• रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार

    ऐसा क्यों होता है कि जब संसद का सत्र प्रारंभ होता है, तो किसी न किसी घोटाले का पर्दाफाश होता है। देश में हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार व्याप्त है, यह किसी से छिपा नहींहै।...

    ऐसा क्यों होता है कि जब संसद का सत्र प्रारंभ होता है, तो किसी न किसी घोटाले का पर्दाफाश होता है। देश में हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार व्याप्त है, यह किसी से छिपा नहींहै। चाहें तो रोजाना ही मौजूदा या पिछली सरकार के भ्रष्टाचार के प्रकरण सामने आएं। सामान्य वक्त में इसे नियति मान लेने की आदत डलवा दी गई है, लेकिन वक्त अगर चुनाव का हो या संसद अधिवेशन का हो, परस्पर विरोधी दल एक-दूसरे के भ्रष्टाचार को इस तरह उजागर करते हैं, जैसे गंगा सफाई का बीड़ा उठाते हैं। गंगा भी आज तक मैली है और भ्रष्टाचार भी दूर नहींहो पाया है। न खाऊंगा, न खाने दूंगा वाले प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े प्रकरणों पर चुप्पी साधे रहते हैं और मैं तो आम आदमी हूं जी बोलने वाले मुख्यमंत्री इस तरह प्रतिक्रिया देते हैं मानो उनके अलावा दुनिया में ईमानदारी का पाठ किसी ने पढ़ा ही नहींहै। बजट सत्र के बाद संसद के मौजूदा सत्र में चर्चा के लिए कई गंभीर विषय थे, जो आम आदमी पर सीधा असर करते हैं। देश में सूखे की भयावह स्थिति है। आधा देश मौसम की मार झेल रहा है। फसलें चौपट हो रही हैं और किसान बर्बादी की ओर जा रहे हैं। महंगाई काबू में नहींआ रही, विकास दर के आंकड़ों से परे बाजार की सच्चाई कुछ और ही है। देश की जलवायु ही खराब नहींहो रही, आर्थिक स्थिति ही नहींबिगड़ रही, बल्कि राजनैतिक और सामाजिक तौर पर भी माहौल सही नहींहै। अरुणाचल प्रदेश के बाद उत्तराखंड में सत्ता और सियासत का खेल खेला जा रहा है। पनामा पेपर्स लीक मामले में कई प्रभावशाली हस्तियों का नाम सामने आया है। संसद में इन तमाम मुद्दों पर सार्थक चर्चा हो सकती थी। इससे देश की समस्याओं का हल तलाशने में तो मदद मिलती, लेकिन राजनीतिक दलों को कोई खास फायदा नहींहोता, सत्तारूढ़ दल की जवाबदेही थोड़ी और बढ़ जाती सो अलग। इसलिए बेहतर है इन मुद्दों पर चर्चा ही न हो और जनता का ध्यान इनसे हटाने के लिए जरूरी है किसी घोटाले का उजागर होना। नतीजा हमारे सामने है अगस्ता वेस्टलैंड हैलीकाप्टर सौदे में हुए तथाकथित भ्रष्टाचार के रूप में। पिछले एक सप्ताह से संसद में इस पर हंगामा हो रहा है। यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने की मांग की गई है। हाल ही में राज्यसभा सांसद बने सुब्रमण्यम स्वामी ने तो उन पर रिश्वत लेने का आरोप ही लगा दिया। सोनिया गांधी कह रही हैं कि वे किसी से नहींडरती तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि हां हम तो संविधान से, लोक लाज से डरते हैं। देश जानता है कि भाजपा के दो साल के शासनकाल में संविधान की कई बातों का कैसा मखौल उड़ाया गया है। और लोकलाज की बात ही क्या करें? बहरहाल, अगस्ता वेस्टलैंड सौदा मामले में भाजपा सरकार कांग्रेस को इस तरह घेर रही है, मानो वह विपक्ष में हो और उसे कांग्रेस को सत्ताच्युत करना है। वह पूर्ण बहुमत से सरकार चला रही है और इस मामले की जांच उसके लिए कठिन कार्य नहींहोना चाहिए। 2010 में अतिविशिष्ट व्यक्तियों के लिए इस कंपनी द्वारा बनाए गए 12 हैलीकाप्टरों की खरीद का सौदा 36 सौ करोड़ में तय हुआ था, लेकिन जब यह खुलासा हुआ कि इसमें रिश्वत भी दी गई है, तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस सौदे को रद्द कर दिया था। यूपीए सरकार ने इटली की अदालत में मुकदमा लड़ा और सौदे के पैसे वापस लिए, ऐसा पूर्व रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी का कहना है। कांग्रेस का यह दावा भी है कि 2013 में उसने कंपनी का नाम काली सूची में डाल दिया था, और भाजपा सरकार ने उनके फैसले को उलट दिया। जबकि भाजपा का आरोप है कि रिश्वतखोरी की बात मालूम होने के बावजूद यूपीए सरकार ने उसे काली सूची में नहींडाला था। इधर इटली में मिलान कोर्ट ऑफ अपील्स ने सोमवार को दिए फैसले में माना कि इस हेलिकॉप्टर सौदे में भ्रष्टाचार हुआ है और इसमें भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख एस.पी. त्यागी भी शामिल थे। यहां गौरतलब है कि यूपीए सरकार ने भी एस.पी.त्यागी समेत 13 लोगों पर मामला दर्ज किया था। श्री त्यागी ने किसी भी तरह की रिश्वत लेने से इंकार किया है और अब पूरे मामले की निष्पक्ष जांच के बाद ही सच्चाई सामने आएगी। मामला पेचीदा है, लेकिन एक बात फिर स्पष्ट तौर पर उभरी है कि रक्षा सौदों में दलालों के प्रभाव के आगे नेता और अफसर झुक जाते हैं और भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर होता है। संसद के लिए गंभीर चिंतन का एक विषय यह भी हो सकता है कि किस तरह सामरिक जरूरतों की पूर्ति में देशहित को बचाया जाए और दलालों के चंगुल से बचा जाए।

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