प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो वर्षों में लगभग सभी शक्तिशाली देशों की यात्रा कर ली, अमरीका तो वे बार-बार पहुंच रहे हैं, तथाकथित तौर पर बिना पूर्व सूचना के पाकिस्तान भी पहुंच गए। ब्रिटेन में महारानी के साथ भोजन कर आए और ओबामा के रात्रिभोज में नवरात्र व्रत के चलते कुछ भी ग्रहण न करने का इतिहास भी रच दिया। हर देश में किसी चर्चित आयोजन स्थल पर उनकी सभा आयोजित हो गई और वहां मौजूद भारतीय समुदाय ने उनकी जय-जयकार भी कर दी। मोदी की विदेश यात्राओं का एक स्थायी तत्व कांग्रेस सरकार के लंबे शासनकाल की आलोचना भी रहा। तब वे भारत नहींभाजपा के प्रधानमंत्री की भूमिका में आ जाते थे। हर विदेश यात्रा के बाद भाजपा की ओर से यही साबित किया जाता कि देखो, हम कैसे भारत की नयी पहचान दुनिया में बना रहे हैं। देखो, मोदीजी के कारण भारत की कितनी इज्जत दुनिया में बढ़ी है। देखो, अमरीका जैसे शक्तिशाली देश का रवैया भारत के साथ कितना दोस्ताना है। इधर ओबामा, बराक नाम से संबोधित किए गए, उधर नवाज शरीफ के घरेलू कार्यक्रम में शिरकत हुई। लेकिन अमरीका ने पाकिस्तान को सामरिक मदद की और आप नाराजगी का ढोल पीटते रह गए। पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तान जांच में मदद का दिखावा करता रहा और आप उसकी जांच टीम को पठानकोट बेस तक ले गए। संरा में पाकिस्तान निवासी मसूद अजहर को आतंकी घोषित करवाने के भारत के प्रस्ताव को चीन ने वीटो कर दिया और आप कंधार अपहरण कांड की तरह बेबस नजर आए। इसके बाद भी सरकार यह मानने तैयार नहींकि उसकी विदेश नीति निरंतर कमजोर हो रही है, या वैश्विक मंच में भारत की बातों का वजन कम हो रहा है। तीन-चार दिन पहले उइगर नेता डोल्कन ईसा को वीजा देकर भारत सरकार ने अपनी पीठ खुद थपथपा ली कि हम चीन को बराबरी से जवाब देना जानते हैं। डोल्कन ईसा को चीन ने आतंकवादी घोषित किया है और उनके खिलाफ रेड कार्नर नोटिस भी जारी है। डोल्कन ईसा अहिंसा और लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं, और चीनी सरकार की नीतियों के खिलाफ हैं। चीन ने आरोप लगाया है कि इस्लाम को मानने वाले उइगरबहुल शिनजियांग प्रांत में जो आंदोलन होते हैं, उनमें पाकिस्तान और अफगानिस्तान के आतंकी गुट मदद करते हैं। चूंकि डोल्कन ईसा उइगरों के नेता हैं, तो चीन उन्हें गिरफ्तार करना चाहता है। वे फिलहाल जर्मनी में निर्वासित जीवन जी रहे हैं। चीन को तिब्बतियों के धार्मिक गुरु व सर्वोच्च नेता दलाई लामा से भी तकलीफ है, क्योंकि उनकी अहिंसक लड़ाई उसे बार-बार यह एहसास कराती है कि किस तरह उसने तिब्बत को अपने अधिकार क्षेत्र में रखा है। दलाई लामा भारत के धर्मशाला में रहते हैं, जहां सैकड़ों तिब्बती भी रहते हैं। धर्मशाला में एक कार्यक्रम में शिरकत के लिए डोल्कन ईसा को आना था, जो विभिन्न धर्मों व नस्लों के बीच संवाद के लिए था। भारत में ऐसे किसी भी आयोजन का होना उसकी उदार, बहुविध संस्कृति को रेखांकित करना है, साथ ही दुनिया के लिए संदेश भी है कि आतंकवाद से पीडि़त होने के बावजूद हम शांति के कितने हिमायती हैं। चीन की नाराजगी की परवाह किए बगैर डोल्कन ईसा को भारत आने दिया जाता तो इससे उसके मजबूत इरादों का पता चलता। लेकिन फिलहाल तकनीकी कारणों का हवाला देकर वीजा रद्द कर दिया गया है। डोल्कन ईसा इससे निराश हैं, लेकिन चीन अवश्य प्रसन्न हुआ होगा। यह और बात है कि शांतिपूर्ण तरीके से लड़ाई लड़ रहे डोल्कन ईसा उसे आतंकवादी नजर आते हैं और जिस मसूद अजहर को भारत की जेल से निकालने के लिए विमान का अपहरण कर कंधार तक ले जाया गया, जिसने मुंबई हमलों की साजिश रची, जिस पर पठानकोट हमले की साजिश रचने का आरोप है, जो निरंतर भारत के खिलाफ आग उगलता रहता है, उसे पाकिस्तान सरकार तो बचाती आ ही रही है, चीन ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसका साथ दे दिया और हम हैं कि अमरीका, पाकिस्तान, चीन सबकी मनमानी सह रहे हैं, विदेशनीति की ये कैसी मजबूती है।