• सच की लड़ाई के लिए आमरण अनशन

    नई दिल्ली। सच और न्याय की लड़ाई के लिए श्रम विभाग का एक अफसर इन दिनों जंतर-मंतर पर आमरण अनशन कर रहा है, आज उसका चौंथा दिन है, स्वास्थ्य में गिरावट आ गई है, पर सरकार की तरफ से अभी तक ऐसा कोई आश्वासन नहीं मिला है, कि वह अपनी इस लड़ाई को विराम दे सके।...

    सच की लड़ाई के लिए आमरण अनशन

    नई दिल्ली। सच और न्याय की लड़ाई के लिए श्रम विभाग का एक अफसर इन दिनों जंतर-मंतर पर आमरण अनशन कर रहा है, आज उसका चौंथा दिन है, स्वास्थ्य में गिरावट आ गई है, पर सरकार की तरफ से अभी तक ऐसा कोई आश्वासन नहीं मिला है, कि वह अपनी इस लड़ाई को विराम दे सके। पवन कुमार जेएनयू से पढ़े हैं, वे यूपीएससी के माध्यम से श्रम प्रवर्तन अधिकारी के पद पर नियुक्त हुए हैं। वे पिछले दो साल से झारखंड के रांची में पदस्थ हैं। यहां अधिकारी और कारखाना प्रबंधन के बीच जिस प्रकार की मिलीभगत चल रही है, वे उसका शिकार हैं।

    पवन कुमार, मंजूनाथ नहीं है, जिनकी मौत एक सड़क हादसे में हो गई, न ही वे जेएनयू के ही दूसरे छात्र राहुल शर्मा जैसे हैं, जिन्होंने बिलासपुर एसपी रहते हुए व्यवस्था का दबाव न सह पाने के कारण आत्महत्या कर दी। पवन कहते हैं, कि जेएनयू के कारण उनमें लड़ने का जज्बा अभी बाकी है। जब वे कोडरमा में पदस्थ थे, तब उन्हें कार्यालय में फर्नीचर या कम्प्यूटर तक नहीं दिया गया था। कई बार कार्यालय की सफाई भी उन्हें ही करना पड़ती थी। अपना काम करते हुए उन्होंने कई खदानों और कारखानों में छापे मारे और मजदूरों के हक में कई फैसले लिए, जिस कारण वे आला अफसरों के निशाने पर आ गए। इसमें सबसे महत्वपूर्ण एचईसी लिमिटेड के खिलाफ मजदूरों की २ करोड़ रुपए की ग्रेच्युअटी भुगतान का मामला था, दूसरा बड़ा मामला बिरला समूह की हिंडाल्को कंपनी के खिलाफ था ।

    लगातार केन्द्र सरकार को लिखने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई, उल्टा उन पर सिस्टम में शामिल होने का दबाव बनाया जाता रहा। पवन की लगातार कार्रवाईयों से परेशान होकर उनका तबादला चैन्नई कर दिया गया, पर उस समय कन्हैया और रोहित बेमुला का मामला चल रहा था, जिसमें श्रम मंत्री बंगारू दत्तात्रेय सीधे जुड़े थे, तब तबादले को टाल दिया गया। इसी बीच उनके वरिष्ठ अधिकारी ने उनके खिलाफ एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया, जो पुलिस जांच के बाद फर्जी पाया गया।

    कानून कहता है, कि इस कानून का दुरुपयोग करने वाले अफसर को नौकरी से बाहर कर देना चाहिए, पर उन पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसी बीच इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए पवन कुमार की तरफ से किए जा रहे प्रयासों के तहत यहां ड्राईवर, चपरासी, क्लर्क जैसे कर्मचारियों का तबादला किया गया, जो कई सालों से यहां जमा थे, पर संभवतः पहली बार श्रम मंत्रालय के सीधे हस्तक्षेप के बाद ये तबादले रोक दिए गए।


    सरकार के इस रवैये से उत्साहित इन कर्मचारियों ने पवन कुमार पर ३ मई २०१६ को उनके चैंबर में घुसकर हमला कर दिया, उनका गला दबाकर मारने की कोशिश की। पवन ने इसकी शिकायत भी पुलिस में की, दूसरी तरफ भाजपा के एक स्थानीय नेता ने उनके खिलाफ कर्मचारियों से मारपीट का मामला पुलिस में दर्ज कराया। पवन कहते हैं, अब उन पर इस मामले को वापस लेने के लिए दबाव मंत्रालय की तरफ से बनाया जा रहा है, उनके मना करने पर उनका तबादला एक बार फिर चैन्नई कर दिया गया। पवन कहते हैं, कि उन्हें न तो नौकरी की परवाह है, न ही चैन्नई जाने में एतराज है, पर सिस्टम जिस तरह चल रहा है, किसी न किसी को तो आगे आना होगा।

    श्रम विभाग की मिलीभगत के कारण मजदूरों का जिस तरह शोषण हो रहा है, वह चिंता का कारण है। वे चाहते हैं, सरकार इस पूरे मामले की न्यायिक जांच कराए, जिससे चीजें साफ हो सके। उन्होंने बताया, एचईसी के खिलाफ कार्रवाई के बाद भी अभी तक मजदूरों के ग्रेच्युअटी का भुगतान नहीं हो सका है, क्योंकि अफसर उस फाइल को दबाकर बैठे हैं। 

     

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