• सेहत से खिलवाड़

    साल भर पहले मैगी की गुणवत्ता पर सवाल खड़े होने का विवाद प्रारंभ हुआ था, जो अब कुछ रिपोर्टों के दम पर शांत हुआ प्रतीत हो रहा है, लेकिन सच और झूठ के बीच की दीवार अभी पूरी तरह गिरी नहींहै। ...

    साल भर पहले मैगी की गुणवत्ता पर सवाल खड़े होने का विवाद प्रारंभ हुआ था, जो अब कुछ रिपोर्टों के दम पर शांत हुआ प्रतीत हो रहा है, लेकिन सच और झूठ के बीच की दीवार अभी पूरी तरह गिरी नहींहै। लगभग तीन दशक पहले दो मिनट में तैयार होने वाले इस फास्टफूड ने भारतीय बाजार में दस्तक दी, तो द ग्रेट इंडियन रसोई में गजब की हलचल मच गई। सेवइयों की तुलना में नूडल्स बच्चों को अधिक प्रिय हो गए और गृहणियों के लिए भी यह काफी सुविधाजनक हो गया। मैगी से शुरु हुए इंस्टेंट व्यंजनों की सूची अब बहुत लंबी हो गई है। इसके पीछे सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक कारणों का विश्लेषण समाजशास्त्री निरंतर कर ही रहे हैं। मैगी में हानिकारक तत्वों की मौजूदगी के बाद अब खबर आई है कि ब्रेड में पोटेशियम ब्रोमेट और पोटेशियम आयोडेट के अंश पाए गए हैं, जो कैैंसर का कारण बन सकते हैं। यह खुलासा सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के अध्ययन से हुआ। कायदे से बाजार में बिकने वाले खाद्यपदार्थों की गुïणवत्ता जांचने का जिम्मा फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथारिटी आफ इंडिया (एफएसएसएआई) का है, लेकिन अक्सर सीएसई या अन्य स्वायत्त संस्थाएं ऐसा खुलासा करती हैं और तब यह सरकारी संस्था हरकत में आती है। यह आश्चर्यजनक है कि पोटेशियम ब्रोमेट और आयोडेट का खाद्यपदार्थों में इस्तेमाल विश्व के अधिकांश देशों में प्रतिबंधित है, लेकिन भारत में ऐसी कोई रोक नहींहै। इसलिए ब्रेड निर्माता कंपनियां अपनी सफाई में कह रही हैं कि उन्होंने भारतीय कानून का पालन किया है। 1992 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि आटे में पोटेशियम ब्रोमेट का इस्तेमाल सही नहींहै। बहुत से देशों ने इस सलाह को मानते हुए कानून बना लिए, लेकिन भारत अनभिज्ञ रहा या जानबूझकर सरकारी संस्थाओं ने आंखें मंूद लीं, ताकि उत्पादकों को अधिक उलझन न हो। दरअसल भारत की सघन आबादी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए किसी वरदान से कम नहींहै। जो माल दुनिया में कहींनहींखप सकता, वह भारतीय बाजार में हाथोंहाथ बिक जाता है, क्योंकि यहां गुणवत्ता सरकारी जांच एजेंसियों की प्राथमिकता में व्यावहारिक स्तर पर नहींहै, कागज पर चाहे जितने सख्त नियम लिख दिए जाएं। इसलिए कभी जाने-पहचाने चाकलेट ब्रांड में कीड़े मिलते हैं, कभी शीतलपेय में कीटनाशक। हैरत इस बात की है कि खाद्य पदार्थों में जानलेवा तत्व मिलने के बावजूद इन पर स्थायी रोक नहींलगती। रूप-रंग बदलकर, नए आवरण में पहले से अधिक आकर्षक होकर ये बाजार में पहुंचते हैं और भारतीय उपभोक्ता खुशी-खुशी कीमत देकर अपनी जान दांव पर लगाता है। दोष केवल विदेशी कंपनियों पर नहींडाला जा सकता, भारतीय कंपनियां भी ग्राहकों की जान से खिलवाड़ करने में कहां पीछे हैं। एक ओर सरकार पान मसाला, गुटखा व अन्य तंबाखू उत्पादों पर चेतावनी जारी करती है, दूसरी ओर एक रुपए में धड़ल्ले से गुटखे बिकते हैं, चमकदार आवरण में खतरनाक बीमारियों की सौगात लिए। योग, आध्यात्म का व्यापार वाले लोग अब स्वदेशी की दुकानदारी में कूद पड़े हैं। वे लोगों को स्वस्थ रहने के लिए सस्ते में स्वदेश निर्मित सामान बेचने का दावा करते हैं। विदेशी उत्पादों में हानिकारक तत्व होने का ढोल तो इन्होंने खूब बजाया, लेकिन देश में बन रहे गुटखा जैसे खतरनाक उत्पाद के खिलाफ इनका बिगुल नहींबजा। मैगी पर रोक लगते ही पातंजलि के नूडल्स बाजार में आ गए और उसके बाद टूथपेस्ट, साबुन, शैंपू, बिस्किट, तेल, आटा तमाम तरह का सामान रामदेव के चित्रों के साथ बाजार में छा गया। पातंजलि नूडल्स की गुणवत्ता पर भी सवाल उठे थे, लेकिन न जाने क्यों वह अधिक देर तक टिका नहीं। अब देखना यह है कि स्वदेशी ब्रेड किस नाम के साथ बाजार में उतरती है। उसमें पोटेशियम ब्रोमेट हो या आयोडेट हो, स्वदेशी का ठप्पा सारे दोष छिपा देगा।

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