• तेजी से पिघल सकते हैं ग्लेशियर,जंगलों की आग पर वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

    देहरादून/ हरिद्वार ! वैज्ञानिकों की माने तो उत्तराखंड के जंगलों में लगी विकराल आग से पर्यावरण को काफी क्षति पहुंचने के साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने से गंगा नदी में जल की कमी होने के अलावा ओजोन परत को भी नुकसान होने से मानसून का चक्र बिगड़ सकता है ।...

    देहरादून/ हरिद्वार !   वैज्ञानिकों की माने तो उत्तराखंड के जंगलों में लगी विकराल आग से पर्यावरण को काफी क्षति पहुंचने के साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने से गंगा नदी में जल की कमी होने के अलावा ओजोन परत को भी नुकसान होने से मानसून का चक्र बिगड़ सकता है । सूत्रों के अनुसार जंगलों में लगी आग से उठने वाले धुएं से आसमान में ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन होता , जो काफी समय तक बादलों में एकत्रित होता रहता है। यह स्थिति काफी नुकसान दायक है, जिससे असमय वर्षा या तापमान में एकाएक बढ़ोतरी हो सकती है। उत्तराखण्ड में लगी आग से तापमान अचानक .02 डिग्री बढ़ गया है। सूत्रों के अनुसार यहां लगी आग और इससे निकलने वाला कार्बन तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरों को पिघलाने का कारक होता है। काला कार्बन एवं राख हवा में उड़कर ग्लेशियर पर जाकर जमा हो जाती है, जिसके बाद ग्लेशियर गर्मी और रोशनी को ग्रहण करने लगता है, जिसके बाद इसके पिघलने की प्रक्रिया तेजी से बढऩे लगती है । उत्तराखण्ड के जंगलों में धधकती आग से जहां लगभग 3000 हेक्टैयर जंगलों को प्रभावित किया है,वहीं छह से अधिक लोगों तथा सैंकडों जानवरों की जाने जा चुकी है । इसके साथ ही करोड़ों की वन संपदा खाक हो चुकी है। आग बुझाने के लिए सरकारी अमला युद्धस्तर पर जुटा हुआ है लेकिन हालात अभी पूरी तरह नियंत्रण में नहीं है।


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