• बस्तर को बदलने की मुहिम

    बस्तर का विकास राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में है,क्योंकि पिछले लम्बे समय से वहां विपरीत परिस्थितियां रही हैं। एक ओर माओवाद की समस्या है तो दूसरी ओर बुनियादी सुविधाओं का बेहद अभाव है। सरकार को संसाधन का बड़ा हिस्सा माओवादी हिंसा से निपटने में लगाना पड़ रहा है। ...

    बस्तर का विकास राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में है,क्योंकि पिछले लम्बे समय से वहां विपरीत परिस्थितियां रही हैं। एक ओर माओवाद की समस्या है तो दूसरी ओर बुनियादी सुविधाओं का बेहद अभाव है। सरकार को संसाधन का बड़ा हिस्सा माओवादी हिंसा से निपटने में लगाना पड़ रहा है। इस संसाधन का उपयोग क्षेत्रीय विकास में किया जा सकता था। सुरक्षा संबंधी समस्याओं के कारण यदि किसी क्षेत्र का विकास प्रभावित हो रहा है तो उसमें केन्द्र सरकार की भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। केन्द्र बस्तर के लिए हरसंभव मदद भी दे रहा है। राज्यपाल बलरामजी दास टंडन जब यह कहते हैं कि राज्य में नक्सलवाद खात्मे की ओर है तो लगता है कि सरकार शांति स्थापित करने के अपने प्रयासों में सफल हो रही है। बस्तर के विकास के लिए अधिक से अधिक संसाधन चाहिए। विकास ही वहां शांति और सुरक्षा का माहौल तैयार करने में मददगार हो सकता है। यह इस मान्यता के लिहाज से भी जरुरी है कि माओवाद सामाजिक समस्याओं के कारण ही पनपा है। गांव-गांव में अच्छी सड़कें हों, लोगों को बुनियादी सुविधाएं मिलने लगे, रोजगार के पूरे अवसर हों तो कोई कारण नहीं कि बस्तर की तस्वीर न बदले। मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह इस बदलाव के मुहिम का रुप देना चाहते हैं। बस्तर के सुकमा को एजुकेशन हब के रुप में विकसित करने की कोशिश इसी मुहिम का हिस्सा है। सुकमा कभी नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था। बस्तर ने बंदूकों की लड़ाइयां बहुत देख ली, वहां विकास को हथियार बनाकर नई लड़ाई अब शुरू हुई है और इसमें सफलता भी मिल रही हैं। छुटपुट हिंसा की घटनाएं हालांकि अब भी यदाकदा सुनने में आ जाती हैं। जिस दिन बस्तर में पूरी तरह शांति स्थापित हो जाएगी उसका वही वैभव फिर लौट आएगा और दुनिया भर के लोग यह देखने वहां आने लगेंगे। वहां की सांस्कृतिक विरासत को लोग किस्से-कहानियों की तरह सुनाते आए हैं, जिस विरासत की चर्चा दुनिया में होती रही है। आज माओवाद की समस्या के लिए बस्तर पर लोगों का ध्यान जाता है। सड़कों का विकास वहां आज की सबसे बड़ी जरुरत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से ही नहीं बल्कि समस्याग्रस्त इलाकों में पहुंच को सुगम बनाने के लिए भी यह आवश्यक है। मुख्यमंत्री ने बस्तर के लिए 4 हजार करोड़ का प्रावधान केन्द्रीय बजट में करने का अनुरोध किया है। किसी क्षेत्र विशेष के लिए अलग से बजट प्रावधान किए जाने पर चर्चा इसलिए भी संभव हुई है। क्योंकि राज्य और केन्द्र दोनों में एक ही पार्टी की सरकार है। संसाधन उपलब्ध कराने में कोई राजनैतिक दुर्भावना रखने वाली बात भी नहीं रह गई है। केन्द्र राज्य की नक्सलवाद की समस्या से मुक्त कराने के लिए समुचित सहायता उपलब्ध करा रहा है और उसका असर भी दिखाई देने लगा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि केन्द्र बस्तर के  लिए सहायता उपलब्ध कराने में कोई कमी नहीं करेगा।

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