• रूस और यूरोसंघ का यान मंगल अभियान एक्ज़ोमार्स पर रवाना

    मास्को। विगत 14 मार्च को दोपहर 12 बज़कर 31 मिनट पर बायकानूर अन्तरिक्ष अड्डे से प्रोतोन-एम नामक एक वाहक रॉकेट रूसी और यूरोपीय अन्तरिक्ष-यानों को लेकर अन्तरिक्ष में उड़ गया। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य मंगल ग्रह पर मिथेन गैस की खोज करना है, जो वहाँ जीवन का प्रमाण हो सकती है तथा मंगल पर चलने वाली रेतीली आँधियों के बीच मंगल पर सहज ही उतरने की तकनीकी सम्भावना प्राप्त करना है।...

     

     

    एक्ज़ोमार्स नामक इस पहले संयुक्त मंगल अभियान का उद्देश्य मंगल पर तकनीकी खोजें करना और वहां जीवन की खोज करना है

    अनिल जनविजय

    मास्को। विगत 14 मार्च को दोपहर 12 बज़कर 31 मिनट पर बायकानूर अन्तरिक्ष अड्डे से प्रोतोन-एम नामक एक वाहक रॉकेट रूसी और यूरोपीय अन्तरिक्ष-यानों को लेकर अन्तरिक्ष में उड़ गया। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य मंगल ग्रह पर मिथेन गैस की खोज करना है, जो वहाँ जीवन का प्रमाण हो सकती है तथा मंगल पर चलने वाली रेतीली आँधियों के बीच मंगल पर सहज ही उतरने की तकनीकी सम्भावना प्राप्त करना है।

    मंगल अभियान शुरू करने के लिए 14 मार्च की तारीख़ जानबूझकर तय की गई थी क्योंकि वैज्ञानिकों के मतानुसार मार्च-2016 में मंगल ग्रह और पृथ्वी के बीच दूरी बहुत कम हो गई है और वह बस तीस-चालीस लाख किलोमीटर ही रह गई है।

    अन्तरिक्ष अनुसन्धान संस्थान के एक विशेषज्ञ ईगर मित्राफ़ानफ़ ने कहा — अभी यह मौक़ा मिला है कि मंगल ग्रह तक पहुँचने की कोशिश की जाए। अब अगली बार दो साल और पचास दिन बाद ही इस तरह का मौक़ा मिलेगा। अगला मौक़ा अब 2018 में ही सामने आएगा। उस समय एक्ज़ोमार्स नामक इस परियोजना के अन्तर्गत मंगल ग्रह की ओर दूसरी उड़ान भरी जाएगी।

    यह कैसे होगा?

    मंगल ग्रह की ओर उड़ान भरने वाले तथा मंगल ग्रह पर उतरने वाले अन्तरिक्ष यानों पर 11 रूसी और 3 यूरोपीय उपकरण लगे हुए हैं, जिनका उद्देश्य विस्तार से मंगल ग्रह के वायुमण्डल का अध्ययन करके यह पता लगाना है कि वहाँ जीवन का कोई अवशेष बाक़ी है या नहीं यानी वहाँ मिथेन गैस है या नहीं। और अगर है तो वह कितनी मात्रा में है। पृथ्वी पर 90 प्रतिशत से ज़्यादा मिथेन गैस पृथ्वी पर रहने वाले जीवों द्वारा ही उत्पन्न की जाती है।

    ईगर मित्राफ़ानफ़ ने कहा — हो सकता है कि हमें वहाँ कुछ ऐसे नख़लिस्तान मिल जाएँ, जिनमें अभी भी मंगल पर रहने वाले कुछ ऐसे जीव सुरक्षित हों जो वहाँ अरबों साल पहले रहते थे।

    रूस की विज्ञान अकादमी के अन्तरिक्ष अध्ययन संस्थान के वैज्ञानिक अलेक्सान्दर तख़िमोवस्की कहा — अभी तक मिथेन गैस की खोज करने की कोशिश अतिसंवेदनशील उपकरणों से नहीं की गई थी। इस बार मंगल ग्रह पर दूसरे ही क़िस्म के उपकरण भेजे जा रहे हैं जो पहले वाले उपकरणों से सौ गुणा बेहतर हैं। इस बार हम पक्की तरह से यह बता देंगे कि मंगल पर मिथेन गैस है या नहीं। और अगर है तो कितनी मात्रा में है। इसके बाद ही किसी तरह के कोई भी परिणाम सामने आ सकते हैं।


