• कातिल का ठिकाना ढूंढा जाए

    विगत सप्ताह कराची में सरेराह कत्ल कर दिए गए मशहूर कव्वाल अमजद साबरी की शवयात्रा में शामिल एक व्यक्ति ने दुख और क्षोभ में यह शेर कहा। ...

    हमसे कातिल का ठिकाना नहींढूंढा जाताहम बड़ी धूम से बस शोक मना लेते हैंविगत सप्ताह कराची में सरेराह कत्ल कर दिए गए मशहूर कव्वाल अमजद साबरी की शवयात्रा में शामिल एक व्यक्ति ने दुख और क्षोभ में यह शेर कहा। एक कलाकार को बीच सडक़ पर गोलियों से भून कर आतंकवादी यह बताना चाहते थे कि अल्लाह की निंदा उन्हें मंजूर नहीं। धर्म और भगवान की रक्षा का ठेका उन्हें किसी ने नहींदिया। किसी निहत्थे, निर्दोष को मारने से दुनिया का कोई ईश्वर प्रसन्न नहींहोगा। लेकिन कुछ लोगों के लिए यह बहुत सुविधाजनक है कि अपना आतंक, अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए वे धर्म का सहारा ले लें। ऐसे लोग हर धर्म में मौजूद हैं, लेकिन जब आतंकवादियों की पहचान करनी होती है तो हमेशा अपना दामन छोड़, दूसरे के दाग देखने की आदत बना ली गई है। यह आदत इंसानियत में अविश्वास का बीज बो चुकी है और इसका जहर दुनिया में तेजी से फैलता जा रहा है। पाकिस्तान की सरकार और सेना का तो पता नहीं, लेकिन आम जनता अमजद साबरी की हत्या से दुखी ही नहींनाराज भी है। निरंतर आतंकी हमलों से देश जिस तरह पीछे जा रहा है, उससे परेशान है। सोमालिया में राजधानी मोगादिशू के एक होटल में इस रमजान माह में दूसरी बार आतंकी हमला हुआ। इस बार हुए आत्मघाती हमले में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री बी मोहम्मद हमजा समेत 15 लोग मारे गए हैं। इधर मेडागास्कर में 56वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान एक स्टेडियम में विस्फोट से 2 लोगों की मौत हो गई है और लगभग 70 लोग घायल हो गए हैं। सरकार इसे आतंकी हमला मान रही है। एक के बाद एक हुई ये तमाम आतंकी घटनाएं वैश्विक खबरों में वह स्थान नहींबना पाई, जो ब्रेक्जिट को लगातार हासिल हो रहा है। हो भी क्यों न?  ब्रेक्जिट से बड़े आर्थिक हित सीधे-सीधे जुड़े हैं। बहरहाल, इन आतंकी घटनाओं के बाद भारत भी एक बड़ी आतंकी हिंसा का शिकार हुआ। जम्मू-कश्मीर के पंपोर में सीआरपीएफ की एक बस को आतंकियों ने सीधा निशाना बनाया, जिसमें 8 जवान शहीद हुए हैं। ये सभी फायरिंग के अभ्यास से लौट रहे थे, तभी बीच सडक़ पर उनकी बस के आगे आतंकवादियों ने अपनी कार अड़ा दी और गोलियां दागना शुरु कर दिया। कहा जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने सीआरपीएफ को पहले ही ऐसे किसी हमले की आशंका के बारे में सूचित किया था। बावजूद इसके कोई सावधानी नहींबरती गई। शनिवार सुबह 7 बजे ये चेतावनी जारी की गई, लेकिन फिर भी जवानों से भरी बस का बिना सुरक्षा मानकों को अपनाए अकेले चलना सुरक्षा में बड़ी चूक है। ऐसी ही चूक का खामियाजा नक्सलप्रभावित क्षेत्रों में पहले भुगता जा चुका है, लेकिन हर बार मामले की जांच करवाने का आश्वासन मिलता है, सुरक्षा की दुरुस्त व्यवस्था नहीं। इस बार भी कहा गया है कि गृह मंत्रालय के अधिकारियों का तीन सदस्यीय दल यह पता लगाने के लिए मंगलवार को कश्मीर का दौरा करेगा कि पम्पोर में हुए हमले के मामले में क्या कोई चूक हुई थी। ज्ञात हो कि यह हमला हाल के वर्षों में सुरक्षा बलों पर होने वाला भीषण हमला था। अधिकारियों का दल सीमापार से घुसपैठ में हुई संभावित बढ़ोतरी एवं जम्मू कश्मीर में अद्धसैनिक बलों के काफिले के आवागमन में पालन किये जाने वाले तौर तरीकों का भी पता लगाएगा। इस दल की क्या रिपोर्ट आएगी और उसमें जिन खामियों का जिक्र होगा, उन्हें कैसे सुधारा जाएगा, इस बारे में अभी कुछ नहींकहा जा सकता। लेकिन भारत की ओर से तीखी बयानबाजी तो की ही जा सकती है, जो गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने प्रारंभ कर दी है। उन्होंने इस हमले की निंदा करते हुए कहा कि इन आतंकवादियों और हमारे पड़ोसी देश द्वारा भारत को अस्थिर करने का एक प्रयास किया जा रहा है। राजनाथ सिंह ने याद किया कि एक बार मैंने जवानों से कहा था कि हम पहली गोली नहीं चलाएंगे लेकिन जब हम पर हमला हो तो जवाबी कार्रवाई करते समय गोलियां नहीं गिनिये। वह स्थायी आदेश अब भी लागू है। वीर रस से ओतप्रोत उनके ये वचन हौसला भरने में सक्षम हैं। किंतु इनसे आतंकी हमलों की रोकथाम में मदद कैसे मिलेगी? पहली गोली किसने चलाई और बाद में कितनी गोलियां चलीं, बजाए इस हिसाब-किताब के, हमें इसका हिसाब रखना चाहिए कि एक इंसान की भी हत्या होती है, तो उससे मानवता का कितना नुकसान होता है। आतंकवाद पर ऊपरी लड़ाई से समस्या का हल कभी नहींनिकलेगा। इसकी जड़ों तक पहुंचने की यात्रा जब तक प्रारंभ नहींहोगी, इसी तरह बीच सडक़ पर हत्याएं होती रहेंगी। वक्त की मांग है कि कातिल का ठिकाना ढूंढा जाए।

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