26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुआ आतंकी हमला भारत पर सबसे बड़ा आतंकी हमला था, बल्कि इसे तीन दिनों तक चला युद्ध कहें तो गलत नहींहोगा। यह युद्ध पाकिस्तान पोषित आतंकवाद ने भारत के खिलाफ छेड़ा था, जिसमें कई निर्दोषों समेत पुलिस और सेना के जांबाज शहीद हुए थे। यूं तो पाकिस्तान ने प्रारंभ से इसमें अपनी किसी भी तरह की भूमिका से इन्कार किया, लेकिन बाद में इसे गैर राजकीय तत्वों यानी नान स्टेट एक्टर्स की हरकत बताया। पाकिस्तान की सरकार का प्रारंभ से ही यही रवैया रहा है कि वह अपनी जमीन से आतंकवाद के पनपने से इन्कार करती रही है और जब हालात व सबूत उसके खिलाफ होते हैं, तो स्वयं को आतंक का शिकार बताती है। अखबारों में कई बार संतान से अभिभावकों के रिश्ते खत्म होने की सूचना वाले विज्ञापन प्रकाशित होते हैं, कि आगे से हमारी संतान से कोई भी लेना-देना हमारी जिम्मेदारी नहींहोगी। हो सकता है पाकिस्तानी सरकार को आतंकवादी संगठन अब अपनी नालायक संतान लगें और वह उससे कोई लेना-देना न रखना चाहे, लेकिन जब ये संगठन दुनिया में तबाही मचाएंगे, तो जवाब अभिभावकों को ही देना होगा। नि:संदेह पाकिस्तान की जनता आतंकवाद से पीडि़त है और रोजाना दहशत में जीती है। कई पाकिस्तानी नेताओं की हत्या आतंकवादियों ने की। लेकिन यह पाकिस्तान की कमजोर राजनैतिक इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि धर्म के नाम पर खड़े किए गए चरमपंथी संगठनों को उसने भारत के खिलाफ या कश्मीर के लिए रणनीतिक तौर पर इस्तेमाल किया, इसमें खुफिया एजेंसी आईएसआई को खुली छूट दी, सेना पर नियंत्रण नहींरखा जो बाद में उसके लिए भस्मासुर साबित हुए। पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने भी इस बात की पुष्टि करने वाले बयान पिछले दिनों दिए हैं कि कश्मीर में कैसे चरमपंथियों के द्वारा अलगाव फैलाने की कोशिश पाकिस्तान की ओर से की गई। पाकिस्तान अमरीका जैसा आर्थिक, सामरिक शक्ति संपन्न देश नहींहै, जो दुनिया भर में अपने फायदे के लिए आतंकी संगठन खड़ा करता है, देशों को आपस में लड़वाता है, गृहयुद्ध करवाता है और जब वे संगठन उसके काम के नहींरह जाते तो शांति का मसीहा बनने के लिए उन्हें नेस्तनाबूद करने का संकल्प दोहराता है। अमरीका ने भी 11 सितंबर जैसा भीषण हमला देखा, लेकिन उसके बाद वहां दोबारा ऐसा न हो, इसकी पूरी सतर्कता उसने बरती और अफगानिस्तान, इराक आदि को तबाह करके छोड़ा। पाकिस्तान ऐसा नहींकर सका और लश्करे तैयबा, जैशे मोहम्मद सबने उसे डंसने की कोशिश की। हैरानी इस बात की है कि पाकिस्तान सरकार अब भी टालमटोल की आदत नहींछोड़ रही है। पठानकोट हमले के बाद उसका रुख दर्शाता है कि वह भारत पर आतंकी हमलों को कितने हल्के में लेती है। हाफिज सईद पूरे संरक्षण के साथ आग उगलता जा रहा है और उसके कार्रवाई के लिए पाकिस्तान न जाने कौन से सबूतों के इंतजार में है। मुंबई हमलों के अहम गवाह डेविड हेडली की शिकागो से वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए गवाही से वही आरोप दोबारा पाकिस्तान पर लग रहे हैं, जो तब भारत ने लगाए थे। फर्क इतना ही है कि भारत के आरोपों को सिरे से खारिज किया गया था, लेकिन डेविड हेडली की गवाही से जो बातें सामने आ रही हैं उन्हें पाकिस्तान कैसे झुठलाएगा, यह देखने वाली बात है। अमरीका में 35 साल की सजा काट रहे हेडली को वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए गवाह बनाना यह साबित करता है कि मुंबई हमलों के दोषियों तक पहुंचना कितना आवश्यक है ताकि आतंकी संगठनों पर नकेल कसी जा सके। मुंबई हमलों की साजिश, उसकी तैयारी, सेना और आईएसआई की हमलों की तैयारी में मदद इन सबका खुलासा हेडली ने साफ शब्दों में किया है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर इससे भारत का पक्ष मजबूत हुआ है और पाकिस्तान पर दबाव बढऩे की संभावना बढ़ी है कि वह आतंक के आकाओं को संरक्षण न दे। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी अब भारत के साथ किस तरह खड़ी होती है, यह देखने वाली बात है।