    इस अभियान का पहला दौर क़रीब 7 महीने तक चलेगा। प्रोतोन-एम आगामी अक्तूबर माह के मध्य तक मंगल पर पहुँचेगा। मंगल के वायुमण्डल में घुसने से तीन दिन पहले मंगल पर उतरने वाला यान ’शियापरेल्ली’ अन्तरिक्ष यान ’ओरबितर’ से अलग हो जाएगा और फिर मंगल की ज़मीन की ओर उतरना शुरू कर देगा।

    यह उतराई यान मंगल ग्रह की दक्षिणी विषुवत रेखा से दो किलोमीटर दूर मेरीडियन पठार के इलाके में उतरेगा। उतरते हुए वह मंगल ग्रह के वायुमण्डल का अध्ययन करेगा और उसके विद्युत ध्रुव को भी मापेगा।

    अभियान के सहयोगी

    इस यूरोपीय-रूसी सँयुक्त अभियान एक्जोमार्स-2016 पर क़रीब एक अरब डॉलर खर्च किए जा रहे हैं और इसे दो दौरों में बाँटा गया है — पहला दौर है — एक्जोमार्स-2016 और दूसरा दौर — एक्जोमार्स-2018 ।

    इस अभियान के पहले दौर में रूस ने अन्तरिक्ष निगरानी यान ’ट्रेस गैस ऑरबिटर’ यानी टी० जी० ओ० के लिए आधे वैज्ञानिक उपकरण बनाए हैं और यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेन्सी ने निगरानी अन्तरिक्ष यान और उतराई यान ’शिपारेल्ली’ का निर्माण किया है।

    निगरानी अन्तरिक्ष यान ट्रेस गैस ऑरबिटर के लिए रूस ने वायुमण्डलीय रसायन सूट का निर्माण किया है, जिससे मंगल ग्रह के वायुमण्डल में शामिल रासायनिक तत्वों और वायुमण्डल की बनावट का अध्ययन किया जा सकेगा। इसके अलावा रूस ने फ़्रेण्ड (फ़ाईन रेजोल्यूशन एपीथेरमल न्यूट्रॉन डिटेक्टर) नामक एक न्यूट्रॉन टोही यन्त्र भी बनाया है, जो हाइड्रोजन और मंगल पर बर्फ़ के रूप में जमे पानी की खोज करेगा। मास्को के भौतिकी तकनीकी संस्थान ने मंगल ग्रह के वायुमण्डल का अध्ययन करने के लिए उपकरण का निर्माण करने में सहायता की।

    वायुमण्डल रसायन सूट नामक इस उपकरण का निर्माण करने वाले वैज्ञानिकों के दल के प्रमुख अलेग करब्ल्योफ़ ने बताया —

    हमारा यह उपकरण अन्तरिक्ष से ही मंगल ग्रह के वायुमण्डल में उपस्थित गैसों, वायुमण्डल के तापमान, बादलों आदि का अध्ययन करेगा। यह वैसा ही यन्त्र है, जैसा यन्त्र पृथ्वी का मौसम बताने के लिए अन्तरिक्ष में तैनात उपग्रहों में लगा हुआ है। जबकि ’शियापरेल्ली’ उतराई यन्त्र मंगल ग्रह पर चलने वाली रेतीली आँधियों के बीच भी सहजता से मंगल की धरती पर उतर जाएगा। हां, यह जांचना भी ज़रूरी है कि इन अनिश्चित परिस्थितियों में यह उतराई यन्त्र कैसे काम करेगा।

    अलेग करब्ल्योफ़ का कहना है कि निगरानी अन्तरिक्ष यान ट्रेस गैस ऑरबिटर के लिए पहले से ही काम सुनिश्चित कर दिए गए हैं। रूसी उपकरणों की सहायता से यह यान मंगल ग्रह के वायुमण्डल का अध्ययन करेगा। यह अन्तरिक्ष यान सन् 2022 में मंगल ग्रह पर पहुँचेगा।

    क्या हैं मंगल ग्रह और पृथ्वी ग्रह में समानताएं

    मंगल ग्रह और पृथ्वी ग्रह में बहुत समानता है। दोनों ग्रहों का मौसम एक सा है। दोनों ग्रहों के ध्रुवों पर बर्फ़ जमी हुई है जो सीजन आने पर पिघलने लगती है। हां, यह ज़रूर है कि मंगल ग्रह पर बर्फ़ कार्बन डॉयऑक्साइड गैसों से बनी है। दोनों ही ग्रहों पर बादल भी हैं और पानी भी। मंगल ग्रह के दिन-रात भी पृथ्वी की तरह के ही हैं। मंगल ग्रह आकार में पृथ्वी से आधा है, लेकिन पूरे सौर मण्डल में सबसे ऊँचा ज्वालामुखी — 21 किलोमीटर ऊँचा ज्वालामुखी मंगल ग्रह पर ही है।  

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