• जाति का जहर

    दलित जाति का युवक और ऊंची जाति की युवती आठ माह पहले प्रेम विवाह करते हैं। एक दिन भरे बाजार में कुछ लोग उन्हें घेर लेते हैं और इतना मारते हैं कि युवक की मौत हो जाती है और युवती गंभीर रूप से घायल होती है। यह वाकया न किसी कहानी का हिस्सा है, न फिल्म का। बल्कि असल जीवन की, 21वींसदी में आगे बढ़ रहे भारत की एक क्रूर सच्चाई है। ...

    दलित जाति का युवक और ऊंची जाति की युवती आठ माह पहले प्रेम विवाह करते हैं। एक दिन भरे बाजार में कुछ लोग उन्हें घेर लेते हैं और इतना मारते हैं कि युवक की मौत हो जाती है और युवती गंभीर रूप से घायल होती है। यह वाकया न किसी कहानी का हिस्सा है, न फिल्म का। बल्कि असल जीवन की, 21वींसदी में आगे बढ़ रहे भारत की एक क्रूर सच्चाई है। ज्ञात हो कि तमिलनाडु में राजनैतिक रूप से शक्तिशाली थेवर समुदाय की युवती से शादी करने पर एक 23 वर्षीय दलित युवक शंकर की तिरुप्पुर जिले में रविवार को सरेराह हत्या कर दी गई। घटना के दो दिन बाद लड़की के पिता ने पुलिस के सामने समर्पण कर दिया है, जबकि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी किया है। ऐसा माना जा रहा है कि यह हत्या झूठी शान के लिए की गई है। तमिलनाडु में जातिवादी हिंसा का यह पहला या अकेला मामला नहींहै, बल्कि ऊंची और नीची जातियों के बीच भेदभाव दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है। चेन्नई से साढ़े छह सौ किमी दूर तिरूनेलवेली जिले के कई स्कूलों में बच्चे जाति के हिसाब से कलाई पर अलग-अलग रंग के धागे बांध कर आते थे, ताकि पहले ही पहचान कर ली जाए, कौन दलित है, कौन ऊंची जाति का है। बाद में जिला कलेक्टर के दखल से इसे बंद करवाया गया। यहींकुछ होनहार युवकों को जाति के कारण नौकरी से हाथ धोना पड़ा। जाति का यह जहर केवल तमिलनाडु में नहीं है, कुछ माह पहले जोधपुर में एक दलित छात्र को उसके शिक्षक ने इसलिए पीटा क्योंकि उसने ऊंची जाति के लिए अलग रखे बर्तन छू लिए थे। ऐसी अनेक अमानवीय घटनाएं आए दिन देश के किसी न किसी हिस्से में होती रहती हैं और इन पर आम जनता ध्यान देना भी जरूरी नहींसमझती, क्योंकि जातिप्रथा को हमने हिंदुस्तान में चिरकाल के स्थायी मान लिया है। जब रोहित वेमुला जैसा कोई छात्र आत्महत्या पर मजबूर होता है, तब भी सड़क से लेकर संसद तक गलतबयानी की जाती है, लोगों का ध्यान असल मुद्दों से हटाया जाता है,  जातिप्रथा के दोषों को समझने नहींदिया जाता। मोहन भागवत लंबे समय से आरक्षण पर नयी बहस छेड़ रहे हैं। हाल ही में उन्होंने फिर कहा कि संपन्न तबके को गरीबों के लिए आरक्षण छोड़ देना चाहिए। इन बयानों से लगता है मानो भारत में केवल गरीबी और अमीरी की समस्या ही है, जाति, धर्म आदि का भेदभाव कोई मायने ही नहींरखता। ऊपर जिस तरह की घटनाओं का उल्लेख हुआ है, उसमें गरीबी से ज्यादा जाति व्यवस्था जिम्मेदार है। जाति के इस जहर को रोकने का एकमात्र उपाय है जाति प्रथा का संपूर्ण उन्मूलन। लेकिन न जाने कौन सी सदी में यह उपाय आजमाया जाएगा। फिलहाल तो राजनीतिक दलों के लिए जातिवाद को बढ़ाना फायदे का सौदा है और वे पूरी शिद्दत से इसमें लगे हैं। राजनीति में दलितों के लिए नयी इबारत लिखने वाले कांशीराम जी के जन्मदिवस पर जिस तरह की राजनीति प्रारंभ हो गई है, यह उसका प्रमाण है। बसपा स्वाभाविक तौर पर उनकी जयंती का आयोजन करती है, लेकिन इस बार मायावती ने कांशीराम के लिए भारत रत्न की मांग की। शायद इसलिए कि शीघ्र ही उत्तरप्रदेश में चुनाव होने वाले हैं, जो उनकी राजनीति का गढ़ रहा है। अमूमन परंपराओं से हटकर राजनीति करने वाले अरविंद केजरीवाल ने कांशीराम जयंती पर नीले रंग में विज्ञापन प्रकाशित करवाया। अरविंद केजरीवाल पंजाब में आम आदमी पार्टी का आधार बढ़ाना चाहते हैं और यह समझा जा सकता है कि इस विज्ञापन के जरिए पंजाब में दलितों को लुभाने की कोशिश की गई है। उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम कहींभी, किसी भी राज्य में जातिगत भेदभाव समाप्त नहींहुआ है, बल्कि राजनीतिक कारणों से इसे बढ़ाया जा रहा है। बच्चों से लेकर युवा और बुजुर्ग सब इससे किसी न किसी तरह प्रताडि़त हो रहे हैं। इस प्रताडऩा से कैसे मुक्ति मिले, इस पर विचार नहींहो रहा, हम छद्म राष्ट्रवाद और खोखले नारों में भारत के लिए प्रेम तलाश रहे हैं।

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