• बाल दिवस को भी बच्चे बेचते रहे पत्रिकाएं

    बेंगलुरू शहर के एम.जी.रोड पर यातायात जाम के दौरान सड़क के इस छोर से उस छोर तक वाहन सवार यात्रियों और पैदल यात्रियों को पत्रिकाएं ...

    बेंगलुरु !  बेंगलुरू शहर के एम.जी.रोड पर यातायात जाम के दौरान सड़क  के इस छोर से उस छोर तक वाहन सवार यात्रियों और पैदल यात्रियों को पत्रिकाएं और अखबार बांटने वाले रघु के लिए शनिवार का दिन भी 'बाल दिवस' नहीं बल्कि रोज की तरह काम का एक दूसरा दिन ही है।बिहार में गया के रहने वाले रघु से यह पूछने पर कि वह बाल दिवस को कैसे मना रहा है। इस पर रघु ने आईएएनएस को बताया, ''यह बाल दिवस क्या होता है? मेरे लिए काम का महज दूसरा दिन है। यदि मैं पत्रिकाएं और अखबार नहीं बेचूं तो मैं दिन का भोजन नहीं कर पाउंगा।''रघु ने बेंगलुरू की सड़कों पर ही अपना घर बना लिया है। उल्लेखनीय है कि पूरे देश में शनिवार को बाल दिवस मनाया जा रहा है।रघु ने कहा कि मैंने कुछ साल पहले बाल दिवस के बारे में पढ़ा था। प्रत्येक वर्ष 14 नवंबर को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस मनाया जाता है जिसे बाल दिवस के रूप में मनाते हैं। लेकिन मेरी तरह गरीब बच्चों के पास जश् मनाने के लिए कुछ भी नहीं है।बच्चों के अधिकारों के लिए काम कर रहे विशेषज्ञों के मुताबिक बेंगलुरू की सड़कों पर बच्चों की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी हुई है।वर्ष 2001 में हुई गणना के मुताबिक देश में पांच से 14 साल के 1.27 करोड़ बच्चे स्कूल जाने के बजाय फैक्टरियों आदि में काम में लगे हुए हैं। उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 19 लाख और इसके बाद दूसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश में 13 लाख बाल मजदूर हैं। इस मामले में कर्नाटक का स्थान सातवां है और यहां 82 हजार बच्चे काम में लगे हुए हैं। इसके बाद राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल का स्थान आता है। दूसरी तरफ बाल अधिकार के लिए संघर्ष करने वाली संस्थाओं का कहना है कि भारत में करीब पांच करोड़ बाल मजदूरी में लगे हुए हैं।

     


     

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