक जीवन से हंसी-मजाक गायब होने की शिकायत करने वाले मोदीजी कोई मजेदार सा जवाब दे देते। ललित मोदी, रोहित वेमुला, उच्चशिक्षण संस्थानों में बढ़ती दखलंदाजी, व्यापम ऐसे कई मुद्दे हैं, जिन पर संसद के पिछले सत्रों में काफी हंगामा मचा, मोदीजी वहां चुप रहे और अर्णवजी के मंच पर ये सवाल शायद उनकी सुविधा के लिए नहींउठाए गए। अर्णव गोस्वामी के कार्यक्रम में अक्सर नीचे से आग निकलती दिखाई जाती है, ताकि शब्दों की चिंगारी कम लगे, तो रही-सही कसर आग के दृश्य से पूरी हो जाए और मामला ज्वलंत लगे। इस आग, इस ज्वलनशीलता पर प्रधानमंत्री के सामने बैठने से कौन सा पानी फिर गया, देश जानना चाहता है।

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