• अब ‘बस्तर बटालियन’ पाएगी नक्सलियों पर काबू

    नई दिल्ली ! केंद्रीय गृहमंत्रालय ने सीआरपीएफ के उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। जिसमें बस्तर के आदिवासियों की भर्ती करके ‘बस्तर’ नाम से एक नई बटालियन बनाने की योजना है।...

    कला अय्यर सीआरपीएफ की आदिवासियों वाली क्षेत्रीय बटालियन के गठन को गृहमंत्रालय की मंजूरी नई दिल्ली !   केंद्रीय गृहमंत्रालय ने सीआरपीएफ के उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। जिसमें बस्तर के आदिवासियों की भर्ती करके ‘बस्तर’ नाम से एक नई बटालियन बनाने की योजना है। गृहमंत्रालय की हरी झंडी मिलने के बाद छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में ‘बस्तर बटालियन’ के गठन का काम शुरू हो गया है। केंद्रीय सुरक्षा बल में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी नक्सल क्षेत्र में तैनात बटालियन का नाम इसी क्षेत्र के नाम पर होगा। नक्सलियों की नब्ज दबाने के लिए इस बटालियन में बस्तर क्षेत्र के उन आदिवासियों की भर्ती का काम शुरू किया जाएगा जो फिलहाल बेरोजगार हैं। गृहमंत्रालय को सीआरपीएफ के महानिदेशक के. दुर्गा प्रसाद की तरफ से यह प्रस्ताव चार माह पूर्व मिला था। जिसे संसद सत्र शुरू होने से पहले गृहमंत्रालय ने मंजूरी दी। मंत्रालय के सूत्रों का दावा है कि बस्तर बटालियन में नक्ल क्षेत्र के ही आदिवासी लोगों को शैक्षणिक योग्यता के साथ शारीरिक दक्ष्ता में मामूली छूट देकर भर्ती करने का काम जल्द शुरू होगा। सूत्रों का कहना है कि नक्सल प्रभावित किसी क्षेत्र के नाम पर वहां तैनात सुरक्षा बल का नाम पहली बार रक्खा गया है। इससे पहले सैन्य बलों के नाम कम्यूनिटी के नाम पर होते थे। इस बटालियन के जवानों की कम से कम पांच साल तक बस्तर में ही तैनाती सुनिश्चित की गई है।   सीआरपीएफ के आला अधिकारी बताते है कि बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्र बहुत बड़ी तादाद में ऐसे आदिवासी युवा है जो कुछ पढ़े लिखें तो है मगर बेरोजगारी के कारण बाद में नक्सलियों के प्रभाव  में आकर बंदूक थाम लेते हैं। ऐसे युवाओं को न बस्तर बटालियन के जरिए रोजगार मिलेगा बल्कि क्षेत्र के बारे में उनकी समझ और जानकारी से केंद्र्रीय बल को भला होगा। सूत्रों का कहना है कि बस्तर बटालियन का गठन छत्तीसगढ़ में रमन सिंह सरकार द्वारा साल 2015 में गठित डिस्ट्रिक रिजर्व ग्रुप (डीआरजी) से प्रभावित होकर किया गया है। कई जिलों में इन्हें सहायक आरक्षक या सहायक कांस्टेबल के तौर पर उन इलाकों में वीआईपी दौरों के वक्त तैनात किया जाता था। लेकिन राज्य की अन्य पुलिस एजेंसियों के असहयोग के कारण ये सफल नहीं हो पाए। डीआरजी की इन टीमों में आदिवासी क्षेत्रों के ऐसे काबिल लोग थे जिनकी मेहनत से कई नक्सलियों ने बाद में बंदूक  छोडक़र सर्मपण किया। माना जा रहा है कि बस्तर बटालियन डीआरजी का परिष्कृत रूप है।


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