• आर.सी.सी.टी.सी. प्रांगण में 13 वर्षों में पहली बार प्रबंधन के विरुद्ध इन्कलाब जिन्दाबाद के नारे लग

    आई.आर.सी.टी.सी. में महिला कर्मचारियों के शौचालय जाने पर रोक, शिकायत करने पर नौकरी से निकाला...

    आई.आर.सी.टी.सी. में महिला कर्मचारियों के शौचालय जाने पर रोक, शिकायत करने पर नौकरी से निकाला

    नई दिल्ली। भारत सरकार की एक मिनि-रत्न संस्थान इन्डियन रेलवे कैटरिंग एण्ड टूरिज्म कारपोरेशन लिमिटेड ( आई.आर.सी.टी.सी) की स्थापना भारतीय रेल द्वारा वर्ष 2002 में खानपान एवं पर्यटन से संबंधित कार्यों के लिए की गई। इसके पर्यटन से संबंधित कार्यों में एक महत्वपूर्ण कार्य ई-टिकटिंग है। आई.आर.सी.टी.सी. के लगभग हर विभाग में स्थाई कर्मचारियों के साथ ठेका कर्मचारियों भी उनके बराबर काम करते हैं परन्तु ठेका कर्मचारी भारी शोषण के शिकार हैं। एक तरफ तो आई.आर.सी.टी.सी. द्वारा स्थाई कर्मचारियों को रू. 40,000/ मासिक वेतन अन्य सेवा सुविधाएं दी जाती है वहीं योग्यता व अनुभव और काम में समानता होते हुए भी ठेका कर्मचारियों को मात्र रू. 11,000/ से 12,000/ तक मासिक वेतन दिया जाता है। 12-13 वर्ष से लगातार काम कर रहे कर्मचारियों को भी न्यूनतम वेतन दिया जाता है।

    यहॉं के ज्यादातर ठेका वर्कर के पास पी.एफ. खाता नहीं था, और जिनके पास था भी उनका कर्मचारी अंशदान के साथ नियोक्ता अंशदान भी ठेका कर्मचारी के वेतन से ही काटा जाता था। ई.एस.आई. की सुविधा के लिए भी कर्मचारी और नियोक्ता दोनो के अंशदान की कटौती ठेका वर्कर के वेतन से ही की जाती है।

    हर यूनिट (विभाग) में 50 से अधिक ठेका कर्मचारियों के होने के बाबजूद भी, न तो पीने का साफ पानी उपलब्ध है और न ही सेपरेट रेस्ट रुम, महिला कर्मचारियों के बच्चों के लिए क्रैच और प्राथमिक चिकित्सा की कोई व्यवस्था है । आई.टी. सेन्टर, आई.आर.सी.टी.सी. नई दिल्ली में 57 नियमित (स्थाई) एवं 265 ठेेका कर्मचारी कार्यरत हैं। ऐसे ठेका कर्मचारी, जिनकी सेवा अवधि 10-12 वर्ष हो चुकी है, उनको ग्रेच्यूटी से वंचित रखने के लिए बार-बार ठेकेदार बदलकर उन्हें नया कर्मचारी घोषित किया जाता है। अर्थात् ग्रेच्यूटी के लिए आवश्यक 5 वर्ष की लगातार सेवा अवधि पूरी नहीं होने दी जाती है। नियोक्ता ( आई0 आर0 सी0 टी0 सी0) द्वारा अपनाई गई यह कार्य पद्धति ठेका मजदूर ( संचालन एवं उन्मूलन) कानून 1970 एवं  उससे संबंधित नियम 1971 का खुला उल्लंघन एवं ठेका कर्मचारियों के प्रति घोर अन्याय है।

    सेन्टर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स से सम्बद्ध ‘‘दिल्ली आफिसेज एण्ड इस्टैब्लिसमेंट इम्प्लाईज यूनियन‘‘ दिल्ली के सदस्य एवं दिल्ली में कार्यरत ये कर्मचारी लम्बे समय से प्रबंधन से लिखित एवं मौखिक रूप से अपनी जायज समस्याओं के समाधान हेतु अनुरोध करते रहे हैं। लेकिन अभी तक कोई निराकरण नहीं किया गया है।

