• नाबालिगों का मां बनना स्वास्थ्य के साथ जोखिम

    भोपाल ! नाबालिगों का मां बनना एक जटिल समस्या है। कम उम्र में मां बनने से उनका स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित होता है। यह उनके भावनात्मक और स्वास्थ्य पर भी असर डालता है। ...

    रूबी सरकार

    प्रदेश में साढ़े 7 फीसदी महिलाएं 15 से 19 के बीच बन रही हैं मां

    भोपाल !   नाबालिगों का मां बनना  एक जटिल समस्या है। कम उम्र में मां बनने से उनका स्वास्थ्य  गंभीर रूप से प्रभावित होता है। यह उनके भावनात्मक और स्वास्थ्य पर भी असर डालता है। इसके अलावा यह बच्चों के जीवन की खुशी छीन लेता है। ताजा नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस)के अनुसार मध्यप्रदेश में 15 से 19  उम्र के बीच  साढ़े 7 फीसदी महिलाएं मां या गर्भवती हो जाती हैं, जो उनके मानसिक और स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है। कानूनी प्रतिबंध के बावजूद, मध्य प्रदेश में यह बदस्तूर जारी है। कानून भी इस सामाजिक बुराई को खत्म नहीं कर पा रहा है। इसके विनाशकारी प्रभाव से राज्य के उच्च मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। नाबालिगों की शादी और उनके मां बनने की  कई वजह हैं, इनमें प्रेम संबंध के साथ-साथ, अशिक्षा, मानव तस्करी और दुष्कर्म और सामाजिक असुरक्षाा जैसे सामाजिक बुराई भी शामिल है।


    केस - 1: राजधानी स्थित बालिका गृह में रह रही नाबालिग पीडि़ता ने 14 साल की उम्र में प्रेम विवाह किया था। माता-पिता ने नाबालिग लडक़ी की गुमशुदगी दर्ज कराई थी। जब तक पुलिस लडक़ी तक पहुॅचती, तब तक वह गर्भवती हो चुकी थी। पुलिस ने नाबालिग को भगाकर शादी करने के जुर्म में पति को गिरफ्तार कर लिया और लडक़ी को बालिका गृह भेज दिया, काफी मानसिक और शारीरिक पीड़ाओं से गुजरते हुए उसने बच्चे को जन्म दिया। पीडि़ता अब माता-पिता के पास नहीं लौटना चाहती, उसे डर है, कि माता-पिता उसे मार डालेंगे और बच्चे को अनाथ आश्रम भेज देंगे। आज भी वह मानसिक पीड़ा से गुजर रही है, वह चाहती है, कि उसके पति को पुलिस रिहा कर दे,जिससे वह अपने परिवार के साथ खुशी से जिंदगी बिता सके।  पर कानून है, कि इसकी इजाजत नहीं देता । बेबश पीडि़ता कानून से अपने पति की रिहाई के लिए गुहार लगा रही है। केस - 2 : राजधानी में नाबालिग पीडि़ता को 65 वर्षीय चौकीदार बहला-फुसला कर ले गया और उसके साथ धमका कर कई बार दुष्क र्म किया, जिससे नाबालिग गर्भवती हो गई।  उसने पीडि़ता को धमकी दी, कि यदि वह घटना का उल्लेख किसी से किया, तो वह उसके साथ-साथ उसके भाई को भी मार डालेगा। डर के मारे वह यह बात परिवार से छिपाती रही। जब उसका गर्भ 8 महीने का हो गया, तो पेट दिखने लगा। मां ने पूछा, तो  उसने अपनी मां से सारी बातें बतायी। मां को कुछ नहीं सूझा, तो मोहल्ले में लगे स्वास्थ्य कैम्प में वह अपनी बेटी को ले गई । डॉक्टरों ने 8 माह का गर्भ बताया, जिसे गिराना नामुमकिन था। मां और बेटी एक स्वयंसेवी संस्था के पास पहुॅची और पूरी घटना की जानकारी दी, लेकिन दुष्कर्म करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को राजी नहीं हुई, बताया मेरा 18 साल का बेटा है और वह बाहर काम पर गया है, उसके लौटने के बाद ही निर्णय लेंगे। बेटा लौटा, तो उसने भी एफआईआर दर्ज करवाने से इंकार कर दिया। उनलोगों ने कहा, कि वह दूर कहीं गांव में ले जाकर लडक़ी का प्रसव करवायेंगे और बच्चे को अनाथ आश्रम में छोड़ आयेंगे। बहुत मान-मनौव्वल के बाद एफआईआर को राजी हुए । वर्तमान में अपराधी जेल में बंद है । इधर पीडि़ता ने एक बेहद कमजोर बच्चे को जन्म दिया, जिसे आश्रम भेज दिया गया है। इस दौरान नाबालिग पीडि़ता को न तो भावनात्मक सहारा मिला और न ही उपयुक्त पोषण । उसका स्वास्थ्य तो बिगड़ता ही गया, उसे समझ ही नहीं आ रहा था, कि उसके साथ हो क्या रहा है।  

