• सिलिकोसिस पीडि़तों का हाल : कार्यस्थल पर न शौचालय, न रोशनदान, मजदूरों ने लगवाये पंखे

    भोपाल ! एक दशक पुराने सिलिकोसिस मामले में सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने सिलिकोसिस पीडि़तों के हक में फैसला दिया। हाल ही में न्यायालय ने गुजरात सरकार को उनके जीवन की सुरक्षा न कर पाने के लिए जिम्मेदार माना। वहीं मध्यप्रदेश सरकार को सिलिकोसिस प्रभावितों के पुनर्वास का आदेश दिया है।...

     रूबी सरकार

    मानव अधिकार आयोग ने करवाया विधि छात्रों से शोध

    भोपाल !   एक दशक पुराने सिलिकोसिस मामले में सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने सिलिकोसिस पीडि़तों के हक में फैसला दिया। हाल ही में न्यायालय ने गुजरात सरकार को उनके जीवन की सुरक्षा न कर पाने के लिए जिम्मेदार माना। वहीं मध्यप्रदेश सरकार को सिलिकोसिस प्रभावितों के पुनर्वास का आदेश दिया है। न्यायालय ने एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर सिलिकोसिस जैसी व्यवसाय जन्य बीमारी के कारणों का पता लगाने और इसके पीडि़तों की समस्याओं का हल करने की कार्ययोजना बनाने के निर्देश भी दिये। इधर मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने भी सिलीकोसिस बीमारी से मजदूरों के आवेदन को संज्ञान में लेते हुए संबंधित विभागों से पूछताछ शुरू कर दी, साथ ही आयोग ने मंदसौर जिले के मुल्तानपुरा में सिलीकोसिस बीमारी के संदर्भ में एक लघु शोध कराया, जिससे इस बीमारी के बढऩे के कुछ हद कारणों पता चला। शोध रिपोर्ट में बताया गया है, कि मजदूरों को उनके कल्याण के बनी योजनाओं की जानकारी ही नहीं है। न तो उन्हें साप्ताहिक अवकाश मिलता है और न ही यहां कारखानों में अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारीकरण की कोई सुचारू व्यवस्था हैं, और तो और पेंसिल कारखानों की राख आबादी वाले क्षेत्रों को भी लगातार प्रदूषित कर रही है। दूसरी ओर मेडिकल कैम्प मुल्तानपुरा से लगभग 10 किमी दूर लगाये जाते हैं। मजदूरों को या तो इस कैम्प की सूचना नहीं मिलती या फिर दूर होने की वजह से वे आसानी से पहुॅच नहीं पाते, जिससे उनका नियमित स्वास्थ्य परीक्षण नहीं हो पाता। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है, कि  पेंसिल कारखानों में  पहले से जो मजदूर  पीडि़त हैं, उनके लिए सुरक्षा के उपाय नहीं होते, जिससे दूसरे मजदूर प्रभावित हो रहे हैं। इससे पीडि़तों की संख्या बढ़ती जा रही है। शोध के बाद आयोग के समक्ष जो रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है, उसमें बताया गया है, कि पीडि़तों को डेढ़ हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन दिए जाते हैं ,जो उनके परिवार के भरण-पोषण के लिए नाकाफी हैं। इसके अलावा अधिकतर मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल रही है,श्रमिकों को प्रति बाक्स केवल तीन रुपए दिए जा रहे हैं। अधिकतर मजदूर उपचार से वंचित हैं, महिला मजदूरों व अन्य के प्रसाधन की व्यवस्था नहीं है। प्रसाधन कक्ष मजदूरोंं से ही राशि लेकर बनाए गए हैं। इनके नियमित स्वास्थ्य परीक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है, अधिकतर मजदूरों को दिए गए मास्क गुणवत्ता विहीन हैं। पेंसिल कारखानों में हवा की आवाजाही की कोई व्यवस्था नहीं है। मजदूरों ने स्वयं अपने खर्चे पर एग्जास्ट या पंखे लगाये हैं। सभी के परीक्षण कैम्प में नहीं होने से प्रारंभिक अवस्था में बीमारी का पता नहीं लगता और कार्यस्थल पर पेयजल के लिए खुली टंकियां रखी हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है, कि कर्मकार कल्याण मण्डल की भूमिका भी ठीक नहीं है, मण्डल व्दारा पिछले एक साल से नि:शुल्क दवाएं ही नहीं दी गई। जब शोधार्थी विधि छात्रों द्वारा कर्मकार कल्याण मण्डल से मजदूरों के उपचार की जानकारी मांगी गई, तो उनके पदाधिकारियां ने जानकारी देने से इंकार कर दिया। यहां पेंसिल कारखानों में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे भी काम करते हैं, इस पर किसी का ध्यान नहीं है। इसके अलावा 12 फीसदी मजदूरों का किसी भी तरह का बीमा नहीं हैं।     आयोग ने पूर्व में ही  इस पर प्रमुख सचिव, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और प्रमुख सचिव श्रम विभाग से जानकारी चाही है, वहीं कलेक्टर शिवपुरी और मंदसौर, श्रम अधिकारी तथा कर्मकार कल्याण मण्डल से इससे संबंधित अनेक मुद्दों पर जवाब चाहा है। आयोग के अपर संचालक जनसंपर्क एलआर सिसोदिया ने बताया, कि मंदसौर के मुल्तानपुरा की रिपोर्ट में मजदूरों की पीड़ादायी स्थिति सामने आने पर आयोग ने जहां इसे गंभीरता से लिया, वहीं इसकी वास्तविक स्थिति समझने के लिए विधि छात्रों से शोध करवाया।


    आयोग ने शिवपुरी और मंदसौर कलेक्टर से मांगी यह जानकारी    जिले के कारखानों में  कुल मजदूरों की संख्या       कितने मजदूर या व्यक्ति सिलीकोसिस बीमारी से पीडि़त हैं     कितने पीडि़तों की अब तक मृत्यु हो चुकी है      क्षतिपूति मिलने वाले व्यक्तियों व धनराशि की विस्तृत जानकारी    कितने पीडि़तों का नि:शुल्क उपचार हुआ   पीडि़तों का कितने अंतराल के बाद परीक्षण किया जाता है

     

अपनी राय दें