    दिल्ली ऑफिसेज एण्ड इस्टाब्लिसमेंट इम्पलाईज यूनियन ( सीटू ) आई.आर.सी.टी.सी. शाखा, के महासचिव सुरजीत श्यामल ने बताया कि यह स्थापित तथ्य है कि हमारे लोकतांत्रिक देश में मजदूर व कर्मचारी ट्रेड यूनियन का गठन या उसकी सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं। यह उनका संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार है, फिर भी संस्थान के कई अधिकारी यूनियन के उन प्रतिनिधियों और कर्मचारियों को चिन्हित करके प्रताडि़त करते हैं, जो कर्मचारियों के जायज समस्याओं को उठाते हैं, जो कर्मचारी यूनियन के सदस्य हैं उन्हें अनेक प्रकार से यातनाऐं दी जाती हैं। एक ठेका कर्मचारी श्री सुरजीत श्यामल को ’समान

    सुरजीत श्यामल ने बताया कि काम के लिए समान वेतन’ सम्बन्धी आई.आर.सी.टी.सी प्रबंधन एवं भारत सरकार को ज्ञापन देने पर नौकरी से निकाल दिया गया। ठेकेदार शोमुक द्वारा नौकरी से बाहर करने का कारण ‘‘सेवा संतोषजनक न होना‘‘ बताया गया जबकि उन्हें ‘अच्छे काम‘ के लिए आई.आर.सी.टी.सी के प्रबंध निदेशक द्वारा ‘मैरिट-आवार्ड‘ से सम्मानित किया गया था। ठेका कर्मचारियों और नियमित कर्मचारियों के बीच वेतन और अन्य सेवा शर्तों में असमानता के विरु़़द्ध समान काम का समान वेतन लागू करवाने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में उन्होंने एक जनहित याचिका कर दी है । याचिका की सुनवाई करते हुए माननीय उच्च न्यायालय द्वारा 02.04.2014 को नोटिस जारी करके भारत सरकार, प्रबन्ध निदेशक, आई.आर.सी.टी.सी., अध्यक्ष रेलवे बोर्ड, चीफ लेबर कमिश्नर (सेंट्रल) एवं शोमुक से जबाब देने के लिए आदेश दिया ।


    सुरजीत श्यामल ने बताया कि ठेका कर्मचारियों का साक्षात्कार और भर्ती की अन्य प्रक्रिया आई.आर.सी.टी.सी. के द्वारा ही की जाती है, लेकिन वेतन कम देने के लिए ठेकेदार को केवल कागज पर दिखाया जाता है। ठेका कर्मचारियों के बिना जानकारी के ठेकेदार साल दो साल में बदल जाते हैं, मगर ठेका कर्मचारी वही रहते हैं। यहॉं तक की ठेका कर्मचारियों को सैलरी सीधे आई.आर.सी.टी.सी. देता है और केवल उस वेतन का कमीशन मात्र ठेकेदार को दिया जाता है। ठेका कर्मचारियों की छुटिट्यॉं, वार्निंग लेटर, कारण बताओ नोटिस, टर्मीनेशन इत्यादि आई.आर.सी.टी.सी. ही निर्गत करता है। यहॉं यह भी पाया गया कि न 2014 तक तो आई.आर.सी.टी.सी. ठेका मजदूर ( संचालन एवं उन्मूलन) कानून 1970 के तहत रजिस्टर्ड था और न ही इनके किसी भी ठेकेदार के पास लाईसेंस था। सभी ठेका कर्मचारी वर्षों से चलने वाले काम पर कार्यरत हैं, इसीलिए ठेका कर्मचारियों ने अपनी सेवाएँ स्थाई कराने और वर्षों से चल रहे स्थाई प्रकृति के कार्यों से ठेकेदारी समाप्त कराने के लिए अपनी यूनियन के माध्यम से क्षेत्रीय श्रमायुक्त (केन्द्रीय) एवं अन्य संबंधित विभागों में मामला दर्ज करवाया हैं।

    सुरजीत श्यामल ने बताया वर्ष 2014 में प्रबंधन ने सभी 265 ठेका कर्मचारियों को नौकरी से निकालने के षडयंत्र के तहत कस्टमर केयर विभाग को आउटसोर्स करने के लिए टेंडर निकाला। प्रबंधन के इस चाल को भांपते हुए उसे दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। माननीय दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रबंधन को जबाब देने के लिए नोटिस जारी किया गया। प्रबंधन द्वारा अभी तक नोटिस का उत्तर नहीं दिए जाने के कारण, अभी तक आवश्यक प्रक्रिया लंबित है।

