• सियाचिन में हर महीने 1 जवान होता है शहीद

    देश ने पाकिस्तानी सेना को मुहंतोड़ जवाब देने के लिए 32 साल पहले हिमालय क्षेत्र में अपना पहला सैन्य दल भेजा था और तब से लेकर आज तक सियाचिन ग्लेशियर में हिमस्खलन और विषम जलवायु परिस्थितियों की वजह से हर महीने सेना का एक जवान शहीद हो जाता है। सबसे ताजी घटना लांस नायक हनुमनथप्पा कोप्पड़ और नौ अन्य जवानों के शहीद होने की है। कोप्पड़ को छोड़कर बाकी नौ जवान हिमस्खलन की चपेट में आकर वहीं दम तोड़ चुके थे। कोप्पड़ को हिमस्खलन के तीन दिनों के बाद जिंदा निकाला गया लेकिन अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। कोप्पड़ और मद्रास रेजीमेंट के उनके साथियों के लिए आज पूरा देश गमगीन है। ...

    देश ने पाकिस्तानी सेना को मुहंतोड़ जवाब देने के लिए 32 साल पहले हिमालय क्षेत्र में अपना पहला सैन्य दल भेजा था और तब से लेकर आज तक सियाचिन ग्लेशियर में हिमस्खलन और विषम जलवायु परिस्थितियों की वजह से हर महीने सेना का एक जवान शहीद हो जाता है। सबसे ताजी घटना लांस नायक हनुमनथप्पा कोप्पड़ और नौ अन्य जवानों के शहीद होने की है। कोप्पड़ को छोड़कर बाकी नौ जवान हिमस्खलन की चपेट में आकर वहीं दम तोड़ चुके थे। कोप्पड़ को हिमस्खलन के तीन दिनों के बाद जिंदा निकाला गया लेकिन अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। कोप्पड़ और मद्रास रेजीमेंट के उनके साथियों के लिए आज पूरा देश गमगीन है।  लोकसभा में पेश आकंड़ों के मुताबिक, ग्लेशियर में 1984 से दिसंबर 2015 के बीच तैनात कुल 869 भारतीय सैनिक शहीद हो चुके हैं। सियाचिन में 20,500 फीट की ऊंचाई पर तीन फरवरी 2016 को आए हिमस्खलन में मद्रास रेजिमेंट के 10 जवान शहीद हो गए। इस साल तीन और जवानों की मौत के साथ सियाचिन में शहीद जवानों की संख्या 883 हो गई है। शहीद हुए जवानों में 33 अधिकारी, 54 जूनियर कमिशन्ड अधिकारी और 782 अन्य रैंक के अधिकारी शामिल हैं। लोकसभा आंकड़ों के मुताबिक, सियाचिन में शहीद जवानों की संख्या 2011 में 24 से घटकर 2015 में पांच हो गई। ये सभी जवान दुश्मन के हमले से नहीं बल्कि हिमस्खलन और विपरीत जलवायु परिस्थिति की वजह से शहीद हुए हैं। इस साल हिमस्खलन की वजह से जवान शहीद हुए हैं। साल 2012-13 और 2014-15 के बीच कपड़े और पर्वतारोहण उपकरणों पर देश का 6,566 करोड़ रुपये (4.5 अरब डॉलर) खर्च आया है। इसमें से अधिकतर सामान सैनिकों के लिए आयात किया गया है। सियाचिन विश्व का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है लेकिन यहां जवानों को दुश्मन के साथ-साथ मौसम से भी जूझना पड़ता है। सियाचिन ग्लेशियर भारत-पाकिस्तान सीमा पर हिमालय क्षेत्र में स्थित है। सियाचिन की प्रतिकूल परिस्थितियों की वजह से कई पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हो चुकी है। 2012 में पाकिस्तान के सैन्य शिविर में 2012 में हिमस्खलन से 140 लोगों की मौत हो गई, जिसमें 129 सैनिक भी शामिल हैं। सियाचिन की ऊंचाई 22,000 फीट है (विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट का ऊंचाई 29,000 फीट है) और तापमान न्यूनतम से 45 डिग्री सेल्सिस से कम तापमान है।  यहां ऑक्सीजन कम है, जिस वजह से सैनिकों की याद्दाश्त कमजोर होने की संभावना है। बोलने में दिक्कत, फेफड़ों में संक्रमण और अत्यधिक तनाव से भी जूझना पड़ सकता है। यहां बर्फ में लंबी दरारों की समस्या से भी जवानों को जूझना पड़ता है। इन परिस्थितियों में सर्वाधिक बुनियादी वस्तुओं की आपूर्ति एक कठिन कार्य है। वहां कुछ चौकियों पर हेलीकॉप्टरों से ही जरूरी सामान पहुंचाया जाता है।  सर्दियों के दिनों में भूमि मार्ग बंद होने की वजह से हल्के चीता हेलीकॉप्टर के जरिए ही खाद्य पदार्थो और गोला बारूद की आपूर्ति की जाती है। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के मुताबिक, "सियाचिन पर जवानों की तैनाती का फैसला देश की सुरक्षा के मद्देनजर किया जाता है। मैं जवानों के बलिदान की खबरों से आहत हूं लेकिन मुझे लगता है कि अन्य कुछ समाधानों का सही तरीके से विश्लेषण नहीं किया गया है।"


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