• हंगामा हुआ अब तस्वीर भी बदले

    आमिर खान अपनी आगामी फिल्म दंगल की शूटिंग में व्यस्त हैं, बीच में उनके चोटिल होने की खबरें भी आईं। पर्दे पर फिल्म प्रदर्शित हो, इससे पहले उन्होंने एक ऐसा बयान दे दिया है कि राजनीतिक अखाड़े मेंंपहले से चल रहे दंगल को गति मिल गई है...

    आमिर खान अपनी आगामी फिल्म दंगल की शूटिंग में व्यस्त हैं, बीच में उनके चोटिल होने की खबरें भी आईं। पर्दे पर फिल्म प्रदर्शित हो, इससे पहले उन्होंने एक ऐसा बयान दे दिया है कि राजनीतिक अखाड़े मेंंपहले से चल रहे दंगल को गति मिल गई है और आमिर खान को फिर कुछ चोटें सहने के लिए तैयार रहना होगा। रामनाथ गोयनका पत्रकारिता पुरस्कार समारोह में आमिर खान ने कहा कि वे देश में बढ़ती असहनशीलता की घटनाओं से चिंतित हैं और एक बार जब वे घर पर इस बारे में चर्चा कर रहे थे तो उनकी पत्नी किरण राव ने उनसे कहा था कि क्या उन्हें देश छोड़ देना चाहिए? आमिर खान केवल अपनी फिल्मों के लिए ही नहींसामाजिक तौर पर सक्रिय रहने के लिए भी जाने जाते हैं। देश के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अतिथि देवो भव का विज्ञापन यूपीए सरकार ने उनसे करवाया और एनडीए ने उसे जारी रखा। टीवी के लिए सत्यमेव जयते नामक शो उन्होंने बनाया, जिसमें कई सामाजिक बुराइयों, कुरीतियों पर खुलकर चर्चा होती थी और अंत में संदेश यही प्रसारित होता था कि माहौल जितना भी निराशावादी क्यों न हो, आशा की किरण तलाश कर ही ली जाती है, सत्य की जीत हर हाल में होती है। बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश लगभग सभी फिल्मों में भी दिया जाता है। लेकिन जीवन की हकीकत कुछ और ही होती है। इसलिए आमिर खान हों या शाहरुख खान, पर्दे पर वे चाहे जितनी बुराइयों से लड़कर नायक बन जाएं, असल जीवन में उन्हें भी कुछ तकलीफों का सामना करना पड़ता होगा, जैसे भारत के बहुत से लोगों को करना पड़ता है। अगर वे इन तकलीफों का या भारत के नागरिक होने के नाते कुछ शिकायतों का जिक्र करते हैं तो उसमें गलत क्या है? देश में इस वक्त असहिष्णुता को लेकर जो बहस छिड़ी हुई है, उसमें पहले शाहरुख खान ने और अब आमिर खान ने अपना मंतव्य प्रकट किया है। भाजपा की सहनशीलता की यह परीक्षा थी, लेकिन उसके लोगों ने इन दोनों अभिनेताओं का विरोध जिस तरह से किया, उससे जाहिर होता है कि वे इस कसौटी पर कितना खरा उतर रहे हैं। यह कहा गया कि इस देश के तीन बड़े अभिनेता खान हैं यानी मुसलमान हैं। इस तर्क का आशय क्या है? क्या देश के विभिन्न क्षेत्रों में सर्वोच्च पदों या स्थानों पर पहुंचने का अधिकार किसी खास समुदाय को है और अगर कोई अल्पसंख्यक वहां पहुंचता है तो उसे इसका अहसास कराया जाएगा कि तुम अमुक धर्म के हो, फिर भी यहां तक पहुंचे हो? सहनशीलता की ये कैसी तस्वीर है? देश के वर्तमान माहौल को सहिष्णु बताने वाले अभिनेता अनुपम खेर ने तो आमिर खान पर कई सवाल दागे हैं। मीनाक्षी लेखी, मनोज तिवारी आदि कई नेताओं ने भी आमिर के विरोध में बयान दिया है। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर नया दंगल छिड़ गया है। कुछ दिनों के शोर-शराबे के बाद यह बहस शांत हो जाएगी और फिर किसी नए बयान की प्रतीक्षा में बहसवीर बैठे रहेंगे। देश सहिष्णु है या असहनशीलता बढ़ रही है या माहौल खराब हो रहा है या भाजपा और नरेन्द्र मोदी के विरोधी षड्यंत्र के तहत ऐसा करवा रहे हैं या केेंद्र सरकार अपना दायित्व सही तरीके से नहींनिभा रही, इन पर चर्चाएं खूब हो रही हैं, नतीजा कुछ नहींनिकल रहा, तब तक निकल भी नहींसकता, जब तक माहौल सुधारने के लिए कोई काम न हो। जिन तमाम साहित्यकारों, कलाकारों ने पुरस्कार, सम्मान लौटाए, जिन अभिनेताओं ने, दिग्गज हस्तियों ने बढ़ती असहनशीलता पर चिंता व्यक्त की, उनके विरोध को संज्ञान में लेना सरकार का दायित्व है। लेकिन अब इन तमाम लोगों को अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाने के लिए कुछ कदम और आगे बढऩा चाहिए। इनके पास अपनी बात रखने के लिए सामाजिक मंच उपलब्ध हैं, जनता इन्हें आदर देती आई है और अगर वे इस देश की उदार परंपरा को बरकरार रखने की अपील लोगों से करेंगे, सामाजिक सद्भाव बढ़ाने का संदेश देंगे, धार्मिक कट्टरता छोड़कर उदारता अपनाने की सलाह देंंगे तो जनता इनकी बात क्यों नहींसुनेगी। कट्टरवादी ताकतें जिस तरह जनता को अपने साथ लेने की रणनीतियां बनाती हैं, वैसे ही ये लोग एकत्र होकर क्यों नहींकाम कर सकते? इन्हें जनता के बीच यह संदेश देना चाहिए कि केवल हंगामा खड़ा करना इनका मकसद नहींहै, बल्कि ये चाहते हैं कि तस्वीर बदले।

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