    इनकी प्रताड़ना का अंत यही खत्म नही हुआ, बल्कि आई.आर.सी.टी.सी. के ई-टिकटिंग यूनिट आई.टी.सेन्टर में 100 से अधिक महिला कर्मचारी कार्यरत हैं। जिनका कहना है कि हमारी विभाग प्रमुख के मौखिक आदेश से सुबह 10-12 बजे शौचालय जाने नहीं दिया जाता है। इसके बाद भी अगर कोई महिला कर्मचारी शौचालय जाने की जरूरत महसूस करती है, तो उसे पुरूष सुपरवाईजर से अनुमति लेकर जाना होता है, और उसको यह बताना होता है कि 5 मिनट के लिए जा रहे हैं या 10 मिनट के लिए, जो कि महिला कर्मचारी के लिए बहुत ही शर्मनाक है। अगर कोई महिला कर्मचारी सुबह 10-12 बजे के बीच या सुपरवाईजर की अनुमति के बिना शौचालय चली जाती है तो विभाग प्रमुख के आदेशानुसार उनको तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है, साथ ही उक्त महिला कर्मचारी को लिखित माफिनामा भी देना पड़ता है। अगर कोई महिला कर्मचारी इसका विरोध करती है तो उनको नौकरी से निकालने का भय दिखाकर चुप करा दिया जाता है। जब कर्मचारियों ने इसके खिलाफ आवाज उठाया तो उन्हे प्रताड़ित करते हुए नौकरी से निकाल दिया गया। सुरजीत श्यामल ने कहा दुखद है कि आई.आर.सी.टी.सी. जैसे सरकारी क्षेत्र के संस्थान में कार्यस्थल पर महिला कर्मचारियों के शौचालय जाने पर रोक लगाने जैसा व्यवहार अमानवीय एवं शर्मनाक है।

    महिला कर्मचारियों का कहना है कि आई.आर.सी.टी.सी में हर रोज कोई न कोई महिला किसी न किसी स्टाफ या अधिकारी के उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं और यहॉ शिकायतकर्ता को ही प्रताडि़त किया जाता है। ज्ञातन्य है कि उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार प्रत्येक संस्थान में कार्य स्थल पर महिला कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए यौन उत्पीड़न निषेध समिति का होना आवश्यक है, परन्तु ऐसी किसी समिति का गठन आई.आर.सी.टी.सी में नहीं हुआ है। इसके खिलाफ कुछ महिला कर्मचारियों ने दिनांक 09 सितम्बर 2015 को दिल्ली महिला आयोग का दरवाजा खटखटाया। कार्रवाई न होता देख इस उत्पीड़न पर कारवाई के लिए प्रधानमंत्री व दिल्ली के मुख्यमंत्री को भी लिखा। इसके बाद दिनांक 22 दिसम्बर 2015 को जब दिल्ली महिला आयोग ने आई.आर.सी.टी.सी. प्रबंधक को इस शिकायत पर कारवाई के लिए नोटिस भेजा, तो आई.आर.सी.टी.सी. प्रबंधकों ने शिकायत करने वाले व उनके 92 साथी कर्मचारियों को ही नौकरी से निकाल दिया।

    सुरजीत श्यामल ने बताया कि अपनी यूनियन के कुशल नेतृत्व में आई.आर.सी.टी.सी. के सभी ठेका कर्मचारी एकता घैर्य, साहस, एवं आत्मविश्वास से साथ आई.आर.सी.टी.सी. के शोषण एवं दमनकारी नीतियों के विरू़द्ध संघर्ष करने के लिए कटिबद्ध हैं। एकता में ही शक्ति है और सशक्त ही सफल होता हैं, एवं लड़ेंगे-जीतेंगे जैसे नारों के साथ ठेका कर्मचारी संघर्ष कर रहे हैं। ठेका कर्मचारियों की एकता की शक्ति का परिणाम है कि आर.सी.सी.टी.सी. के प्रांगण में 13 वर्षों में पहली बार प्रबंधन के विरुद्ध इन्कलाब जिन्दाबाद के नारे लगे, जैसा कि नियमित और स्थाई कर्मचारी आज तक नहीं कर पाए। 

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