• दिल्ली भूखंड आवंटन घोटाले में 2 मामले दर्ज

    नई दिल्ली ! केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने दिल्ली सरकार और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के कुछ अधिकारियों के खिलाफ दो मामले दर्ज किए हैं। यह कथित घोटाला वर्ष 1998-99 और 2002-2003 के दौरान हुआ था। आरोप है...

    नई दिल्ली !  केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने दिल्ली सरकार और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के कुछ अधिकारियों के खिलाफ दो मामले दर्ज किए हैं। यह कथित घोटाला वर्ष 1998-99 और 2002-2003 के दौरान हुआ था। आरोप है कि जिन किसानों की सरकार ने भूमि अधिगृहीत की थी, उनके पुनर्वास योजना के भूखंडों को जालसाजी करके दूसरों को आवंटित कर दिया गया। इन भूखंडों को दिल्ली सरकार द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजना के तहत आवंटित किया गया था। मामले पिछले हफ्ते दर्ज किए गए। इनमें दिल्ली सरकार के भूमि एवं भवन (विकल्प शाखा) विभाग, डीडीए कुछ अधिकारियों एवं अन्य अज्ञात सरकारी सेवकों एवं निजी लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की आपराधिक षड्यंत्र की धारा (120बी), जालसाजी (420) और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत नामजद किया गया है। इन पर आवासीय भूखंडों के आवंटन में गड़बड़ियां करने के आरोप हैं। पहला मामले में तत्कालीन उपसचिव (वैकल्पिक) एच. आर. सप्रा, तत्कालीन अपर डिवीजन क्लर्क स्वर्ण सिंह मालही (अब सेवानिवृत्त) नामजद हैं और दोनों भूमि एवं भवन विभाग में रहे हैं। इनके अलावा अधिवक्ता नीरू कुमार गुप्त और सुमन (निजी व्यक्ति) को नामजद किया गया है। सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा कि ये अपराध 1998 और 1999 के बीच हुए। दूसरी प्राथमिकी में तत्कालीन उप निदेशक बदरुल इस्लाम (अब सेवानिवृत्त) और तत्कालीन यूडीसी स्वर्ण सिंह मालही के खिलाफ है। दोनों की तैनाती तब भूमि एवं भवन विभाग में थी। इसमें तत्कालीन अधिकारी सुरेश चंद्र कौशिक (वर्तमान में डीडीए में) और राजस्थान के सतीश एवं पंकज भी नामजद हैं। सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा कि यह अपराध वर्ष 2002-2003 में हुआ है। भूमि एवं आवास विभाग के अधिकारियों ने कथित रूप से निजी व्यक्तियों के साथ मिलकर साजिश रची और एक कमेटी की समक्ष फर्जी दस्तावेज पेश किया। इस कमेटी ने वैसे लोगों के नाम वैकल्पिक भूखंड आवंटित किए जो काल्पनिक थे और जिनका कोई वजूद ही नहीं था। सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा, उन संस्तुतियों के आधार पर डीडीए ने द्वारका आवासीय योजना के तहत उन्हें वैकल्पिक आवासीय भूखंड आवंटित किए। लाभ पाने वालों ने खुद को अधिगृहीत भूमि का मालिक बताया जबकि वास्तव में उनसे कोई भूमि ली ही नहीं गई थी। मामला दर्ज करने के बाद सीबीआई ने आठ स्थानों पर छापेमारी की है और बहुत सारे दस्तावेज जब्त किए हैं।


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