शिक्षा के अधिकार के कानूनी प्रावधानों की अवहेलना के लिए राज्य में एक निजी स्कूल को प्रशासन ने दो करोड़ रूपए के जुर्माने का नोटिस भेजा है। यह नोटिस उसे बच्चों की प्रवेश परीक्षा लेने के लिए भेजा गया है और प्रावधानों के मुताबिक इसके लिए ली गई फीस के दस गुना के बराबर जुर्माना लगाने की बात कही गई है। निजी स्कूलों ने प्रवेश के अपने मापदण्ड तय कर रखे हैं, जिनसे शिक्षा के अधिकार कानून का उल्लंघन होता है। होलीक्रास कान्वेन्ट स्कूल अंबिकापुर नामी निजी स्कूलों में शामिल है और इस स्कूल में प्रवेश दिलाने की होड़ मची रहती है। जाहिर है जिस स्कूल में ऐसी स्थिति होगी वहां नियम-कानूनों के बारे में सोचने का वक्त कौन निकालता है। यह अधिकारियों पर है कि वे इनका पालन कराएं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि इस स्कूल में बच्चों की प्रवेश परीक्षा ली गई है। ऐसा हमेशा होता रहा है। पहली बार यह हुआ है कि प्रशासन ने जुर्माने का नोटिस भेजा है। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत गरीब परिवारों के बच्चों को उपलब्ध सीटों की संख्या के 25 प्रतिशत सीटों पर नि:शुल्क प्रवेश देने का भी प्रावधान है। इसकी कुछ शर्तें हैं, जिन्हें आधार बनाकर ये स्कूल गरीब बच्चों को प्रवेश देने में आनाकानी करते हैं। वस्तुत: यह राज्य सरकारों पर होता है कि वे गरीब परिवारों के बच्चों की नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था करें। इसके लिए सरकार के अपने स्कूल हैं, लेकिन कोई गरीब बच्चा किसी निजी स्कूल में पढऩा चाहता है तो उस स्कूल को बच्चे को कानून के तहत प्रवेश देना चाहिए। प्राय: निजी स्कूल इसका पालन नहीं कर रहे हैं। कुछ स्कूलों को नोटिस भी दिया गया है। निजी स्कूलों का कहना है कि यदि वे बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने लगे तो स्कूल संचालन का खर्च कहां से आएगा। निजी स्कूल प्रबन्धन मानता है कि वे कोई व्यवसाय नहीं कर रहे हैं बल्कि शिक्षा के विकास में योगदान दे रहे हैं, इसलिए उन्हें इतनी सहूलियत तो मिलनी चाहिए कि वे स्कूल का प्रबंधन अच्छी तरह कर सकें। निजी स्कूल प्रबंधन का यह तर्क अपनी जगह सही हो सकता है, लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कई निजी स्कूलों के लिए शिक्षा पूरी तरह व्यवसाय बन चुकी है। पुस्तक, कापियां से लेकर डे्रस तक बेच रहे हैं। शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुए 7 साल हो गए, लेकिन इस कानून के प्रभावी ढंग से लागू करने के मामले में प्रशासनिक स्तर पर उदासीनता ही देखी जा रही है। खासकर निजी स्कूलों के मामले प्रशासनिक कार्रवाइयां तब सामने आती हैं जब अधिकारियों की बात अनसुनीं की जाती है या उन तक कोई शिकायत पहुंचती है। सारे निजी स्कूलों में कानूनी प्रावधानों को समान रुप से लागू किया जाए तो व्यवस्था बदलने में मदद मिल सकती है, पर ऐसा हो नहीं रहा है। इसमें कुछ व्यावहारिक दिक्कतें भी हैं। शिक्षा के अधिकार कानून में प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में भारी जुर्माना लगाने के अलावा निजी स्कूल की मान्यता रद्द कर देने का भी अधिकार प्रशासनिक अधिकारियों को दिया गया है। जिस स्कूल से हजारों बच्चों का भविष्य जुड़ा हुआ हो, उस स्कूल की मान्यता रद्द कर देने की कार्रवाई का फैसला कर लेना भी आसान नहीं रह जाता। निजी स्कूल इसका भी फायदा उठाते रहे हैं। इसका एक ही उपाय है कि प्रशासन और निजी स्कूल प्रबंधन सूझबूझ से काम लें और किसी मुद्दे पर तनातनी की बजाय शिक्षा के अधिकार के कानूनी प्रावधानों के मुताबिक बच्चों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने का बेहतर अवसर उपलब्ध कराएं।