• घाटी की जीवनरेखा बन गई मौत की डगर

    श्रीनगर । घाटी की जीवन रेखा माने जाना वाला राष्टï्रीय राजमार्ग सुरक्षाबलों के लिए मौत का रास्ता बनता जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस रास्ते से गुजरने वाले सुरक्षाबलों के काफिले आतंकियों का आसान निशाना बन रहे हैं। पंपोर में पिछले दिनों हुआ हमला भी इसी की कड़ी था,...

    सुरेश एस डुग्गर- श्रीनगर । घाटी की जीवन रेखा माने जाना वाला राष्टï्रीय राजमार्ग सुरक्षाबलों के लिए मौत का रास्ता बनता जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस रास्ते से गुजरने वाले सुरक्षाबलों के काफिले आतंकियों का आसान निशाना बन रहे हैं। पंपोर में पिछले दिनों हुआ हमला भी इसी की कड़ी था, जिसमें सीआरपीएफ के 8 जवान शहीद हो गए। अगस्त 2015 में उधमपुर में हुए आतंकी हमले के बाद तो जैसे सेना के काफिले पर हमलों की झड़ी सी लग गई है।

    यह कोई पहला मौका नहीं है कि आतंकियों ने राष्टï्रीय राजमार्ग पर चलने वाले सुरक्षाबलों के काफिलों को निशाना बनाना आरंभ किया हो बल्कि वर्ष 2000 से लेकर 2005 तक वे इस राष्टï्रीय राजमार्ग पर कई बार खूनी खेल खेल चुके थे जिसके लिए वे बारूदी सुरंगों से लेकर राकेटों तक का इस्तेमाल करते रहे हैं। अभी तक इस वर्ष ही सेना के काफिले पर तीन बड़े हमले हो चुके हैं और हालिया हमला पंपोर में हुआ आतंकी हमला है। जम्मू-कश्मीर में सेना और सुरक्षाबल के वे काफिले जो सुनसान रास्तों से सफर करते हैं उन पर आजकल आतंकियों की नजरें सबसे ज्यादा हैं। आतंकियों के निशाने पर आए सुरक्षाकर्मी सबको मालूम है कि जम्मू कश्मीर में अहम लड़ाई सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच ही है। आतंकियों का मानना है कि अगर वे सेना के काफिले को निशाना बनाते हैं तो वे बड़ा नुकसान कर सकते हैं। इसके अलावा इन हमलों के बाद अक्सर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं जिनसे सर्च ऑपरेशन और खतरनाक हो जाता है।


    बुलेट प्रूफ वाहन ही रोक सकता है हमला जवान जिस बस में सफर करते हैं वे बुलेट प्रूफ नहीं होती हैं। कोई भी बुलेट प्रूफ वाहन उन्हें इस तरह के हमलों से बचा सकता है। वरिष्ठ अधिकारियों की मानें तो खुफिया तंत्र पर काफी बड़ा और अहम सवाल है। उनका मानना है कि भले ही कोई खुफिया सूचना हो या ना हो लेकिन सुरक्षा हमेशा चाक चौबंद रहनी चाहिए।

अपनी राय दें