• सामाजिक जिम्मेदारी में उदासीनता

    प्राकृतिक संसाधनों में समाज के हिस्से का दोहन करने वाले उद्योगों से यह अपेक्षा की गई है कि वे बदले में अपनी जिम्मेदारी भी निभाएं। वे स्वेच्छा से ऐसा नहीं कर सके इसलिए यह नियम बनाना पड़ा कि वे अपने लाभांश का पांच प्रतिशत हिस्सा सामाजिक विकास के लिए दें। ...

    प्राकृतिक संसाधनों में समाज के हिस्से का दोहन करने वाले उद्योगों से यह अपेक्षा की गई है कि वे बदले में अपनी जिम्मेदारी भी निभाएं। वे स्वेच्छा से ऐसा नहीं कर सके इसलिए यह नियम बनाना पड़ा कि वे अपने लाभांश का पांच प्रतिशत हिस्सा सामाजिक विकास के लिए दें। निजी या सार्वजनिक क्षेत्र, सभी उद्योगों को इस नियम का पालन करना आवश्यक है लेकिन उद्योग इसका उल्लंघन करने से बाज नहीं आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर संभाग के कोरबा, जांजगीर और रायगढ़ में सबसे ज्यादा उद्योग हैं। सामाजिक उत्तरदायित्व स्कीम (सीएसआर) के तहत इन उद्योगों को सामुदायिक विकास के लिए लाभांश की पांच फीसदी राशि प्रशासन को जमा करानी चाहिए मगर उद्योग इसमें आनाकानी कर रहे हैं। रायगढ़ जिला प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया है और उद्योगों को इस मामले में उदासीनता या लापरवाही के लिए आगाह किया है। इस स्कीम के तहत उद्योग अपनी ओर से भी प्रस्ताव दे सकते हैं, लेकिन उस प्रस्ताव पर तभी आगे बढ़ा जा सकता है जब प्रशासन की उसमें सहमति हो। सीएसआर पद में हर साल एक बड़ी धनराशि प्रशासन को प्राप्त होती है। इसका उपयोग कहां और किन उद्देश्यों में किया गया, लोगों को पता तक नहीं चल पाता। पिछले कुछ वर्षों में सरकार का विशेष जोर पौधरोपण पर है। इस राशि से पथ पौधरोपण का काम भी हाथ में लिया गया था। ईंट के जालीदार घेरे में पौधे लगाने की योजना बनाई गई थी। बारिश के ठीक पहले यह काम शुरू हुआ था और बारिश खत्म होने के साथ न तो ईंट के घेरे बचे और न ही पौधे। यह काम सरकारी एजेन्सियों के भरोसे छोड़ दिया गया। यदि यह सामूहिक जिम्मेदारी की भावना से किया गया होता तो पेड़ों को बचाया जा सकता था। अगर उद्योग सीएसआर की राशि ईमानदारी से दे और उनका उद्देश्य भी सामुदायिक विकास में भागीदारी निभाना हो तो उन्हें यह देखना भी चाहिए कि इस धनराशि का सदुपयोग हो रहा है या नहीं। प्रशासन को उद्योगों से राशि जमा कराने का दबाव बनाने के साथ उस राशि के उपयोग पर व्यापक सहमति के नजरिए से काम करना चाहिए। ऐसा कोई काम करना चाहिए जिसमें प्रशासन और उद्योग के साथ जनता भी उसमें सहभागी बन सके। उद्योग वाले इलाकों में ऐसी कई समस्याएं होती हैं, जिनसे लोग रोज दो-चार होते हैं। सडक़, बिजली, पानी की समस्या भी हो सकती है। आज साधन और तकनीक की कोई कमी नहीं हैं। कुछ ऐसे कार्य हो सकते हैं, जिसे लोग याद रख सकें। अगर उद्योगों से सामुदायिक विकास के लिए मिलने वाली राशि का उपयोग जनता को प्रत्यक्ष लाभ मिलने वाले कार्यों में हो तो उद्योगों से उनका रिश्ता भी बढ़ेगा। औद्योगिक विकास के साथ ही विवाद भी बढ़ते चले जा रहे हैं। कही भू-विस्थापितों के पुनर्वास का विवाद है तो कहीं प्राकृतिक संसाधनों के बेतरतीब दोहन का। औद्योगिक विकास के लिए जरुरी है कि प्रभावित क्षेत्र के लोगों का उद्योगों के साथ अपनापन का भाव हो। ऐसा कम ही देखने में आता है। इसकी वजह यह है कि आम लोगों के हितों पर पहले ही दिन से आपात पहुंचाने की कोशिश शुरू हो जाती है और उद्योग की बुनियाद विवाद से शुरु  होता है। प्रशासन की मुश्किल यह होती है कि वह उद्योग का पक्ष ले या आम लोगों का। जहां प्रशासन गुणदोष के आधार पक्ष लेने का उचित फैसला नहीं कर पाता वहा विवाद बढ़ता जाता है। ऐसे माहौल में उद्योगों के साथ क्षेत्रीय विकास की संभावनाएं भी प्रभावित होती हैं।

अपनी राय दें