• गुलाब की घाटी के कांटे

    सियाचिन मेंंगत 3 फरवरी को हिमस्खलन में 10 जवानों के बीच अकेले बचे लांस नायक हनुमंथप्पा डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद बचाए नहींजा सके और अंतत: उन्हें भी शहादत हासिल हुई। ...

    सियाचिन मेंंगत 3 फरवरी को हिमस्खलन में 10 जवानों के बीच अकेले बचे लांस नायक हनुमंथप्पा डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद बचाए नहींजा सके और अंतत: उन्हें भी शहादत हासिल हुई। छह दिन तक बर्फ में दबे होने के बावजूद हनुमंथप्पा का जीवित मिलना किसी चमत्कार जैसा ही था। उनकी सलामती के लिए देश भर में दुआएं की गईं। लखीमपुर खीरी की एक महिला ने जरूरत होने पर हनुमंथप्पा को एक किडनी दान देने की भी पेशकश की। आम जन की ऐसी भावना काबिले तारीफ है। सेना के जवान जिन विषम परिस्थितियों में सरहद पर तैनात रहकर देश की निगरानी करते हैं, वह अतुल्य है। यूं तो निरंतर गोली-बारूद के साए में देश की रक्षा का जिम्मा उठाना शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरीकों से काफी चुनौतीपूर्ण है, लेकिन सियाचिन में ये चुनौतियां कई गुना ज्यादा जोखिम के साथ आती हैं। सिया यानी गुलाब और चिन यानि घाटी, केवल बर्फ और बर्फ से भरी इस अद्भुत प्राकृतिक संरचना को गुलाब की घाटी जैसा खूबसूरत नाम देने के पीछे मंशा शायद यह रही होगी कि वीराने में चुपके से बहार आ जाए। लेकिन भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों के बीच पसरे अविश्वास ने यहां बहार लाने के तमाम रास्ते बंद कर दिए और गुलाबों की घाटी में सिवाए दुश्मनी के कांटों के कुछ शेष न रहा। 24 हजार फीट ऊंची बर्फ की यह बेजान दुनिया न इंसानों के लायक है, न वनस्पतियों के। भारत और पाकिस्तान दोनों ने बंटवारे के वक्त इस पर किसी तरह की सीमारेखा नहींखींची, न ही शिमला समझौते में इस पर कोई बात हुई। लेकिन 80 के दशक के शुरुआती दौर में पाकिस्तान में जिया उल हक के फौजी शासन में सियाचिन के सामरिक महत्त्व को देखते हुए कब्जे की कोशिशें हुईं। सियाचीन भारत के लिए काफी नाजुक कड़ी है, क्योंकि एक ओर इसकी सीमा पाकिस्तान से लगती है, दूसरी ओर चीन से। अगर इस पर पाकिस्तान या चीन किसी का भी इस पर नियंत्रण होता है और दोनों देशों की सीमाएं एक होती हैं, तो वे भारत के लिए हर तरीके से मुश्किलें खड़ी करने की कोशिश करेंगे। पूर्व के अनुभव यही बताते हैं। इसलिए 1984 में भारत ने आपरेशन मेघदूत चलाया और सफलतापूर्वक यहां अपनी चौकियां स्थापित कीं। 70 किलोमीटर लंबे सियाचीन ग्लेशियर पर साल भर बर्फ की मोटी चादर बिछी रहती है। जहां दो मिनट सांस लेना भी मुश्किल कार्य हो, वहां 3 महीने की तैनाती कितनी कठिन होती है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। आपरेशन मेघदूत के बाद भी पाकिस्तान की ओर से सियाचीन पर कब्जा करने के लिए गोलीबारी, घुसपैठ की कोशिशें होती रहीं। लेकिन हर बार उन्हें असफलता हाथ लगी। 2003 में दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम हुआ और तब से यहां गोलीबारी बंद है। लेकिन दोनों देशों के जवानों के लिए राजनीतिक दुश्मनी जितनी ही खतरनाक है प्राकृतिक आपदा। भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के करीब 25 सौ सैनिकों की मौत सियाचिन में हो चुकी है। दुनिया के सबसे ऊंचे इस रणक्षेत्र पर सैनिकों की तैनाती के लिए अनुमानित 10 करोड़ रुपए प्रतिदिन के हिसाब से भारत के खर्च होते हैं। पाकिस्तान को भी ऐसी कीमत इसके लिए चुकानी होती होगी। दोनों ही देश अपने कई आवश्यक मदों में कटौती कर हर साल रक्षा बजट को बढ़ाते हैं। जितनी राशि एक दिन में सियाचिन में खर्च होती है, उतने खर्च में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ पेयजल जैसे कई क्षेत्रों में गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है। जनता का जीवन स्तर सुधरेगा, असंतोष कम होगा तो इससे अमन कायम होने की संभावनाएं बढ़ेंगी। लेकिन ऐसी आदर्श स्थिति अब केवल कल्पनाओं में ही रह गई है। लोग शांति से रहें, परस्पर मैत्रीभाव देशों के बीच कायम हो, ऐसा होगा तो आयुध निर्माण कारखाने बंद हो जाएंगे। बारूद का व्यापार बढ़ता रहे और कुछ लोगों की तिजोरियां भरती रहें, इसके लिए जरूरी है कि भारत-पाकिस्तान जैसे देशों के बीच संदेह की खाई बढ़ती रहे। फिर चाहे अरबों रुपयों के साथ-साथ साहसी नौजवानों की अमूल्य जिंदगियां ही दांव पर क्यों न लगे।

अपनी राय दें