• बच्चों की सेहत से खिलवाड़

    बच्चों को पिलाने के लिए आंगनबाड़ी केन्द्रों में भेजे गए सुगंधित दूध के पैकेट कुछ ही दिनों में खराब हो गए। यह छत्तीसगढ़ दुग्ध महासंघ के देवभोग ब्रांड के नाम से तैयार किया गया...

    बच्चों को पिलाने के लिए आंगनबाड़ी केन्द्रों में भेजे गए सुगंधित दूध के पैकेट कुछ ही दिनों में खराब हो गए। यह छत्तीसगढ़ दुग्ध महासंघ के देवभोग ब्रांड के नाम से तैयार किया  गया सुगंधित और मीठा सोया दूध है, जिसके बारे में देवभोग की ओर से यह दावा किया गया है कि पैकेटबंद इस दूध का इस्तेमाल 90 दिनों के भीतर करना पूरी तरह सुरक्षित है, लेकिन उस पर दूध के पैक  होने की तारीख का उल्लेख नहीं है। पिछले महीने की 29 तारीख को मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह ने आंगनबाड़ी केन्द्रों के बच्चों को सुगंधित और मीठा दूध उपलब्ध कराने  ‘मुख्यमंत्री अमृत योजना’  शुरूआत की थी। बिलासपुर जिले में इसी माह से यह योजना शुरू हुई है और पहली बार भेजे गए दूध के पैकेटों में से 80 फीसदी पैकेट का दूध खराब निकला। पैकेट असामान्य से फूले हुए पाए गए। पैकेट पर लिखी चेतावनी देखकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने यह दूध बच्चों को नहीं दिया। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने खराब दूध का वितरण रोक दिया है और पैकेट देवभोग को वापस करने की कार्रवाई की जा रही है। प्रश्न यह कि दूध के जिस पैकेट पर उसके तैयार होने की तिथि का उल्लेख नहीं है वह दूध बच्चों को पिलाने के लिए कैसे भेज दिया गया? इस दूध को सामान्य अवस्था में पीने योग्य बताया गया है और इसे न तो ठंडा करने की जरुरत होती है न ही गर्म करने की। इसे सीधे बच्चों को पीने के लिए दिया जा सकता है। अगर आंगनबाड़ी केन्द्रों में पैकेट के फूले हुए होने तथा उस पर लिखी सावधानियों पर ध्यान नहीं गया होता तो और दूध बच्चों को पिला दिया गया होता तो बच्चों के स्वास्थ्य पर उसका प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता था। इस लापरवाही के लिए अकेले महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। उपभोक्ताओं तक पहुंच रहे खाद्य व पेय पदार्थों की गुणवत्ता पर नजर रखने वाले विभागों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे इन पदार्थों की गुणवत्ता परखें। दूध के पैकेट राजधानी में ही तैयार हो रहे हैं। सभी सरकारी एजेन्सियां वहां मौजूद है। ताज्जुब की बात तो यह है कि पैकेट पर दूध के तैयार होने की तिथि का उल्लेख न होने के बावजूद दूध का पैकेट आंगनबाडिय़ों के लिए भेज दिए गए। क्या सरकार के किसी उपक्रम में तैयार किसी पेय पदार्थ के लिए नियमों का पालन करना जरुरी नहीं है? सरकार को इसकी जांच करानी चाहिए कि खराब दूध के पैकेट आंगनबाडिय़ों में कैसे पहुंचे और जिस दूध को सामान्य अवस्था में 90 दिनों तक सुरक्षित रहने का दावा किया गया था वह दूध कुछ ही दिनों में कैसे खराब हो गया। बच्चों के मामले में सरकारी मशीनरी की इस तरह की लापरवाही कोई पहलीबार सामने नहीं आई है बल्कि मध्यान्ह भोजन में भी गड़बडिय़ां सामने आती रही है और कई बार दूषित भोजन खाकर बच्चे बीमार भी होते रहे हैं। अब बच्चों को दूध उपलब्ध कराने की योजना में भी लापरवाही सामने आ गई। देवभोग इस सोया दूध के अलावा दूध से बने कई उत्पाद बाजार में उपलब्ध कराता है, सोया दूध के खराब होने की इस शिकायत के बाद उसके उत्पादों की गुणवत्ता पर सवाल उठाने का मौका लोगों को मिल गया है। यह एक उभरते सरकारी उपक्रम के साख के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता। छत्तीसगढ़ दुग्ध महासंघ के अधिकारियों को भी देखना होगा कि देवभोग ब्रांड का यह दूध आंगनबाडिय़ों में पहुंचते ही खराब कैसे हो गया। दूध के पैकेट क्या 90 से अधिक दिनों के  थे या उसे तैयार करने में कोई चूक हुई है।

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