झीरम घाटी हमले के तीन साल बाद राज्य सरकार ने सीबीआई जांच कराने की घोषणा की है। इस हमले में प्रदेश कांग्रेस के कुछ शीर्ष नेताओं के साथ पार्टी के 29 लोग नक्सलियों की गोली का निशाना बने थे। इस हमले के समय केन्द्र में कांग्रेस की ही सरकार थी और उसने इसकी जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से कराने के तत्काल आदेश दे दिए थे। एजेंसी ने इस मामले में हमले तथा हमले की साजिश रचने के आरोप में आठ लोगों को गिरफ्तार किया। ये सभी जेल में है और बिलासपुर के विशेष न्यायालय में मामले की सुनवाई चल रही है। इधर राज्य सरकार ने इस हमले की न्यायिक जांच के आदेश भी दे दिए थे और यह आयोग हाईकोर्ट के न्यायाधीश प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में अलग जांच कर रहा है। इस बीच तीन साल बाद हमले की सीबीआई जांच कराने के फैसले कोई औचित्य समझ नहीं आता। हालांकि कांग्रेस की यह मांग पुरानी है कि हमले की सीबीआई जांच कराई जानी चाहिए। कांग्रेस इस हमले को सरकार का षडयंत्र भी बताती रही है। ऐसा लगता है कि सरकार सीबीआई जांच की सिफारिश करके उसके इस तरह के आरोप के पीछे विपक्ष की शंकाओं को दूर कर देना चाहती है। सरकार पहले भी सीबीआई जांच की घोषणा कर सकती थी, लेकिन उसने तीन साल बाद यह निर्णय लिया है। एनआईए अपनी जांच लगभग पूरी कर चुकी है। अब न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में इस पर क्या नई रोशनी पड़ती है, यह इसका इंतजार सभी को होगा। झीरमघाटी हमला छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का सबसे बड़ा हमला था, जिसमें प्रमुख विपक्षी पार्टी का एक प्रकार से नेतृत्व ही खत्म कर दिया गया था। नक्सली नेताओं की ओर से इस हमले को लेकर जो कुछ प्रतिक्रियाएं सुनाई दी थीं,उससे हमले के पीछे राजनैतिक षडयंत्र को और हवा मिली क्योंकि प्रतिक्रियाओं में यह बताने की कोशिश की गई कि जिन नक्सलियों ने झीरमघाटी हमले को अंजाम दिया उन्हें, हमले का कोई निर्देश नहीं था। कांग्रेस सीबीआई जांच कराकर इसी रहस्य से पर्दा उठाना चाहती है। सरकार ने जांच की सिफारिश करके यह साफ कर दिया है कि वह किसी भी एजेंसी से हमले की जांच कराने के लिए तैयार है। लेकिन प्रश्न यहां किसी की मांग पर निर्णय लेने या उसमें हुई देरी का भी नहीं बल्कि मुख्य प्रश्न यह है कि आखिर ऐसी कौन से परिस्थितियां बनीं, जिसमें सरकार को सीबीआई जांच की घोषणा करनी पड़ी? क्या एनआईए की जांच आधी-अधूरी लगती है या न्यायिक जांच आयोग की अब तक की सुनवाइयों से निकले संकेत के आधार पर सीबीआई जांच की आवश्यकता हुई? फिलहाल ऐसा भी कोई कारण दिखाई नहीं देता। अलबत्ता ऐसा लगता जरुर है कि सरकार झीरमघाटी हमले पर विपक्ष के लिए सवाल करने का कोई अवसर छोडऩा नहीं चाहती। अब यह सीबीआई पर है कि जिस हमले की जांच एनआईए को सौंपी गई, जिसकी न्यायिक जांच चल रही हो, उसे वह अपने हाथ में लेना कबूल करती भी है या नहीं। नक्सली राजनेताओं पर हमले करते रहे है पर एक राजनैतिक व्यवस्था के विरोध मेंं किसी राजनैतिक दल की यात्रा पर हमले की संभवत: देश में पहली घटना थी। कांग्रेस के नेता परिवर्तन यात्रा पर निकले थे और नक्सलियों ने 29 लोगों को गोलियों का निशाना बनाया था।