नई दिल्ली, 9 फरवरी। सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को अरुणाचल प्रदेश से कांग्रेस के दो बागी पूर्व विधायकों की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया द्वारा एक अक्टूबर, 2015 को स्वीकार किए गए इस्तीफे को चुनौती दी थी। पूर्व विधायकों द्वारा हस्ताक्षर करने के 15 दिनों बाद इस्तीफे स्वीकार किए गए थे। गुवाहाटी उच्च न्यायालय के 12 जनवरी के आदेश में दखलंदाजी से इंकार करते हुए न्यायमूर्ति अनिल आर.दवे तथा न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की एक पीठ ने उनसे कहा कि इस्तीफा स्वीकार करने के 15 दिन पहले तक वे क्यों चुप रहे।
गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने विधानसभा अध्यक्ष द्वारा वांगलम साविन तथा गैब्रिएल डी.वांग्सु के इस्तीफे के स्वीकार करने के कदम को सही ठहराया था।
याचिका खारिज करते हुए पीठ ने कहा, "सतर्क रहिए, आप भविष्य में हस्ताक्षर नहीं कीजिएगा।"
वरिष्ठ वकील एल.नागेश्वर राव ने पीठ से कहा कि इस्तीफे को पूर्वोत्तर राज्य में कांग्रेस में सत्ता संघर्ष के तौर पर देखा जाना चाहिए।
राव ने तर्क दिया कि इस्तीफा उन्होंने अपनी मर्जी से नहीं दिया और यह प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ एकता दर्शाने के तौर पर दिया गया था। उन्होंने कहा कि वे इस बात से इंकार नहीं कर रहे कि हस्ताक्षर उनके मुवक्किल के नहीं हैं, लेकिन जिन परिस्थितियों के तहत इस्तीफा दिया गया, उस पर विचार किया जाना चाहिए और उसमें संदेह करने के पर्याप्त कारण हैं।
उन्होंने कहा, "दोनों त्यागपत्रों की भाषा एक समान है और यह निर्धारित प्रारूप में नहीं है, जैसा नियमों के तहत होता है। इस्तीफे का कारण नैतिक है।"
राव ने कहा, "क्या एक इस्तीफा वापस हो सकता है। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि अध्यक्ष को इस बात की तह में जाना चाहिए था कि किन परिस्थितियों के तहत इस्तीफा दिया गया।"
लेकिन न्यायालय उनके तर्क से सहमत नहीं हुआ।
पीठ ने राव से कहा, "क्या इस बारे में लेकर कोई कानून है कि अध्यक्ष द्वारा किसी इस्तीफे को स्वीकार करने से पहले वे उसपर संदेह करें और उसकी तह तक जाने के लिए जांच करें।"