दिल्ली में सम-विषम योजना का दूसरा चरण लगभग समाप्ति पर है और इसका प्रदूषण कम करने में इसका कितना योगदान रहा, यह 30 तारीख के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल जो खबरें हैं उसके मुताबिक वायु प्रदूषण कम करने में इस योजना से कोई खास असर नहींपड़ा है, विशेषज्ञ मानते हैं कि केवल वाहनों से नहीं, अन्य बहुत से कारणों से प्रदूषण होता है, जिन्हें दूर करने की जरूरत है। नि:संदेह प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने, कचरा जलाने, ई-कचरा अविचारित ढंग से फेेंकने आदि बहुत से कार्यों से प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है और उसके समाधान के लिए उपाय बहुत सीमित हो रहे हैं। सड़कों पर गाडिय़ों का बोझ कम होने से प्रदूषण स्तर में मामूली कमी भी आती है, तो यह राहत की बात है और उससे बड़ी राहत है अनियंत्रित यातायात की भयावह समस्या से कुछ दिनों के लिए मुक्ति मिलना। सम-विषम के बहाने ही सही लेकिन जनता ने सार्वजनिक यातायात, वाहन साझा करने जैसे विकल्पों पर विचार किया, उसे अपनाया। सार्वजनिक यातायात के साधनों का जितना अधिक इस्तेमाल होगा, उतना अधिक दबाव सरकार पर पड़ेगा कि वह इस सुविधा को और अधिक सुविधाजनक बनाए। अब तक तो यही होता था कि गरीब जनता, जो निजी वाहन का खर्च नहींउठा सकती, उसके लिए सरकारी बसें होती थींऔर समाज में हैसियत रखने वाले लोग अपनी हैसियत के प्रदर्शन के मुताबिक वाहन रखते थे। यह प्रवृत्ति बदलती है तो इसका असर दूरगामी होगा। पिछली बार जब आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा यह योजना लाई गई थी, तो दिल्ली की जनता के साथ-साथ विभिन्न राजनीतिक दलों का सहयोग भी मिला था। किंतु इस बार विरोध के स्वर अधिक दिख रहे हैं, बल्कि विरोध के नाम पर नियम तोडऩे से भी राजनेता गुरेज नहींकर रहे हैं। भाजपा सांसद विजय गोयल पहले दिन ही इस नियम को पूरे ऐलान के साथ तोडऩे निकले, जबकि दिल्ली सरकार के परिवहन मंत्री गोपाल राय उनसे ऐसा न करने की अपील करने पहुंचे थे। गोयल साहब ने न केवल सम-विषम का नियम तोड़ा, बल्कि उन्होंने अपना लाइसेंस भी साथ नहींरखा। क्या विरोध में इतनी सतर्कता उन्हें नहींबरतनी चाहिए थी। बहरहाल, संसद सत्र को देखते हुए सांसदों के लिए विशेष बसें चलाई गईं, ताकि बिना किसी परेशानी के वे संसद पहुंच जाए। लेकिन वीआईपी संस्कृति के गुलाम कई सांसदों ने निजी वाहन में ही संसद जाना तय किया, भले इससे नियम का उल्लंघन होता हो। पिछले दिनों अभिनेता व सांसद परेश रावल ने यह नियम तोड़ा, बाद में ट्विटर पर खेद जतलाया। नियम तोडऩे वाले अन्य भाजपा सांसदों में अश्विनी चोपड़ा, राजेंद्र अग्रवाल, चौधरी बाबूलाल, प्रहलाद पटेल, उदित राज, केपी मौर्या और बीसी खंडूरी शामिल हैं। जबकि भाजपा सांसद रंजन भट्ट और हरिओम सिंह राठौर ने डीटीसी की ओर से चलाई गई विशेष बस में सफर किया और संसद पहुंचे। रंजन भट्ट ने कहा भी कि मैं इस सेवा से बेहद खुश हूं। मैं इसका समर्थन करती हूं। प्रदूषण नियंत्रण के लिए यह काफी अच्छी सुविधा है। लेकिन बुधवार को भाजपा सांसद रामप्रसाद शर्मा इस योजना के विरोध में घोड़े से संसद पहुंचे और विजय गोयल अपनी कार में विरोध के कई स्टीकर लगा कर संसद आए। लोकतंत्र में विरोध के लिए भरपूर स्थान है, लेकिन उससे ज्यादा स्थान देना चाहिए जनहित को। महज 15 दिनों की सम-विषम योजना में अधिकतम 7 दिनों की तकलीफ आवाजाही में होगी, जो पृथ्वी की समस्या को देखते हुए बहुत अधिक नहींहै। लेकिन अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति और संकुचित मानसिकता के कारण हम अपने अलावा अन्य किसी की तकलीफ देखते ही नहींहैं। आज का प्रदूषण हमारे लिए जितना घातक है, उससे कहींअधिक भावी पीढिय़ों के लिए है। सम-ïिवषम का नियम सरकार बनाए या न बनाए, हमें खुद इस नियम से बंधना चाहिए, ताकि धरती की और अपनी बीमारी थोड़ी कम कर सकेें। क्या हमारे सच्चे जनप्रतिनिधि इस ओर विचार करेंगे।