• मोदी की दूसरी यात्रा में भी गर्मजोशी से स्वागत करेगा अमेरिका

    वाशिंगटन ! माना जा रहा था कि जिस आदमी को अमेरिका ने कानून का हवाला देकर आने से रोक दिया था, लेकिन भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद खूब गर्मजोशी से स्वागत किया था,...

    वाशिंगटन !  माना जा रहा था कि जिस आदमी को अमेरिका ने कानून का हवाला देकर आने से रोक दिया था, लेकिन भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद खूब गर्मजोशी से स्वागत किया था, उनकी दूसरी यात्रा के मौके पर भी वही गर्मजोशी दिखाएगा।

    लेकिन ऐसा सुना जा रहा है कि मोदी की यात्रा से महज दो हफ्ते पहले कैपिटल हिल (अमेरिकी संसद) में मोदी की आलोचना हो रही है। मोदी की यह आलोचना बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता, लैंगिंक हिसा, मानव तस्करी और गुलामी के बढ़ते मामलों को लेकर की जा रही है।

    अमेरिकी संसद की विदेशी संबंध समित ने जब मोदी की यात्रा से पहले 'अमेरिका-भारत संबंध : प्रगति, संतुलन और उम्मीदों के प्रबंधन' विषय पर परिचर्चा आयोजित की तो समिति के रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष बॉब क्रोकर ने 'क्रूरता से ईमानदार' होने का फैसला किया।

    क्रोकर ने भारत को दुनिया के सबसे ज्यादा गुलाम वाले देश होने पर निराशा जताई और कहा कि भारत इस स्थिति को दूर करने में नाकाम रहा है। उन्होंने कहा, "कैसे कोई 1.2 से 1.4 करोड़ गुलामों वाला देश हो सकता है?"

    250 साल के गुलामी के इतिहास वाले देश के सांसद ने भारत के बारे में कहा, "क्या उनके अभियोजन पक्ष की क्षमता शून्य है, क्या उनकी कानून प्र्वत्तन एजेंसियां शून्य है। मेरा मतलब है कि यह कैसे संभव है? वो भी उस पैमाने पर, यह बहुत अविश्वसनीय है।"

    हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि दोनों देशों के बीच सहयोग फिलहाल किसी भी समय से सबसे ज्यादा है। उन्होंने कहा कि मोदी ने आर्थिक सुधार करने की बजाए महज बयानबाजी की है। उन्होंने भारत की लालफीताशाही वाली नीति पर भी निशाना साधा।

    उन्होंने भारत में बौद्धिक संपदा अधिकार को लेकर 'गंभीर चिंता' जताई और दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु करार के 8 सालों बाद भी भारत द्वारा अमेरिकी कंपनियों को निविदा जारी करने में प्रगति की कमी पर चिंता जाहिर की।


    यही समिति के शीर्ष डेमोक्रेट बेन कार्डिन ने भी आश्चर्य जाहिर किया कि भारत में मानव तस्करी जैसे मुद्दों के बावजूद किस प्रकार अमेरिका उसे अपना सहयोगी और साथी मान रहा है।

    दूसरे डेमोक्रेट टिम काइने ने भारत द्वारा अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग को वीजा जारी नहीं करने का मुद्दा उठाया और सिख अमेरिकी समुदाय की धार्मिक सिख ग्रंथों और स्थानों की अपवित्रता को लेकर चिंताओं को जाहिर किया।

    भारत अब ईरान के साथ गलबहियां कर रहा है और मोदी ने 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं जिसमें एक चाबहार बंदरगाह का विकास भी है। इस पर समिति के सदस्यों ने चिंता जताई कि कहीं यह अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन तो नहीं है।

    वहीं, इस गोष्ठी में निशा देसाई बिस्वाल जो ओबामा प्रशासन के विदेश मंत्रालय में दक्षिण और मध्य एशिया के मामलों को देखती हैं, ने भारत के पक्ष में सकारात्मक बातें कहीं।

    उन्होंने भारत को प्रजातांत्रिक, बहुलवादी और धर्मनिरपेक्ष समाज बताया जिसे अमेरिका भारत के साथ साझा करता है। इसे ओबामा ने '21वीं सदी की निर्णायक साझेदारी' का नाम दिया था।

    वहीं, ईरान के मुद्दे पर बिस्वाल ने कहा कि भारत ने ईरान के साथ किसी प्रकार की सामरिक साझेदारी नहीं की है, इसलिए यह अमेरिका के लिए चिंता का विषय नहीं होना चाहिए।

    उन्होंने कहा कि भारत के लिए ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया जाने का रास्ता है।

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