• लिब्रहान के साथ जनता की रिपोर्ट भी देखें

    बहुचर्चित अयोध्या के बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड पर पूर्व न्यायाधीश मनमोहन लिब्रहान ने अपनी जांच में जो पाया, उसे संसद के पटल पर रखा जा चुका है। इससे पूर्व इसी रिपार्ट के लीक होने पर ...

    नई दिल्ली । बहुचर्चित अयोध्या के बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड पर पूर्व न्यायाधीश मनमोहन लिब्रहान ने अपनी जांच में जो पाया, उसे संसद के पटल पर रखा जा चुका है। इससे पूर्व इसी रिपार्ट के लीक होने पर संसद में हंगामा मचा था और एक वर्ग का तो साफ साफ कहना था कि संघ परिवार, जिसमें भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना, बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद जैसे कई घटक शामिल हैं, उसी को पूरी तरह दोषी ठहराया गया था। कथित बाबरी मस्जिद के तीन विशाल गुंबद थे और पुराने होने के बावजूद दो चार आदमियों के वश में नहीं था उसे गिरा देते। मामला पेंचीदा है क्योंकि शुरूआत वोट की राजनीति से हुई थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़े वर्ग के वोट हड़पने के लिए मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने की घोषणा कर दी थी। उन्हें अल्पसंख्यकों (मुसलमानों) का पैरोकार भी माना जाता था। इस प्रकार भाजपा के सामने भी हिन्दू कार्ड खेलने की मजबूरी थी। अयोध्या के राम मंदिर को लेकर उसनपे यहीं किया। जनता का अपार समर्थन मिला और उन्हीं में से कहर हिन्दूवासियों ने उस ढांचे को गिरा दिया था। इससे हर समझदार आदमी दुखी हुआ था लेकिन दोषी कौन है, यह कह पाना उस समय भी मुश्किल था और आज भी है जब लिब्रहान की रिपोर्ट संसद में पेश हो चुकी है। उसकी कई बाते आमजनता के विचारों से मेल नहीं खाती।दरअसल यह एक ऐसा अपराध था जिसे इस देश के लाखों करोड़ों ने दूरदर्शन के माध्यम से देखा था और उससे पूर्व की परिस्थितियों को भी वे देख चुके थे। राम मंदिर के शिला पूजन पर प्रतिबंध लगाने में और अयोध्या की वर्षों से चली आ रही पंचकोशी परिक्रमा को रोक देने से आम जनता में आक्रोश फैलना स्वाभाविक था। इसलिए  सिर्फ यह कहना कि भाजपा नेताओें ने भड़काऊ बयान दिया इसीलिए उत्तेजित कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया, ठीक नहीं होगा। यदि भड़काऊ बयान ही दोषी होता है तो सन् 1984 के दिसम्बर में जब श्रीमती इंदिरा गांधी को उनके सिख अंग रक्षकों ने गोली मार दी थी तो मीडिया को यह बात जनता से छिपानी चाहिए थी। सरकार यदि मीडिया पर प्रतिबंध लगाती, तब भी लोकतंत्र का हनन होता। इसलिए सच्चाई को भड़काऊ बयान नहीं कहा जा सकता। अयोध्या के लोग और देश के संत महात्मा यदि यह कहते है कि अयोध्या में बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनायी थी तो इसको भ्ीा एकदम से नकारना उचित नहीं कहा जा सकता। भारत में अति प्राचीन काल से हिन्दू रहते आये हैं। रामायण और महाभारत भी ऐतिहासिक ग्रंथ माने जाते हैं जबकि बहुत बड़े वर्ग के लिए वे धार्मिक ग्रंथ है। मुसलमानों का हमला और यहां अपना राज स्थापित करना तो इतिहास के हाल की घटना है। यह बात समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अमर सिंह भी क्यों भूल गये जब संसद में भाजपाई नेता ने जय श्रीराम का नारा लगा दिया। श्री अमर सिंह कोई संसद के दरोगा तो नहीं हैं। बहरहाल! उनके छिछोरे आचरण से मुसलमान भी खुश नहीं होंगे। श्री अमर सिंह ने एस एस अहलूवालिया का भरे सदन में कालर पकड़ा। श्री अहलूवालिया काफी बुजुर्ग नेता हैं और अल्पसंख्यक वर्ग के हैं। अब श्री अमर सिंह कहते हैं कि सदन में भाजपाईयों की नारे बाजी करने के कारण भावावेश में आ गया था, इसलिए हमला कर दिया। मेरा इरादा हमला करने का नहीं था। सवाल है कि जब मामूली नारेबाजी से श्री अमर सिंह भावावेश में आ गये तो पंचकोशी परिक्रमा रोके जाने से जिन लोगों में आक्रोश पैदा हुआ होगा, उन्होंने यदि पुराने ढांचे को ध्वस्त कर दिया तो इसमें किसी की साजिश क्यों तलाशी जा रही है। सबसे बड़ी बात यह कि जो ढांचा गिर गया वह दुबारा नहीं बन सकता, इसलिए विवाद को खत्म कर देना चाहिए था।यह विवाद लिब्रहान की रिपोर्ट से और बढ ग़या है। राजनीतिक समीक्षकों के अनुसार अभी हाल में झारखंड  के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इस रिपोर्ट का वहां प्रभाव पड़ सकता है लेकिन फायदा किसको मिलेगा, यह कहना मुश्किल है। कांग्रेस भी कटघरे में है और भाजपा भी। यहीं दोनों पार्टियां वहां प्रमुख हैं। कई लोगों का मानना है कि न्यायाधीश लिब्रहान ने भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को दोषी ठहराया है जबकि तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव को क्लीनचिट दी है। यह बात सामान्य जनता के गले नहीं उतरती। लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट में अटल बिहारी बाजपेई समेत भाजपा के 68 नेताओं को दोषी बताया गया। आयोग के अनुसार ये लोग देश को साम्प्रदायिक वैमनस्य की आग में झोंक देना चाहते थे। यह बात श्री अटल बिहारी बाजपेई जैसे नेता के बारे में कोई मानने को तैयार नहीं है। आयोग की रिपोर्ट में श्री बाजपेई को छदम उदारवादी नेता बताया गया है और कहा गया कि उन्हें दोषमुक्त नहीं किया जा सकता। रिपोर्ट में साफ-साफ यह क्यों नहीं कहा गया कि वे दोषी हैं। इसी कारण लिब्रहान की रिपोर्ट से जनता की राय नहीं मिलती है और लोकतंत्र जनता के लिए और जनता के द्वारा ही है, इसलिए उसकी राय जानना भी जरूरी होगा।

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