• जिंदगी-मौत से जूझ रहा एक और मासूम

    इंदौर ! मध्यप्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय में कल एक बच्चे की मौत के बाद दूसरा बच्चा भी जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है। अस्पताल प्रशासन ने सारी जिम्मेदारियां पाइपलाइन जोडऩे वाले ठेकेदार पर थोपते हुए ...

    इंदौर !   मध्यप्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय में कल एक बच्चे की मौत के बाद दूसरा बच्चा भी जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है। अस्पताल प्रशासन ने सारी जिम्मेदारियां पाइपलाइन जोडऩे वाले ठेकेदार पर थोपते हुए उसके खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज कराया है. शनिवार को आपरेशन के दौरान राजवीर को आक्सीजन की जरुरत पडी तो डाक्टरों ने आक्सीजन का मास्क चेहरे पर लगा दिया. लेकिन ये मास्क जिस पर आक्सीजन लिखा था दरअसल उसमें बेहोश करने वाली गैस नाईट्रस आक्साईड थी. बच्चे की हालत बिगडते देख डाक्टरों ने आक्सीजन सिलेंडर बुलवाया औऱ मास्क हटा कर उससे आक्सीजन दी गई क्योंकि एक दिन पहले भी एक बच्चे आयुष की इसी तरह मौत हो चुकी थी. बाद में पता चला कि दोनों ही गैस का कनेक्शन आपस में बदल गया था. हादसे का शिकार हुए दूसरे बच्चे राजवीर को बचाने के लिये तमाम कोशिशे की जा रही है. डाक्टरों की आठ टीमें बच्चे की जान बचाने में जुटी हुई है. पूरे परिवार का रो-रो कर बुरा हाल है, राजवीर के मामा बालू प्रजापति का  कहना है कि बच्चा आपरेशन कक्ष में जाने से पहले खिलखिला रहा था औऱ अब वो तभी से बेहोश है, इसमें पूरी गलती डाक्टरों की ही है. अस्पताल के प्रभारी अधीक्षक डॉ सुमित शुक्ला ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि यह शल्यकर्म कक्ष मंगलवार को ही प्रारम्भ किया गया था. खंडवा के आयुष की ही पहली शल्य क्रिया थी. आयुष को हर्निया की बीमारी थी. शल्य क्रिया के दौरान ऑक्सीजन की कमी पडऩे पर ऑक्सीजन मास्क लगाया गया लेकिन वह ऑक्सीजन नहीं होकर नाइट्रस गैस थी. ऑक्सीजन की कमी होने से आयुष के ह्रदय ने काम करना बंद कर दिया और उसकी मौत हो गई. इसी तरह अगले दिन दूसरे बच्चे राजवीर के साथ भी यही हुआ. डॉक्टरों ने स्थिति को भापकर तत्काल कथित ऑक्सीजन मास्क को हटाकर बाहर से सिलेंडर की ऑक्सीजन इस्तेमाल की. जिससे बच्चे को बचा लिया गया. डॉ शुक्ल के मुताबिक दोनों ही गैस रंगहीन और गंधहीन होती है, इससे उन्हें पहचाना नहीं जा सका. यह जिम्मेदारी ठेकेदार की थी. किसी भी अस्पताल में गैसों का परिक्षण नहीं किया जा सकता और न ही प्रायोगिक तौर पर यह संभव है.                इस हादसे के बाद भी अस्पताल प्रबन्धन चेता नहीं. कोई कोशिश नहीं की गई आयुष की मौत के कारण जाननें की. शायद की जाती तो दूसरे मासूम की जिंदगी पर आज खतरा नहीं मंडरा रहा होता. अस्पताल प्रशासन की रिपोर्ट और ठेकेदार राजेन्द्र चौधरी के गलती स्वीकार किए जाने के बाद पुलिस ने फिलहाल उसे गिरफ्तार कर लिया है.


     

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