• हम किसकी जय चाहते हैं?

    जो नरेन्द्र मोदी के समर्थक नहीं हैं उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए। इस देश में रहने वाले सभी हिंदू हैं। बीफ का सेवन करने वालों को मारा जाएगा। आजादी के नारे लगाने वाले देशद्रोही हैं।...

    जो नरेन्द्र मोदी के समर्थक नहीं हैं उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए। इस देश में रहने वाले सभी हिंदू हैं। बीफ का सेवन करने वालों को मारा जाएगा। आजादी के नारे लगाने वाले देशद्रोही हैं। विगत दो वर्षों में ऐसे वाक्यांश देश में एक के बाद एक राष्ट्रीय पटल पर आते रहे, सारी राजनीति, सारा सामाजिक विमर्श इनके इर्द-गिर्द घूमता रहा। ऐसे अनावश्यक विवादों से देश का कुछ भला नहींहोना था यह तय है, नुकसान कितना गंभीर हुआ है, यह पता लग ही रहा है। खोखले विवादों की कड़ी में ताजा विवाद भारत माता की जय बोलने का है। इंसान स्वयं को धरती की संतान मानता है और जब धरती का बंटवारा अलग-अलग देशों में हुआ तो किसी शासक ने देश को पिता के समान माना, किसी ने माता के समान। सोच यही थी कि एक आदर्श संतान की तरह हमें अपने देश की सेवा करनी है, उसे कष्टों से बचाना है। संस्कृत में मां और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ माना गया है, अन्य भाषाओं में भी ऐसे आदर्श वचनों की कमी नहींहै। ऐसे नीति वचनों का पालन किया जाए, तो न देश का कभी अहित हो, न देशवासियों का। लेकिन इस वक्त एक भाषा के ऊपर दूसरी भाषा, एक धर्म के ऊपर दूसरे धर्म और एक विचार के ऊपर दूसरे विचार को थोपने का खतरनाक षड्यंत्र चल रहा है, जिससे समय रहते सचेत होने की जरूरत है। भारत माता की जय बोलें या जयहिंद कहें, दोनों में अपने देश की जयकार है। यूं जयघोष युद्ध से संबंधित है, जिसमें शत्रु सेना पर विजय प्राप्त करने के लिए सैनिक अपने राजा, अपने राज्य की जय-जयकार करते आक्रमण बोलते थे। अभी हम किसी पर आक्रमण नहींकर रहे, जनता सीधे-सीधे किसी युद्ध में हिस्सा नहींले रही, लेकिन फिर भी लोग भारत माता की जय, जय हिंद, हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हैं तो इसलिए कि वे अपने देश से प्यार करते हैं और चाहते हैं कि हमारा देश हमेशा जीता रहे, जीतता रहे। यह तभी संभव है जब हम सब यानी देश की जनता ईमानदारी से अपने-अपने कत्र्तव्य निभाती रहे, किसी के अधिकारों का हनन न करे और देश चलाने वाले संविधान की भावना के प्रतिकूल आचरण न करे। पौराणिक कथा है जिसमें भगवान अपना सबसे बड़ा भक्त उस किसान को मानते हैं जो उनकी पूजा में समय व्यतीत नहींकरता, केवल तीन बार उनका नाम लेता है और शेष वक्त अपनी खेती का काम करता है। यही बात आज देशप्रेम पर भी लागू होती है। हम कितनी बार जय बोलते हैं और कितना वक्त उत्पादक कार्यों में लगाते हैं, देशभक्ति इससे तय होनी चाहिए। किंतु मोहन भागवत को लगता है कि आज के नौजवानों को भारत माता की जय बोलना सिखाना होगा। उनका यह कथन छोटे बच्चे को अभिवादन सिखाने जैसा मासूम नहींहै, बल्कि चेतावनी है कि भारत में रहना है तो भारत माता की जय बोलना होगा, वो भारत माता जिसे आज देवी रूप में दर्शाया जा रहा है, कहीं-कहींवह केसरिया झंडा थामे नजर आती हैं और देश में कुछ जगहों पर उनके मंदिर भी है। हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा की जाती है, इसलिए गंगा, सूरज, चांद, पेड़, पौधे इन्हें भी दैवीय रूप देकर पूजा की जाती है। इस्लाम में मूर्तिपूजा नहींहै। शायद इसलिए ओवैसी मोहन भागवत द्वारा बतलाई गई भारत माता की जय बोलने से इन्कार करते हैं, बल्कि वे जयहिंद बोलना पसंद करते हैं। इस मामले में कोई विवाद खड़ा नहींहोना चाहिए था, लेकिन यह बात दूर तक निकलने के लिए ही चलाई गई थी, सो चल रही है। राज्यसभा में जावेद अख्तर ने तीन बार भारत माता की जय बोलकर बता दिया कि वे अपने देश से प्यार करते हैं और उनका प्यार ओवैसी के प्यार से अलग है। ओवैसी के विरोध को जावेद साहब ने खूब समझा, लेकिन मोहन भागवत के आशय को वे शायद जानबूझकर समझना नहींचाह रहे हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम के विधायक वारिस युसूफ़ पठान को इसलिए निलंबित कर दिया गया क्योंकि उन्होंने भी भारत माता की जय बोलने से इन्कार कर दिया था। खास बात यह है कि इस निलंबन में सत्तारूढ़ भाजपा, शिवसेना के साथ-साथ तमाम दलों की सहमति थी। युसूफ पठान ने भाजपा विधायक राम कदम की चुनौती कि भारतमाता की जय बोलो, के जवाब में जयहिंद और हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए। क्या यह उनका अपराध था, जिसकी सजा उन्हें दी गई। क्या इससे उन तमाम लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन नहींहो रहा, जिन्होंने उन्हें वोट देकर निर्वाचित किया था? नेहरूजी ने भारत एक खोज में सवाल किया है कि कौन है भारत माता जिसकी जयकार की जा रही है? फिर वे समझाते हैं कि ये धरती, हमारे जंगल, नदी, पहाड़, खेत-खलिहान, हम तमाम लोग जो यहां रहते हैं, ये सब भारत माता है। नेहरू जी मूर्तिवाली भारत माता नहीं, जीते-जागते इंसानों की जय चाहते थे। अब हम देशवासियों को तय करना है कि हम किसकी जय चाहते हैं।

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