• चाबहार से भारत-ईरान में नयी बयार

    परमाणु कार्यक्रम जारी रखने की जिद, अमरीका के दबाव में आने से इन्कार, कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर दुनिया के देशों से अलग-थलग होने का खतरा उठाने का जोखिम और वर्षों तक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को सहन करना, विगत कुछ वर्षों में ईरान इन्हींसब कारणों से सुर्खियों में आता रहा।...

    परमाणु कार्यक्रम जारी रखने की जिद, अमरीका के दबाव में आने से इन्कार, कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर दुनिया के देशों से अलग-थलग होने का खतरा उठाने का जोखिम और वर्षों तक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को सहन करना, विगत कुछ वर्षों में ईरान इन्हींसब कारणों से सुर्खियों में आता रहा। लेकिन जब से उसके ऊपर लगे प्रतिबंध हटे हैं, वह अपनी क्षेत्रीय स्थिति मजबूत करना चाहता है। ऐसे वक्त में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ईरान यात्रा दोनों देशों के संबंधों को आगे बढ़ाने में मील का पत्थर साबित हो सकती है। नरेन्द्र मोदी की दो दिवसीय ईरान यात्रा में दोनों देशों के बीच 12 समझौते हुए, जो कूटनीति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण समझे जा रहे हैं। भारत के आर्थिक और सामरिक हितों की काफी हद तक पूर्ति ईरान के माध्यम से हो सकती है और उधर ईरान के लिए भी भारत का साथ काफी अहम है। विगत कुछ वर्षों में अमरीकी दबाव में इजरायल, सऊदी अरब की ओर हमारा झुकाव बढ़ा और विदेश नीति की परंपराओं को बिसराते हुए दो-तीन मौकों पर हम ईरान के विरूद्ध भी हुए। जबकि भारत और ईरान के संबंध इस सदी के नहीं, सदियों पुराने हैं। आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक रिश्ते दोनों देशों के इतिहास में दर्ज हैं। अच्छा है कि थोड़े उतार-चढ़ाव के बाद अब वापस संबंध पटरी पर हैं और भारत के लिए श्रेयस्कर होगा, यदि वह अपने पुराने संबंधों को नए मित्रों की खातिर खराब न होने दे। भारत और ईरान के बीच हुए समझौतों में सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, चाबहार बंदरगाह के विकास और संचालन और चाबहार-•ााहेडान के बीच रेलवे लाइन बिछाने के समझौते प्रमुख हैं। आतंकवाद, कट्टरपंथ, मादक पदार्थों की तस्करी और साइबर अपराध के $खतरे से निपटने के लिए दोनों देश नियमित विचार-विमर्श पर सहमत हुए हैं। भारत और ईरान के लिए चाबहार परियोजना का बहुत महत्व है। इस परियोजना के पूरा होने के बाद इस इरानी बंदरगाह के •ारिए भारत को अ$फ$गानिस्तान तक सामान पहुँचाने का सीधा रास्ता मिलेगा। अब तक भारतीय चीजें पाकिस्तान के ज़रिए अ$फ$गानिस्तान  तक पहुंचती हैं। अब चाबहार बंदरगाह के  •ारिए भारतीय सामान मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप तक सामान भेज सकता है। अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हटने के बाद बन रहे नए ईरान से हुआ यह समझौता काफी मददगार होगा। लेकिन पाकिस्तान भारत-ईरान के नए संबंधों से शायद असहज महसूस करे। आर्थिक क्षेत्र में भारत-ईरान-अ$फ$गानिस्तान का सहयोग, रणनीतिक और अन्य स्तरों पर भी बढ़ेगा और इसके पाकिस्तान के लिए नकारात्मक नतीजे निकलेंगे। जैसे कि आतंकवाद के मुद्दे पर भारत-ईरान मानते रहे हैं कि उस इलाके में जो कुछ भी हो रहा है, उसमें आईआईएस की भूमिका रहती है। ऐसे में भारत और उसके नए महत्त्वपूर्ण सहयोगी साथ मिलकर इन मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठा सकते हैं। उससे पाकिस्तान पर रणनीतिक और राजनीतिक दबाव बनेगा। अगर पाकिस्तान इसमें नकारात्मक पक्ष को देखने की जगह सकारात्मक बिंदुओं पर दृष्टिपात करेगा, तो आतंकवाद से लड़ाई में काफी मदद मिलेगी। चाबहार समझौता भारत के लिए आर्थिक ही नहीं, रणनीतिक स्तर पर भी काफी महत्वपूर्ण है। चीन ने भारत पर दबाव बढ़ाने और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपना दबदबा कायम करने के लिए ग्वादर परियोजना को बढ़ाया। उसने अपने इस खेल में पाकिस्तान को शामिल किया और इस विश्वास में रहा कि भारत कभी इसका तोड़ नहींनिकाल पाएगा। लेकिन अब भारत-ईरान ने चाबहार बंदरगाह के विकास पर समझौता कर चीन को माकूल जवाब दे दिया है। दक्षिण एशिया में यह शक्ति संतुलन शांति बनाए रखने के लिए अपेक्षित था। भारत और ईरान के बीच संबंधों के नए अध्याय में ईरान में मोदी द्वारा गालिब का शेर उद्धृत करना दर्ज है और राष्ट्रपति हसन रूहानी का यह कहना भी कि भारत विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, उन्होंने भारत से नरमपंथी, शांतिपूर्ण, सहिष्णु इस्लाम के प्रति समर्थन की वकालत की।

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