• क्या इसे आत्मरक्षा कहेंगे

    गनीमत है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने अयोध्या में आत्मरक्षा शिविर आयोजित करने पर बजरंग दल के खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है और अयोध्या के बजरंग दल प्रमुख महेश मिश्रा को बुधवार देर शाम गिरफ्तार कर लिया गया है। ...

    गनीमत है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने अयोध्या में आत्मरक्षा शिविर आयोजित करने पर बजरंग दल के खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है और अयोध्या के बजरंग दल प्रमुख महेश मिश्रा को बुधवार देर शाम गिरफ्तार कर लिया गया है। गौरतलब है कि विगत 14 मई को अयोध्या में बजरंग दल ने एक आत्मरक्षा शिविर में मॉक ड्रिल करवाई थी, जिसमें एक समुदाय के लोगों को वेशभूषा और नारों के जरिये आतंकी दिखाने की कोशिश की गई। कारसेवकपुरम में आयोजित इस शिविर में स्पष्ट तौर पर एक धर्म के खिलाफ दूसरे धर्म के लोगों को खड़ा करने की कोशिश की गई, और इतना सब होने के बावजूद पुलिस तब हरकत में आई, जब शिविर की इस गतिविधि का वीडियो मीडिया के जरिए सामने आया। वीडियो में बजरंग दल के सदस्य हथियारों और भगवा झंडे के साथ हथियार चलाने और दुश्मन को मार गिराने का अभ्यास करते दिखाई देते हैं और जिन लोगों को दुश्मन के तौर पर दिखाया गया है उन्होंने नमाज़ के दौरान पहनी जाने वाली टोपी पहनी हुई थी और उनके चेहरे पर नकली दाढ़ी भी दिखाई देती है। रथयात्रा, कारसेवा, बाबरी मस्जिद को एक धक्का और के नारे के साथ गिराया जाना, यह सब भारतीय राजनीति के इतिहास में कालिख भरे अध्याय हैं, जिन पर हमें हमेशा शर्मिंदा होना चाहिए। एक ओर हम सर्वधर्म समभाव, विविधता में एकता जैसे नारे लगाते हैं और दूसरी ओर इन्हें खोखला भी साबित कर रहे हैं। 6 दिसंबर 1992 से भारत में धार्मिक सद्भाव का ताना-बाना बिखरने लगा, और भाजपा जैसे दलों ने इस बिखराव को सत्ता तक पहुंचने की सीढ़ी बनाई। देश में सांप्रदायिक वैमनस्य जितना बढ़ता गया, जितना ध्रुवीकरण होता गया, भाजपा के लिए शासन करना उतना आसान होता गया। आज नरेन्द्र मोदी अपनी सरकार के दो साल पूरे होने का चाहे जितना जश्न मना लें, उपलब्धियों की अंतहीन सूची तैयार कर लें, लेकिन दो सालों का कड़वा सच यह भी है कि अल्पसंख्यकों को तरह-तरह की शारीरिक और मानसिक प्रताडऩाएं मिली हैं, कभी गो मांस के नाम पर हत्या हुई, कभी चर्च को नुुकसान पहुंचाया गया और कुछ नहींतो जबदरस्ती सबको हिंदू साबित करने की कोशिशें भी हुईं। जब इन पर विरोध के स्वर उठे तो असहिष्णुता, देशप्रेम जैसे मुद्दे खड़े कर असल समस्या से ध्यान भटकाया गया। यह साजिश काफी हद तक सफल भी हुई, इसलिए अयोध्या जैसे संवेदनशील शहर में बजरंग दल के लोग आत्मरक्षा के नाम पर नफरत फैलाने की तैयारी करते हैं और समाज को इसकी भनक तक नहींलगती। बाबरी मस्जिद विध्वंस हो या अन्य सांप्रदायिक तनाव के मामले, यह बात स्पष्ट है कि यह सब राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए करते हैं और स्थानीय पुलिस प्रशासन का सहयोग किसी न किसी तरह इसमें ले लेते हैं। उन्हें सत्ता का लाभ होता है, लेकिन समाज को दूरगामी नुकसान होता है। इसलिए सांप्रदायिक सद्भाव, धार्मिक, जातीय एकता बनाए रखने की जिम्मेदारी समाज को स्वयं उठानी चाहिए, सरकार से इसकी अपेक्षा नहींकरनी चाहिए। बजरंग दल के आत्मरक्षा शिविर में कुछ युवक राइफल लेकर लडऩे का अभ्यास करते दिखे और जब इस पर सवाल उठे तो हिंदूवादी नेताओं ने इसका समर्थन किया। सबसे अधिक आश्चर्य की बात यह है कि उत्तरप्रदेश के राज्यपाल राम नाईक तक को इसमें कुछ आपत्तिजनक नहींलगा। माना कि उनकी राजनैतिक प्रतिबद्धताएं हैं, लेकिन एक संवैधानिक पद की जिम्मेदारी का अहसास उन्हें होना चाहिए। उन्होंने कहा था कि जो लोग अपनी रक्षा नहीं कर सकते हैं वो अंतत: राष्ट्र की रक्षा भी नहीं कर सकते हैं। यदि कुछ नौजवान आत्मरक्षा के लिए हथियार चलाने का प्रशिक्षण ले रहे हैं तो इसमें कुछ ग़लत नहीं है। वाकई हथियार चलाने का प्रशिक्षण लेने में कुछ गलत नहींहै, अगर यह पुलिस या सेना के शिविर में लिया जाए। क्या आत्मरक्षा शिविर में प्रशिक्षण पाए इन युवकों से उम्मीद की जा सकती है कि कभी देश की सीमा पर जरूरत हो तो ये अपनी सेवाएं वहां देंंगे या किसी आतंकवादी घटना के होने पर सेना के कमांडो की तरह सभी धर्मों, वर्गों, जातियों के भेदभाव को भुलाते हुए, हर किसी की रक्षा के लिए प्रस्तुत होंगे। मुंबई में ताज पर हुए हमले के वक्त देश के जांबाजों ने जिस तरह तीन दिन तक जान पर खेलकर मोर्चा संभाला था, क्या बजरंग दल ऐसे जांबाज तैयार कर सकता है जो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की तरह शहादत देने तैयार हों? एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी कि अगर आत्मरक्षा के लिए हथियारों का प्रशिक्षण जरूरी है, तो इसकी सबसे ज्यादा जरूरत देश की महिलाओं को है, जो घर और बाहर दोनों जगह असुरक्षित महसूस करती हैं। उन नक्सलप्रभावित इलाकों के निवासियों को है, जो नक्सली और पुलिस दोनों की ज्यादतियों का शिकार होते हैं। देश में रहने वाले उन विदेशी नागरिकों को है, जिन्हें धर्म, नस्ल या वर्ण के नाम पर शारीरिक हिंसा का शिकार होना पड़ता है। उन कमजोर तबके के लोगों को है, जिनका शोषण धन और जाति से सशक्त लोग करते हैं। क्या इन सबके हाथों में हथियार दे दिए जाएं और हथियार निर्माता कंपनियों के लिए नया बाजार खोल दिया जाए।

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