• देश जब आज़ादी का जश्न मना रहा था, तब गांधीजी बैठे थे उपवास पर

    भोपाल ! श्योपुर जिला मुख्यालय से 37 किलोमीटर दूर स्थित रामेश्वर ग्राम के चम्बल, बनास और सीप तीन नदियों के संगम तट पर 12 फरवरी, 1948 को महात्मा गांधी की भस्मी विसर्जित की गई थी। तभी से गांधी विचार मंच और महात्मा गांधी सेवा आश्रम श्योपुर के संयुक्त तत्वावधान में सद्भावना कार्यक्रम आयोजित किया जाता है...

    रामेश्वर ग्राम से लौटकर रूबी सरकार

    भोपाल !  श्योपुर जिला मुख्यालय से 37 किलोमीटर दूर स्थित रामेश्वर ग्राम के चम्बल, बनास और सीप तीन नदियों के संगम तट पर 12 फरवरी, 1948 को महात्मा गांधी की भस्मी विसर्जित की गई थी। तभी से गांधी विचार मंच और महात्मा गांधी सेवा आश्रम श्योपुर के संयुक्त तत्वावधान में सद्भावना कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें सर्वधर्म प्रार्थना सभा और गांधीजी के प्रिय भजनों का गायन होता है। इसमें भाग लेने के लिए देश के कोने-कोने से गांधी जी के अनुयायी जुटते हैं। सन् 1948 से लगातार  बापू की स्मृति में यह आयोजन हो रहा हैं। इस बार इस आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि प्रख्यात गांधीवादी विचारक एसएन सुब्बाराव ने कहा, कि देश को विभाजन से बचाने की आखिरी कोशिश नाकाम होने पर गांधीजी तीन महीने के लिए दिल्ली से बहुत दूर नोआखली (वर्तमान में बांग्लादेश) चले गये थे। 14-15 अगस्त, 1947 को जब पूरा देश आज़ादी का जश्र मना रहा था, तब भी गांधीजी बेलियाघाटा (पश्चिमी बंगाल) में 72 दिन के उपवास पर बैठे थे। सुब्बाराव ने कहा, कि उनकी उदासी यह बताती है, कि वे देश के विभाजन से आहत थे। उन्होंने कहा, कि 14 अगस्त की रात जवाहर लाल नेहरू ने भी अपने भाषण में कहा था, कि खुशी के इस मौके पर हम एक बहुत बड़े व्यक्ति की मौजूदगी से महरूम है। वह इस समय दिल्ली से बहुत-बहुत दूर हैं। श्री सुब्बाराव ने कहा, कि भारत में अमीरी और गरीबी की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। इसके खिलाफ बहुत सारे नौजवान हिंसा अपना रहे हैं, लेकिन क्या वे हिंसा अपनाकर अपने गंतव्य की ओर बढ़ पा रहे हैं? अगर नहीं तो फिर हिंसा का औचित्य ही क्या है? हम शांति से बैठकर भी बात कर सकते हैं। उन्होंने अन्ना का उदाहरण देते हुए कहा, कि 13 दिन की अनशन के बाद आखिर सरकार को आकर उनसे बात करनी पड़ी । उन्होंने नौजवानों को दैनिक जीवन में सदाचार और शांति के मार्ग पर चलने का आह्वान किया।  इस अवसर पर श्री सुब्बाराव ने त्रिवेणी के संगम पर उपस्थित देशभर से आये नौजवानों को गांधीजी के सत्य और अहिंसा के अनेक संस्मरण सुनाये। उन्होंने नौजवानों से कभी हिंसा न करनेे, न करने देने के अलावा भूखमुक्त ,नशामुक्त और भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण का संकल्प लिया । इससे पहले श्योपुर विधायक दुर्गालाल विजय ने कहा, कि आज भी महात्मा गांधी के विचारों का कोई विकल्प नहीं है। बहुत सारे लोग गांधीजी की छवि को खण्डित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम, कि  गांधीजी एक विचार है, व्यक्ति नहीं। मुरैना के पूर्व सरपंच परशुराम ने कहा, कि एक समय ऐसा था, जब चम्बल डाकुओं के नाम बदनाम था और भिण्ड, मुरैना के आम लोगों से भी लोग  बात करने से कतराते थे। गांधीजी के विचारों से ओत-प्रोत सुब्बारावजी ने डाकुओं को मुख्यधारा से जोड़कर चम्बल को इस कलंक से मुक्त कराया। उन्होंने श्रमदान और जनभागीदारी से बहुत सारे पुल और सड़क बनवाये, जिसका उदाहरण आज भी दिया जाता है। गांधीजी को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए एकता परिषद के अध्यक्ष रनसिंह परमार ने कहा, कि गांधीजी की स्मृति अक्षुण्ण रखने के लिए पिछले 69 सालों से त्रिवेणी  संगम पर यह आयोजन किया जा रहा है। इसमें गांधीवादी विचारकों के अलावा अधिक से अधिक नौजवानों को भाग लेना चाहिए। कार्यक्रम में श्योपुर नगर पालिका के अध्यक्ष दौलतराम गुप्ता,  पूर्व विधायक बृजलाल सिंह चौहान, सत्यभान, कई पूर्व एवं वर्तमान सरपंच के अलावा   मध्यप्रदेश, राजस्थान, मुंबई और उत्तर प्रदेश के किसान, राजनेता और नौजवानों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन संस्था के सचिव कैलाश पाराशर ने और धन्यवाद जयसिंह जादौन ने दिया।  


     

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