इंदौर ! गांवों से खत्म होते पानी की वजह से बर्बाद होती फसलों ने यहाँ की माली हालत तो चरमरा ही दी है। अब यहाँ आत्महत्याओं का सिलसिला भी थम नहीं पा रहा है। मालवा-निमाड़ के कई गांवों की यही कहानी है। इस साल ही खरगोन जिले में 80 लोग खुदकुशी के शिकार हुए है। जबकि बीते साल मालवा-निमाड़ में 1700 से ज्यादा और अकेले निमाड़ में 695 लोगों ने ख़ुदकुशी कर ली। ढाई हजार की आबादी वाले एक गाँव में बीते तीन महीने में ही कई लोगों की आत्महत्या ने सबको चौंका दिया है। खेतों में कीटनाशकों का उपयोग इसकी बड़ी वजह है।
खरगोन जिले में तीन महीनो मैं 80 लोगों ने खुदकुशी की है। इसी जिले का गाँव बाड़ी इन दिनों हर घर में पसरे मातम से चर्चा में है। यहाँ के लोगों पर ख़ुदकुशी की सबसे ज्यादा मार पड़ी है। 320 परिवारों के इस गाँव में युवा सरपंच राजेन्द्र सिसौदिया सहित कई युवा और अधेड़ किसान बीते कुछ महीनों से लगातार आत्महत्या कर चुके हैं। इनमें कुछ महिलाएं और किशोर भी शामिल हैं। बीते 8 सालों में यहाँ 45 से ज्यादा खुदकुशी हो चुकी है। लेकिन बीते महीनो में यह आकड़ा लगातार बढ़ रहा है. ज्यादातर मामलों में ख़ुदकुशी के कारणों का पता नहीं है पर इलाके में खेती की स्थिति कमजोर होना प्रमुख कारण बताया जा रहा है। सरपंच जीवन सिसौदिया बताते हैं कि गाँव किसी राक्षस या भूत की छाया में है, इसीलिए घर-घर ऐसी घटनाएँ हो रही है। हालाँकि गाँव के ही कई लोग उनकी इस बात से सहमत नहीं है।
इलाके के पढ़े-लिखे लोग इसे कीटनाशकों की वजह बताते हैं। इलाके में बड़ी तादात में कपास की खेती होती है. इसके लिए गाँव-गाँव कीटनाशक आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। ज्यादातर ख़ुदकुशी इसी के उपयोग से हुई है। अकेले खरगोन जिले में बीते साल 381 लोगों के ख़ुदकुशी के आंकड़े पुलिस में दर्ज है। जबकि बडवानी और खंडवा जिले में 314 का आंकड़ा है।
मनोचिकित्सक डॉ कुलदीप श्रीवास्तव बताते हैं कि फसल ठीक नहीं होने से किसानों पर कर्ज बढ़ रहा है तो दूसरी ओर गांवों में बीते कुछ सालों में उपभोक्ता संस्कृति भी तेजी से बढ़ी है। इसमें बाज़ार तरह-तरह की चीजों से भरे पड़े हैं। गाँव के सक्षम लोग तो इन्हें खरीद लेते हैं लेकिन निम्न आयवर्गीय परिवारों में लोग कुंठित और अवसादग्रस्त हो जाते हैं। इससे इन दिनों लोग ख़ुदकुशी तक कर लेते हैं. वे कहते हैं कि कई बार कीटनाशक के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल या असावधानी से शरीर में जाने से भी व्यक्ति की मौत हो सकती है. लोग इसे भी ख़ुदकुशी मान लेते हैं। दरअसल कुछ कीटनाशकों में ओर्गानोफॉस्फेट ज्यादा मात्रा में होता है जो अवसाद को कई गुना बड़ा देता है।
खरगोन एसपी अमितसिंह मानते हैं कि अधिकाँश मामलों में हताशा और कुंठा होती है। इसकी एक वजह कीटनाशकों का आसानी से मिलना भी हो सकता है। सुसाईड नोट मिलने से स्थिति साफ़ हो जाती है। इस इलाके में खुला माहौल और काउन्सिलिंग जरूरी है।