    ... आंकड़े कहते हैं

    मध्यप्रदेश के यह केवल एक-दो मामले नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) - 4 के आंकड़े बताते हैं, कि किसी भी वजह से हो, लेकिन  प्रदेश के सभी जिलों में बड़ी संख्या में लड़कियां 18 से कम उम्र में विवाह के बाद मां बन रही हैं।  हालांकि सर्वेक्षण में यह भी निकल कर आया, कि प्रदेश के कई ऐसे जिले हैं, जहां  21 से  कम उम्र में लडक़ों की शादी कर दी जाती है। यह आंकड़े प्रदेश सरकार के लिए चुनौती है। क्योंकि इससे उच्च मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को बढ़ावा मिल रहा है।      किशोरियों पर गौर करें, तो प्रदेश के 51 जिलों में लगभग यही स्थिति है। सबसे ज्यादा किशोरियों की शादी झाबुआ में 54 फीसदी और सबसे कम आदिवासी और पिछडा क्षेत्र बालाघाट में साढ़े 8 फीसदी दर्ज की गई है। यहां तक की प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी 13 फीसदी किशोरियों की शादी हुई है। इसी तरह मंदसौर 48, टीकमगढ़ 47, रतलाम  46, सीधी 46, छतरपुर साढ़े 43, विदिशा  साढ़े 43, बड़वानी 42, उज्जैन 41, दमोह, सागर , राजगढ़ उमरिया , अलीराजपुर, दतिया, देवास, सतना , शहडोल, शाजापुर, डिण्डोरी, ािंगरौली , शिवपुरी, रीवा, अशोकनगर, पन्ना, नीमच, भिण्ड, सीहोर में  40 से 30 फीसदी, धार, गुना, श्योपुर, रायसेन नरसिंहपुर, मण्डला, अनुपपूर, कटनी, मुरैना, बुरहानपुर, हरदा, खरगोन, इंदौर में 30 से 20 फीसदी और ग्वालियर, होशंगाबाद, खण्डवा, सिवनी, छिंदवाड़ा, जबलपुर, भोपाल, बैतूल में 20 से 10 फीसदी तक नाबालिग लड़कियों की शादी दर्ज की गई है। यह भी लगभग तय है, कि यही किशोरियां कम उम्र में मां भी बन रही हैं। कई माता पिता का कहना है, कि वे यौवन के बाद अपनी बेटियों को अविवाहित रखकर उनकी रक्षा की बड़ी जिम्मेदारी नहीं संभाल पाती हैं । नतीजतन इन लड़कियों को सेक्स के आघात और कम उम्र में मां बनने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इनका  शरीर पूरी तरह से परिपक्व भी नहीं होता और उनका शारीरिक शोषण शुरू हो जाता है। इंदौर में महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा कराये गये एक अध्ययन से यह बात सामने आई, कि छेड़छाड़ के डर से कई माता-पिता अपनी बच्ची को बालिका वधू बना देते हैं। चौकाने वाली बात यह है, कि बेटो के बाल विवाह की प्रमुख वजह नासमझी है, वहीं बालिका वधू बनाने के पीछे मुख्य वजह गुण्डागर्दी और छेड़छाड़ का डर  है। इस शोध ने न केवल प्रशासन पर  सवाल  खड़े कर दिए है, बल्कि पुलिस  व्यवस्था की भी पोल खोल  दी है।   हालांकि प्रदेश में नाबालिगों के विवाह के मामले में लड़कियों की अपेक्षा लडक़ों की संख्या अधिक हैं। सर्वेक्षण के दौरान मध्यप्रदेश 26 जिले ऐसे निकल कर आयें, जहां अधिकतर लडक़ों की शादी 21 से पूर्व हुआ है।  अलीराजपुर में बड़े पैमाने पर लगभग 69 फीसदी और रायसेन में सबसे कम लगभग 17 फीसदी नाबालिग लडक़ों की शादी दर्ज की गई है। इसी तरह नीमच 62, भिण्ड 61, राजगढ़ 60, अशोकनगर 55, रीवा 54, उमरिया 53, मंदसौर 52, धार 50, मण्डला 48, उज्जैन 46, डिण्डोरी 45, दतिया 45, छतरपुर 42, शाजापुर 39, हरदा 38, खरगोन 31, इंदौर 28, बुरहानपुर 27, भोपाल 27, गुना 26, जबलपुर 22, छिंदवाड़ा 20, होंशंगाबाद 20, ग्वालियर साढ़े 19 हैं।  गौरतलब है, कि भारतीय विधि आयोग ने सिफारिश की है, कि लडक़े और लड़कियों की शादी की उम्र एक जैसी हो।

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