भोपाल ! इशारों में बात करता एक परिवार बरबस आपका ध्यान अपनी ओर खींच ही लेगा। तीन सदस्यों के इस परिवार के सभी न तो सुन सकते हैं और न ही बोल पाते हैं। इसके बावजूद उनका जज्बा औरों जैसा ही है। यह परिवार अपनी लाडली को देश का सबसे बड़ा बैडमिंटन स्टार बनाना चाहती है।
महज आठ बरस की गौरांशी शर्मा दिव्यांग श्रेणी में बैंडमिंटन में पांचवें नंबर की राष्ट्रीय खिलाड़ी बन गई है।
बच्चों के लिए काम करने वाली सस्था यूनिसेफ द्वारा मंगलवार को 'दुनिया में बच्चों की स्थिति 2016' की रिपोर्ट जारी किए जाने के मौके पर गौरांशी अपनी मां प्रीति और पिता गौरव शर्मा के साथ यहां पहुंची। उसे मंच पर बैठाया गया।
गौरांशी और उसके माता-पिता से आईएएनएस से सांकेतिक भाषा में बात की, तो अनुवादक की भूमिका निभाई दीप्ति पटवा ने। शर्मा परिवार की तीनों सदस्य इशारों में अपनी बात कह रहे थे और उसे शब्द दे रही थीं दीप्ति। गौरांशी की मां नागपुर की और पिता कोटा के मूल निवासी हैं, दोनों ही दिव्यांग हैं।
प्रीति बताती है कि उन्हें इस बात की उम्मीद थी कि उनकी संतान उन जैसी नहीं होगी, वे बोलने और सुनने में सक्षम होंगी, जिससे संतान उनके लिए अनुवादक बन जाएगी, मगर उनकी यह ख्वाहिश पूरी नहीं हो पाई।
प्रीति और गौरव के मुताबिक, गौरांशी में शुरू से ही बैडमिंटन के प्रति लगाव था। यह देखते हुए उन्होंने उसे बैडमिंटन खेलने का मौका दिया। वह अपनी कोशिश में कामयाब हुई और उसने दिव्यांग वर्ग में देश में पांचवीं रैंक बना ली है। उनकी इच्छा है कि वह देश की नंबर एक खिलाड़ी बने।
यह दंपति अपनी बेटी का जीवन संवारने के मकसद से ही भोपाल में आकर बस गए हैं। फिलहाल उनके पास कोई आय का जरिया नहीं है। अभी तो परिजनों की मदद से उनका जीवन चल रहा है। बस उनकी एक ही तमन्ना है कि बच्ची का जीवन संवर जाए।
गौरांशी अभी आशा निकेतन में पढ़ती है और बैडमिंटन का प्रशिक्षण टीटी नगर स्टेडियम में ले रही है।