• तीसरी का बालक 37 का पहाड़ा

    सरकारी स्कूलों के बच्चों के बौद्धिक स्तर के बारे में अमूमन यही सुना जाता है कि वे ठीक से किताबें नहीं पढ़ पाते, उन्हें पहाड़ा नहीं आता और सामान्य ज्ञान भी उनका कमजोर है। यहां हम जिस स्कूल का जिक्र करना चाहते हैं उस स्कूल से एक बड़ी अच्छी खबर है। ...

    सरकारी स्कूलों के बच्चों के बौद्धिक स्तर के बारे में अमूमन यही सुना जाता है कि वे ठीक से किताबें नहीं पढ़ पाते, उन्हें पहाड़ा नहीं आता और सामान्य ज्ञान भी उनका कमजोर है। यहां हम जिस स्कूल का जिक्र करना चाहते हैं उस स्कूल से एक बड़ी अच्छी खबर है। यह स्कूल जांजगीर-चांपा जिले के ग्राम खरौदी का है, जिसे जिले के कलेक्टर ओ.पी.चौधरी ने गोद लिया है। इस बार जब वे इस स्कूल में पहुंचे तो तीसरी कक्षा के छात्र ने उन्हें 37 का पहाड़ा सुनाया। कलेक्टर यह देख-सुनकर खुद हैरान रह गए। वेे पहली कक्षा के बच्चों से भी मिले और पाया कि स्कूल के शिक्षक बच्चों पर ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने बच्चों को प्रोत्साहित करने अपनी ओर से पेन और कापियां उन्हें दीं और अच्छी तरह पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया। एक स्कूल में यह बदलाव सिर्फ उस स्कूल को कलेक्टर के गोद ले लेने से आ गया? यह बदलाव शिक्षकों की मेहनत से आया है। सरकारी स्कूलों के शिक्षक ठान लें तो उनके स्कूल के बच्चे भी 37 का पहाड़ा सुना सकते हैं। कलेक्टर और कोई अधिकारी सिर्फ शिक्षकों को पेे्ररित ही कर सकता है। राज्य में शिक्षा गुणवत्ता अभियान चलाया जा रहा है। प्रशासनिक अधिकारियों के साथ जनप्रतिनिधियों से भी अपेक्षा की गई है कि वे स्कूलों में जाएं और अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था में सुधार लाकर इस अभियान को सफल बनाएं। एक कलेक्टर के गोद लिए स्कूल की ही तरह किसी जनप्रतिनिधि के स्कूल से भी ऐसी खबर आए तो इस अभियान की सफलता पर कोई संदेह नहीं रह जाएगा। इस अभियान को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस निर्देश के संदर्भ में देखा जा सकता है, जिसमें कहा गया था कि सरकारी खजाने से वेतन लेने वाले सभी लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाएं। इस निर्देश के पीछे भी उद्देश्य यही था कि जब उनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तब उन्हें पता चलेगा कि सरकारी स्कूलों में अध्ययन-अध्यापन  का स्तर क्या है और इसमें सुधार लाने के लिए क्या किया जा सकता है। राज्य में चल रहे शिक्षा गुणवत्ता में भी अभियान जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों को स्कूलों की व्यवस्था से जोडऩे की कोशिश की गई है। किसी एक स्कूल या कलेक्टर के गोद लिए स्कूल में किसी बच्चे के ज्ञान को समूची व्यवस्था में बदलाव के रुप में नहीं देखा जा सकता फिर भी यह एक उम्मीद तो जगाता ही है कि व्यवस्था बदली जा सकती है। सरकारी शिक्षा व्यवस्था की आज जो हालत है उसमें रातोंरात बदलाव संभव नहीं है। इसी महीने से स्कूली परीक्षाएं शुरू हो रही है। जल्दी ही नतीजे भी आ जाएंगे। शिक्षा गुणवत्ता अभियान का समग्र रुप से असर का अंदाजा इन नतीजों से ही लगाया जा सकेगा। दो साल पहले राज्य में दसवीं बोर्ड की परीक्षा में आधे से अधिक बच्चों के फेल हो जाने पर मुख्यमंत्री के चिन्ता व्यक्त करने के बाद शिक्षा गुणवत्ता अभियान शुरु किया गया। शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए कई प्रयोग हुए, इस अभियान में पहली बार मानिटरिंग पर विशेष जोर दिया गया है।

अपनी राय दें