• सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला : दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात की अनुमति

    नई दिल्ली ! सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक ऐतिहासिक फैसले सुनाते हुए 24 सप्ताह से अधिक की गर्भवती बलात्कार पीड़िता को गर्भपात कराने की अनुमति प्रदान कर दी। न्यायालय ने यह फैसला महिला की जान को उत्पन्न हुए खतरे को देखते हुए दिया।...

    महिला की जान बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला नई दिल्ली !   सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक ऐतिहासिक फैसले सुनाते हुए 24 सप्ताह से अधिक की गर्भवती बलात्कार पीडि़ता को गर्भपात कराने की अनुमति प्रदान कर दी। न्यायालय ने यह फैसला महिला की जान को उत्पन्न हुए खतरे को देखते हुए दिया। भारत में 20 सप्ताह से अधिक का गर्भ गिराना गैर कानूनी है और इसीलिए पीडि़त महिला ने गर्भपात की इजाजत सर्वोच्च न्यायालय से मांगी थी। न्यायमूर्ति जे एस केहर और न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता को गर्भपात की अनुमति नहीं दी गई तो उसकी जान को खतरा हो सकता है। शीर्ष अदालत ने इस मामले को ‘लाइफ बनाम लाइफ’ मानते हुए कहा कि महिला की जान को खतरा है इसलिए गर्भपात किया जा सकता है, लेकिन 1971 का कानून सही है या नहीं, इस पर न्यायालय सुनवाई करता रहेगा।  जान को खतरा होने पर मिली गर्भपात की इजाजत सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह चिकित्सकीय गर्भपात निरोधक कानून 1971 के दायरे में ही गर्भपात की अनुमति दे रहा है। पीठ ने कहा कि इस कानून की धारा तीन (बी) जहां कहती है कि 20 सप्ताह से अधिक की गर्भवती महिला को गर्भपात कराने की अनुमति नहीं दी जा सकती, वहीं धारा पांच कहती है कि यदि गर्भवती महिला की जान को खतरा हो तो कभी भी गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है। चिकित्सकीय रिपोर्ट के आधार पर दिया फैसला शीर्ष अदालत ने गत शुक्रवार को मुंबई के केईएम अस्पताल के चिकित्सकों का एक बोर्ड गठित किया था, जिसने आज पीठ के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में मेडिकल बोर्ड ने इस बात की पुष्टि की है कि याचिकाकर्ता के गर्भ में पल रहा भ्रूण असामान्य है और यदि गर्भपात नहीं कराया गया तो बलात्कार पीडि़ता के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। इसी आधार पर शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया।  गर्भ के असमान्य होने पर पीडि़त महिला ने गर्भपात का निर्णय लिया लेकिन दो जून 2016 को डॉक्टरों ने उसका गर्भपात करने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि उसे गर्भधारण किए हुए 20 हफ्ते से ज्यादा हो चुके थे। महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि 1971 में जब कानून बना था तो उस समय 20 हफ्ते का नियम सही था, लेकिन अब समय बदल गया है, अब 26 हफ्ते बाद भी गर्भपात हो सकता है।


    क्या था मामला पीडि़त महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि वह बेहद गरीब परिवार से है। उसके मंगेतर ने शादी का झांसा देकर उसके साथ बलात्कार किया और उसे धोखा देकर दूसरी लडक़ी से शादी कर ली, जिसके बाद उसके मंगेतर के खिलाफ बलात्कार का मामला भी दर्ज किया गया। महिला को जब उसके गर्भ के बारे में पता चला तो उसने कई मेडिकल जांच करवाई, जिससे पता चला कि उसके पेट में पल रहा बच्चा असामान्य है और अगर वह गर्भपात नहीं कराती है तो उसकी जान जा सकती है।

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