• बहु विकलांग विशेष विद्यालय में सिर्फ 14 दिव्यांग बच्चे ले रहे शिक्षा

    महासमुंद । जिले के शासकीय बहु विकलांग विशेष विद्यालय में महज 14 दिव्यांग बच्चे ही शिक्षा ले रहे हैं। जबकि पिछले एक साल में 34 जगहों पर शिविर लगाकर 70 बच्चों का चिन्हांकन किया गया है। यहां बच्चों की संख्या बढ़ाने पर न ही प्रबंधन का ध्यान है और न पालक रुचि ले रहे हैं। नतीजतन 8 बालिका और 6 बालकों को आवासीय कार्यात्मक शिक्षक, दैनिक क्रियाकौशल प्रशिक्षण, भौतिक पुनर्वास गतिविधियां सिखाई जा रही है। उन्हें यहां रखकर अच्छी सेहत और प्रशिक्षण दिया जा सकता है। लेकिन ज्यादातर पालक इस दिशा में जागरूक नहीं है। उन्हें इस संबंध में जागरूक करने के लिए भी अपेक्षित प्रयास का अभाव है।...

    महासमुंद । जिले के शासकीय बहु विकलांग विशेष विद्यालय में महज 14 दिव्यांग बच्चे ही शिक्षा ले रहे हैं। जबकि पिछले एक साल में 34 जगहों पर शिविर लगाकर 70 बच्चों का चिन्हांकन किया गया है। यहां बच्चों की संख्या बढ़ाने पर न ही प्रबंधन का ध्यान है और न पालक रुचि ले रहे हैं। नतीजतन 8 बालिका और 6 बालकों को आवासीय कार्यात्मक शिक्षक, दैनिक क्रियाकौशल प्रशिक्षण, भौतिक पुनर्वास गतिविधियां सिखाई जा रही है। उन्हें यहां रखकर अच्छी सेहत और प्रशिक्षण दिया जा सकता है। लेकिन ज्यादातर पालक इस दिशा में जागरूक नहीं है। उन्हें इस संबंध में जागरूक करने के लिए भी अपेक्षित प्रयास का अभाव है।

    जिला स्तर पर शासकीय बहुविकलांग केंद्र के लिए 2012 में ही स्वीकृति मिली और केंद्र अधीक्षक संजय पांडेय की पदस्थापना महासमुंद हुई। तब केंद्र खोलने के लिए कोई शासकीय बिल्डिंग नहीं मिली। शुरुआत में किराए की दर तय होने में समय लगा, फिर केंद्र खोलने मकान ढूंढने में समय लगा। बाबा रामदेव मंदिर के पीछे एक मकान मिला। जिसे किराए पर लिया गया। मार्च 2014 से यहां केंद्र संचालित है। 25 सीटर इस केंद्र में शुरुआती दौर में 37 बच्चों का प्रवेश हुआ था। बाद धीरे-धीरे पालक अपने बच्चों को अवकाश के नाम पर घर ले गए और फिर बाद में लाए नहीं।

    किसी भी दो प्रकार की विकलांगता होने पर उसे बहु विकलांगता की श्रेणी में लिया जाता है। इस तरह के 6 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक के बच्चों को यहां प्रवेश होता है। इन बच्चों को यहां 18 वर्ष की उम्र तक शिक्षा देना है। साथ ही आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी कार्य करना होता है। आत्मनिर्भरता के लिए लोकल लेवल कमेटी बनाई गई है। साथ ही बच्चों के लिए लीगल गार्जियन प्रमाणपत्र भी दिया जाता है, जो उस बच्चे की 18 वर्ष की उम्र के बाद देखभाल करे।


    पालक अपने बहुविकलांग बच्चे को बेहतर जीवन देने के लिए केंद्र भेजने की मंशा में नहीं देखे जा रहे हैं। वे ऐसे बच्चों को एक पल के लिए भी अपने से दूर करना नहीं चाहते, जिससे बच्चे केंद्र नहीं पहुंचते और उन्हें दैनिक कार्यकौशल आदि की सीख नहीं मिल पाती। ऐसे बच्चों की बेहतरी के लिए यहां पालकों को आगे आकर बच्चे को प्रवेश दिलाना जरूरी है।

    केंद्र संचालकों ने बताया कि गत वर्ष 34 कैंप किए गए थे। यह कैंप जिला प्रशासन के साथ आयोजित शिविरों में ही किए गए। गत वर्ष 34 शिविरों में 70 से अधिक बच्चों का पंजीयन हुआ था। पर किसी ने बच्चे के प्रवेश को लेकर रुचि नहीं दिखाई। बहुविकलांग बच्चों का सर्वे समाज कल्याण विभाग से होता है, लेकिन बहुविकलांग केंद्र सर्वे के मामले में समय-समय पर आयोजित शिविर तक ही सीमित है।

    शासकीय बहुविकलांग केंद्र में कुल 13 पद स्वीकृत हैं। इनमें प्रशिक्षित शिक्षक के 4 पद, व्यावसायिक शिक्षक के 1 पद, सहायक वर्ग दो-भंडारी के एक पद रिक्त है। जबकि अधीक्षक, एक भृत्य, एक रसोइया, एक आया, एक स्वच्छक व दो चौकीदार के पद पर स्टाफ कार्यरत है। शिक्षकों की कमी को देखते हुए कांकेर बाल गृह में पदस्थ वृंदावन पटेल का यहां संलग्नीकरण किया गया है। यहां दो महिला होमगार्ड की भी तैनाती है। फिलहाल बहुविकलांग केंद्र किराए के भवन में संचालित है। लेकिन करीब डेढ़ करोड़ की लागत से खैरा भांठा में छात्रावास भवन, प्रशासनिक भवन, अध्यापन कक्ष और आहाता निर्माण का काम स्वीकृत है। फिलहाल छात्रावास भवन का निर्माण कार्य प्रगति पर है।

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